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________________ व्रत-सूची ९९ होते हैं । हे० व्र० (२, १-८, भविष्योत्तर ० से उद्धरण); माधवकृत कालनिर्णय ( २७८ ) ; ग० प० (१५३ ) ; पूर्वविद्धा ली जाती है; गरुड़० ( १ | ११७ ); (२) चैत्र या भाद्रपद शु० १३; तिथि; वर्ष में प्रत्येक मास में या एक बार; बारह विभिन्न नामों के साथ वस्त्र पर काम के चित्र की पूजा; हे० व्र० (२, ८-९, कालोत्तर से उद्धरण); पुरुषार्थचिन्तामणि (३२३) एवं निर्णयसिन्धु ( ८८ ) । अनङ्गवानव्रत : हस्त, पुष्य या पुनर्वसु के साथ रविवार को; वेश्याओं के लिए; विष्णु एवं काम की पूजा; १३ महीने; वेश्या रविवार को किसी ब्राह्मण से संभोग कराती है और 'क इदं कस्मा अदात् काम:. . आदि' का पाठ करती है। देखिए अथर्ववेद ( ३।२९।७ ) ; ते० ब्रा० ( २/२/५/५-६ ), आप० श्री० सू० (५।१३ जहाँ कामस्तुति है ) ; मत्स्य० (अध्याय ७०), पद्म० (५।२३।७४ - १४६ ) ; कृत्यकल्पतरु ( व्रत०, २७ - ३१, जहाँ इसे वेश्यादित्याङ्गदानव्रत कहा गया है); हेमाद्रि ( व्रत, २, ५४४-५४८, पद्म० से उद्धरण) ; कृत्यरत्नाकर (६०५-६०८; मत्स्य ० से उद्धरण) । अनङ्गपवित्रारोपण : श्रावण शु० १३; हेमाद्रि, व्रत खण्ड (२, ४४२ ) ; पुरुषार्थचिन्तामणि ( २३८ ) | अनन्तचतुर्दशी : देखिए गत अध्याय ८ । अनन्ततृतीया : भाद्रपद या वैशाख या मार्गशीर्ष शुक्ल तृतीया; एक वर्ष; प्रत्येक मास में विभिन्न पुष्पों से गौरी की पूजा; मत्स्य ० ( ६२1१-३९, पद्म० ५।२२।६१ - १०४ ) ; भविष्योत्तर ० ( २६।१-४१ ) ; कृत्यकल्पतरु ( व्रत० ६०-६६ ) ; हे० व्र० ( १, ४२२-४२६ ) ; कृत्य० ( २६५ - २७० ) । अनन्तद्वादशी : भाद्रपद शु० १२; तिथि ; एक वर्ष के लिए; हरि-पूजा; विष्णुधर्मोत्तर० (३।२१९।१-५); हे० ० ( १,१२०० - १ ) । अनन्तपञ्चमी : फा० शु० ५; तिथि ; देवता का उल्लेख नहीं है; हे० व्र० ( १, ५६४, स्कन्द, प्रभासखण्ड से उद्धरण) । अनन्तफल सप्तमी : भाद्र० शु० ७; तिथि ; एक वर्ष; सूर्य पूजा; हे० ब्र० ( १, ७४१, भविष्य ०, ब्राह्मपर्व ११०।१-८) ; कृ० क० ( ० १४८ - ९ ) । अनन्ततृतीयाव्रत : देखिए नीचे आनन्तर्य - व्रत । अनन्तव्रत : (१) मार्ग ० में मृगशीर्ष नक्षत्र के दिन; एक वर्ष; प्रत्येक मास में विभिन्न नक्षत्र (पौष में पुष्य, माघ में मघा आदि ) ; विष्णुपूजा ; हे० ब्र० (२, ६६७-६७१, विष्णुधर्मोत्तर ० १।१७३|१-३० से उद्धरण) । यह पुत्रद है । (२) विष्णुधर्मोत्तर ( ३।१५०।१-५ ) ; दूसरी तिथि से अन्य प्रकार एक वर्ष; विष्णु (अनन्त) की पूजा; चतुर्मूर्ति व्रत । अनन्दा-नवमी : फा० शु० ९; तिथि एक वर्ष; देवीपूजा; कृत्यकल्पतरु ( व्रत० २९९-३०१, यहाँ आनन्दा नाम है); हे० व्र० ( १, ९४८-५० ) । अनरक-व्रत : मार्ग ० शु० १ को आरम्भ; ऋतुव्रत; दो ऋतुओं के लिए हेमन्त एवं शिशिर; केशवपूजा; 'ओं नमः केशवाय' का १०८ बार जप; द्वादशी को विशेष कृत्य; हेमाद्रि ( व्रतखण्ड, २, ८३९-४२, विष्णुरहस्य से उद्धरण) । अनोदना - सप्तमी : चैत्र शु० ६ को उपवास से आरम्भ तथा सप्तमी पर सूर्य पूजा; तिथि; हे० ब्र० ( १, ७०२-५, भविष्य ० ) ; कृत्यकल्पतरु ( व्रत० २०५-८); कृत्यरत्नाकर (१२१-१२३) । 'ओदन' में भक्ष्य, भोज्य एवं (चाटना ) सम्मिलित हैं; किन्तु जल ओदन नहीं है, अतः उस दिन ग्रहण किया जा सकता है । . अन्नकूटोत्सव : देखिए 'गोवर्धन पूजा' । देखिए वराह० ( १६४ ) एवं स्मृतिकौस्तुभ ( ३७४) । अन्नदान-माहात्म्य : देखिए 'सदाव्रत' । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002792
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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