SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 105
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८८ धर्मशास्त्र का इतिहास सिन्धु (पृ० १२७) आदि में शिवरात्रि विधि के विषय में लम्बा उल्लेख है। का० त० वि० (पृ० १६७) में आया है कि विभिन्न पुराणों में शिवरात्रि-व्रत-विधि विभिन्न रूप वाली है। २४, १४ या १२ वर्षों तक शिवरात्रि व्रत करने वाले को अवधि के उपरान्त उद्यापन करना पड़ता है। इस विषय में पु० चि० (पृ० २५८-२५९) एवं व्रतराज (पृ० ५८६-५८७) आदि ग्रन्थों में अति विस्तार के साथ वर्णन है, जिसे हम यहाँ नहीं उल्लिखित करेंगे। किसी भी शिवरात्रि के पारण के विषय में जितने वचन हैं ये विवाद-ग्रस्त हैं (नि० सि०, पृ० २२४; हे०, काल, पृ० २९८; ध० सि०, पृ० १२६) । स्कन्द के दो वचन ये हैं---'जब कृष्णाष्टमी, स्कन्दषष्ठी एवं शिवरात्रि पूर्व एवं पश्चात् की तिथियों से संयुक्त हो जाती हैं तो पूर्व वाली तिथि प्रतिपादित कृत्य के लिए मान्य होती है और पारण प्रतिपादित तिथि के अन्त में किया जाना चाहिए; चतुर्दशी को उपवास और उसी तिथि को पारण वही व्यक्ति कर सकता है जिसने लाखों अच्छे कर्म किये हों।' धर्मसिन्धु (पृ० १२६) का निष्कर्ष यों है--'यदि चतुर्दशी रात्रि के तीन प्रहरों के पूर्व ही समाप्त हो जाय तो पारण तिथि के अन्त में होना चाहिए ; यदि वह तीन प्रहरों से आगे चली जाय तो उसके बीच में ही सूर्योदय के समय पारण करना चाहिए, ऐसा माधव आदि का मत है।' निर्णयसिन्धु का मत यह है कि यदि चतुर्दशी तिथि रात्रि के तीन प्रहरों के पूर्व समाप्त हो जाय तो पारण चतुर्दशी के बीच में ही होना चाहिए न कि उसके अन्त में। आजकल धर्मसिन्धु में उल्लिखित विधि का पालन कदाचित् ही कोई करता हो। उपवास किया जाता है, शिव-पूजा होती है और लोग शिव की कथाएँ सुनते हैं। सामान्य जन (कहीं-कहीं) ताम्रफल (बादाम), कमल-पुष्प-दल, अफीम-बीज, धतूरे आदि से युक्त या केवल माँग का सेवन करते हैं। बहुत से शिव-मन्दिरों में मूर्ति पर लगातार जलधारा से अभिषेक किया जाता है। ऐतरेय ब्राह्मण (८।९) में प्रजापति के उस पाप का उल्लेख है जो उन्होंने अपनी पुत्री के साथ किया था। वे मृग बन गये। देवों ने अपने भयंकर रूपों से रुद्र का निर्माण किया और उनसे उस मृग को फाड़ डालने को कहा। जब रुद्र ने मृग को विद्ध कर दिया तो वह (मृग) आकाश में चला गया। लोग इसे मृग (मृगशीर्ष) कहते हैं। रुद्र मृगव्याध हो गये और (प्रजापति की) कन्या रोहिणी बन गयी और तीर (अपनी तीन धारों के साथ) तीन धारा वाले तारों के समान बन गया। लिंगपुराण (व्रतराज,पृ०५७३-५८६) में एक निषाद की कथा है। निषाद ने एक मृग, उसकी पत्नी और उनके बच्चों को मारने के क्रम में शिवरात्रि व्रत के सभी कृत्य अज्ञात रूप से कर डाले। वह एवं नृग के कुटुम्ब के लोग अन्त में व्याध के तारे के साथ मृगशीर्ष नक्षत्र बन गये। शिवरात्रि व्रत' का लम्बा उल्लेख मध्यकालिक निबन्धों में हुआ है, यथा हे० (व्रत, भाग २, पृ० ७१-१२२), ति० त० (पृ० १२४-१३३), स्मृतिकौ० (पृ० ४८१-५१२), पु० चि० (२४८-२८१), कालसार (पृ० १५८-१६७) आदि। उपर्युक्त शिवरात्रि के अतिरिक्त अन्य शिवरात्रियाँ भी हैं, जिनमें व्रत किया जाता है, यथा हे० (व्रत, भाग-२,पृ.० ७१-८७ ; वही, पृ० ८७-९२; वही, पृ० ११४-१२२; वही पृ० १२८-१३० ; किन्तु हम इनका वर्णन यहाँ स्थानाभाव से नहीं करेंगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002792
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy