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________________ ८५ महाशिवरात्रि का माहात्म्य ने उसे पकड़ा तो शिव के सेवकों ने उनसे युद्ध किया और उसे उनसे छीन लिया। वह पाप रहित हो गया और कुत्ते के साथ शिव का सेवक बना। इस प्रकार उसने अज्ञान में ही पुण्यफल प्राप्त किया। यदि इस प्रकार कोई व्यक्ति ज्ञान में करे तो वह अक्षय पुण्यफल प्राप्त करता है। अग्निपुराण ( १९३।६ ) में सुन्दरसेनक बहेलिया का उल्लेख हुआ है। स्कन्द० में जो कथा आयी है, वह लम्बी है— चण्ड नामक एक दुष्ट किरात था। वह जाल में मछलियाँ पकड़ता था और बहुत से पशुओं एवं पक्षियों को मारता था। उसकी पत्नी भी बड़ी निर्मम थी। इस प्रकार बहुतसे वर्ष बीत गये । एक दिन वह पात्र में जल लेकर एक बिल्व पेड़ पर चढ़ गया और एक बनैले शूकर को मारने की इच्छा से रात्रि भर जागता रहा और नीचे बहुत-सी पत्तियाँ फेंकता रहा । उसने पात्र के जल से अपना मुख धोया जिससे नीच के शिवलिंग पर जल गिर पड़ा। इस प्रकार उसने सभी विधियों से शिव की पूजा की, अर्थात् स्नापन किया (नहलाया ), बेल की पत्तियाँ चढ़ायीं, रात्रि भर जागता रहा और उस दिन भूखा ही रहा। वह नीचे उतरा और एक तालाब के पास जाकर मछली पकड़ने लगा। वह उस रात्रि घर न जा सका था, अतः उसकी पत्नी for अन्न-जल के पड़ी रही और चिन्ताग्रस्त हो उठी । प्रातःकाल वह भोजन लेकर पहुँची, अपने पति को एक नदी के दूसरे तट पर देख भोजन को तट पर ही रखकर नदी को पार करने लगी। दोनों ने स्नान किया, किन्तु इसके पूर्व कि किरात भोजन के पास पहुँचे, एक कुत्ते ने भोजन चट कर लिया। पत्नी ने कुत्ते को मारना चाहा, किन्तु पति ने ऐसा नहीं करने दिया, क्योंकि उसका हृदय पसीज चुका था । तब तक ( अमावास्या का ) मध्याह्न हो चुका था। शिव के दूत पति-पत्नी को लेने आ गये, क्योंकि किरात ने अनजाने में शिव की पूजा कर ली थी और दोनों चतुर्दशी पर उपवास किया था। दोनों शिवलोक को गये । पद्मपुराण ( ६ । २४०/३२ ) में इसी प्रकार एक निषाद के विषय में उल्लेख हुआ है । शिवरात्रि की प्रमुख बात के विषय में मतभेद है । तिथितत्त्व ( पृ० १२५ ) के अनुसार इसमें उपवास प्रमुखता रखता है, उसमें शंकर के कथन को आधार माना गया है- 'मैं उस तिथि पर न तो स्नान, न वस्त्रों, न धूप, न पूजा, न पुष्पों से उतना प्रसन्न होता हूँ जितना उपवास से ।' किन्तु हेमाद्रि, माधव आदि ने उपवास, पूजा एवं जागरण तीनों को महत्ता दी है ( हे०, काल, पृ० ३०९ - ३१० ; का०वि०, पृ० २८९, स० म०, पृ० १०१ ) | देखिए स्कन्दपुराण (नागर खण्ड ) । कालनिर्णय ( पृ० २८७ ) में 'शिवरात्रि' शब्द के विषय में एक लम्बा विवेचन उपस्थित किया गया है। क्या यह 'रूढ' है ( यथा कोई विशिष्ट तिथि ) या यह 'यौगिक' है (यथा प्रत्येक रात्रि, जब शिव से सम्बन्धित कृत्य सम्पादित हो), या 'लाक्षणिक' (यथा व्रत, यद्यपि शब्द तिथि का सूचक है) या 'योगरूढ' है ( यौगिक एवं रूढ, यथा 'पंकज' शब्द ) । निष्कर्ष यह निकाला गया है कि यह शब्द पंकज के सदृश योगरूढ है जो कि पंक से अवश्य निकलता है (यहाँ यौगिक अर्थ है ), किन्तु वह केवल पंकज ( कमल) से ही सम्बन्धित है (यहाँ रूढि या परम्परा है) न कि मेढक से । ६. एवमज्ञानतः पुण्यं ज्ञानात्पुण्यमथाक्षयम्। गरुड़ ० ( १।१२४|११ ) । लुब्धकः प्राप्तवान्पुण्यं पापी सुन्दरसेनकः ॥ अग्नि० ( १९३।६) । ७. तथा च स्कन्दपुराणे । एवं द्वादशवर्षाणि शिवरात्रिमुपोषकः । यो मां जागरयते रात्रिं मनुजः स्वर्गमादहेत् ॥ शिवं च पूजयित्वा यो जागत च चतुर्दशीम् । मातुः पयोधररसं न पिबेत् स कदाचन ॥ नागरखण्डे । स्वयम्भूलिंगमभ्यर्च्य सोपवासः सजागरः । अजानन्नपि निष्पापो निषादो गणतां मतः ॥ हे० (काल, पृ० ३०९-३१० ) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002792
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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