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धर्मशास्त्र का इतिहास अग्निव्रत : फा० कृष्ण ४ (उपवास); एक वर्ष; वासुदेवपूजा; विष्णुधर्मोत्तर० (३।१४३।१-७), हे० ७० (१ ५०६, चतुर्मूतिव्रत)।
अघोरचतुर्दशी : भाद्रपद कृ० १४; (उपवास); शिव; देखिए गदाधरपद्धति (कालसार, १५७), वर्षक्रियाकौमुदी (३१५); तिथितत्त्व (१२२); रघुनन्दनकृत कृत्यतत्त्व (४४३)।
अङ्गारक-चतुर्थी : किसी मंगलवार को चौथ ; ८ बार या ४ बार या जीवन भर ; मंगल की पूजा ; मन्त्र (ऋ० ८।४४।१६); शूद्र केवल मंगल का स्मरण करते हैं। मत्स्य० (७२।१-४५); पद्म० (५।२४, २०-६३); भविष्योत्तर० (३१।१-६२); वर्षक्रियाकौमुदी (३२-३३); व्रतराज (१८८-१९१); कृत्यकल्पतरु, व्रत० (८०-८१); हेमाद्रि, व्रतखण्ड (१, ५१८-५१९)। अहल्याकामधेनु (पाण्डुलिपि) में ध्यान यह है-'अवन्ती-समुत्थं सुमेषासनस्थं धरानन्दनं रक्तवस्त्रं समीड़े।'
अङ्गारक चतुर्दशी : ग०प० (६१०); यदि किसी मंगल को चतुर्थी या चतुर्दशी हो तो वह सौ सूर्य-ग्रहणों सनस्थं से अधिक फलदायक होती है।
अङ्गिरा-प्रत : कृष्ण दशमी ; एक वर्ष; दस देवों की पूजा ; विष्णुधर्मोत्तरपुराण (३।१७७११-३)।
अचलासप्तमी : माघ शु० ७; सूर्यपूजा; षष्ठी को एकभक्त एवं सप्तमी को उपवास; सप्तमी की रात्रि के अन्त में एक हाथ में दीप लेकर स्थिर जल को हिला दिया जाता है ; हे० ७० (१,६४३-६४८, भविष्योत्तर० से उद्धरण, जहाँ कृष्ण ने युधिष्ठिर को उस वेश्या इन्दुमती की कथा सुनायी है जिसने पश्चात्ताप में आकर इसका सम्पादन किया है)। व्रतार्क, व्रतराज (२५३-२५५); निर्णयामृत (५१, यहाँ इसे जयन्ती भी कहा गया है); इस दिन भास्कर का ध्यान करना चाहिए।
अच्युतवत : पौष कृ० १; तिथि ; तिल एवं घृत से 'ओं नमो वासुदेवाय' नामक मन्त्र के साथ अच्युत की पूजा; ३० ब्राह्मणों को उनकी पत्नियों के साथ भोजन देना; अहल्याकामधेनु (२३०)।
अतिविजया-एकादशी : पुनर्वसु-नक्षत्र के साथ शुक्ल एकादशी को; एक वर्ष के लिए (एक प्रस्थ तिल का दान); हे० व० (११११४७), विष्णुधर्मोत्तरपुराण से उद्धरण।
__ अदारिद्र्य-षष्ठी : षष्ठी को (उपवास या एकभक्त); एक वर्ष के लिए; भास्कर की पूजा; हे व्र० (१, ६२६-६२७, स्कन्द० के चार श्लोक उद्धृत हैं)। सम्पादनकर्ता तेल एवं नमक छोड़ देता है और ब्राह्मणों को दूध एवं शक्कर के साथ चावल पकाकर खिलाता है। कुटुम्ब में न कोई दरिद्र रहता है और न कोई दरिद्र उत्पन्न होता है। ___अधिमास : (मलमास); इसका निर्णय एवं कृत्य'; हेमाद्रि, काल पर चतुर्वर्गचिन्तामणि (२६-६६); कालविवेक (जीमूतवाहनकृत, ११३-१६८); निर्णयसिन्धु (९-१५); स्मृतिकौस्तुभ (५२०-५२९); पुरुषार्थचिन्तामणि (१२-३१); वर्षक्रियाकौमुदी (२३१-२३६); कृत्यरत्नाकर (५३६-५३९)।
अदुःख-नवमी : सब के लिए, किन्तु विशेषतः नारियों के लिए : भाद्रपद श० ९; पार्वती : व्रतराज (३३२३३७; स्कन्द० से उद्धरण)। बंगाल में इसे स्त्रियाँ अवैधव्य के लिए करती हैं।
अनघाष्टमी : मार्ग० कृ० ८; तिथि; अनघ एवं अनघी की पूजा (दर्भ से वासुदेव एवं लक्ष्मी की प्रतिमा बनायी जाती है। शूद्र नमस्कार करते हैं और अन्य लोग ऋ० (१।२२।१६) का मन्त्र पढ़ते हैं (अतो देवा); भविष्योत्तर० (५८।१)।
___ अनङ्गत्रयोदशी : (१) मार्ग० शु० १३; तिथि ; एक वर्ष; शम्भुपूजा; पंचामृत से स्नान ; प्रत्येक मास में अनंग (शम्भु के रूप में) विभिन्न नामों से (यथा--स्मर की पूजा माघ में) एवं विभिन्न पुष्पों एवं नैवेद्य से पूजित
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