SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 99
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०९२ धर्मशास्त्र का इतिहास ब्रह्मकृच्छ-देखिए हेमाद्रि का प्रायश्चित्त (१०९६३), जहाँ देवल एवं मार्कण्डेय का उल्लेख है। यह १२ दिनों का प्रायश्चित्त है, जिसमें प्रति दिन मध्याह्न में पंचगव्य पीया जाता है और पीने के पूर्व किसी मंदिर या गोशाला में मन्त्रों के साथ अग्नि में उसकी आहतियाँ दी जाती हैं। संध्या तक विष्णु का ध्यान किया जाता है। किसी देवप्रतिमा के पास सोया जाता है और ताम्बूल एवं अञ्जन का प्रयोग छोड़ दिया जाता है। महातप्तकृच्छ-देखिए तप्तकृच्छ। महासान्तपन--याज्ञ० (३।३१४), मनु (११।२१२ =बौ० ध० सू० ४।५।११-शंख १८१८ बृहद्यम १११३), अत्रि (११७-११८), विष्णु (४६।२०) के मत से सान्तपन दो दिनों तक चलता है; प्रथम दिन गोमूत्र, गोबर, दुग्ध, दधि, घृत एवं कुशोदक अर्थात् पंचगव्य लिया जाता है और दूसरे दिन पूर्ण उपवास किया जाता है। महासान्तपन प्रायश्चित्त में, लौगाक्षिगुह्यसूत्र (७३), याज्ञ० (३।३१५= देवल ८२=अत्रि ११८-११९) के मत से, प्रति दिन उपयुक्त छः पदाथों में कम से एक-एक का ग्रहण होता है और सातवें दिन पूर्ण उपवास किया जाता है। शंख (१९१९), बौ० ध० सू० (४।५।१७) एवं जाबाल के मत से महासान्तपन २१ दिनों का होता है, तीन-तीन दिनों तक उपर्युक्त छ: पदार्थ ग्रहण किये जाते हैं और अन्तिम तीन दिनों तक उपवास किया जाता है। यम ने १५ दिनों के महासान्तपन का उल्लेख किया है जिसमें कम से तीन-तीन दिनों तक गोमूत्र, गोबर, दुग्ध, दधि एवं घृत ग्रहण किये जाते हैं। महेश्वरकृच्छ--देखिए हेमाद्रि (प्रायश्चित्त, पृ० ९६१) जहाँ देवल का हवाला देकर यह कहा गया है कि मदन का नाश करने पर महेश्वर के लिए यह प्रायश्चित्त ब्रह्मा ने व्यवस्थित किया था। इसमें अपराह्न के समय व्यक्ति को खपड़ा (कपाल, अर्थात् मिट्टी के पात्र का टुकड़ा) लेकर तीन विद्वान् ब्राह्मणों के यहाँ शाक की भिक्षा मांगनी चाहिए और उसे भगवान को निवेदन कर खाना चाहिए तथा सायं देवप्रतिमा के निकट सोना चाहिए। दूसरे दिन उठने के उपरान्त व्यक्ति को एक गौ का दान एवं पंचगव्य ग्रहण करना चाहिए। मूलकृच्छ--विष्णु (४६।१५) के अनुसार इसमें केवल मृणाल खाना चाहिए, किन्तु मिता० (याज्ञ० ३।३१६) के मत से मूलों (जड़ में उत्पन्न होनेवाले खाद्य पदार्थ, यथा कन्द आदि) का व्यवहार करना चाहिए। मैत्रकृच्छ--प्रायश्चित्तप्रकाश ने इसका उल्लेख किया है। इसकी विशेषता यह है कि सान्तपनवत् इसमें तीसरे दिन कपिला गाय का दूध ग्रहण किया जाता है। इस ग्रन्थ ने कल्पतरु के मत की चर्चा की है जिसके अनुसार यह सान्तपन ही है जिसमें प्रथम दिन पंचगव्य के सारे पदार्थ ग्रहण किये जाते हैं, फिर दो दिन उपवास किया जाता है। यज्ञकृच्छ्--अंगिरा (प्राय० सार, पृ० १८२, स्मृतिमुक्ता०, प.० ९३९) ने इसे एक दिन का व्रत माना है। और यों कहा है-पापी को तीन बार स्नान करना चाहिए, जितेन्द्रिय एवं मौन रहना चाहिए, प्रातः स्नान के उपरान्त आरंभ में ओम् एवं व्याहृतियों के साथ १००८ बार गायत्री का जप करना चाहिए। जप करते समय वीरासन से रहना ब्रह्मकर्बोपवासस्तु दहत्यग्निरिवेन्धनम् ॥' जिसे प्रायः सार (पृ० १८९) ने पराशर का माना है। किन्तु पराशर (११॥३७-३८) में यों आया है--'यत्त्व . . .देहिनाम् । ब्रह्मकूर्ची दहेत्सर्व प्रदीप्ताग्निरिवेन्धनम् ॥' २३. षण्णामेकैकमेतेषां त्रिरात्रमुपयोजयेत् । व्यहं चोपवसेदन्त्य महासान्तपनं विदुः॥ जाबाल (अपराक, पृ० १२३४; परा० मा० २, भाग १, पृ० ३१)। व्यहं पिबेत्तु गोमूत्रं व्यहं वै गोमयं पिबेत् । म्यहं दधि व्यहं क्षीरं यहं सर्पिस्ततः शुचिः॥ महासान्तपनमेतत्सर्वपापप्रणाशनम् । यम (मिता०, याज्ञ० ३३१५, प्राय० सार पृ० १९१, परा० मा० २, भाग १, पृ० ३१)। २४. बिसाभ्यवहारेण मूलकृच्छः। विष्णु० (४६।१५) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy