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________________ अस्पृश्य-स्पर्श, जातिभ्रष्टों, धर्मान्तरगतों, व्रात्यों का शुद्धीकरण है कि चाण्डाल एवं तुरुष्क (तुर्क) समान रूप से नीच हैं। देखिए इस विषय में इस ग्रन्थ का खण्ड २, अध्याय ४ । अत्रि, शातातप, बृहस्पति आदि ने धार्मिक उत्सवों, वैवाहिक जुलूसों, युद्ध, अग्नि लगने, आक्रमण होने तथा अन्य आपत्तियों के समय में अस्पृश्यता के आधार पर शुद्धीकरण की आवश्यकता नहीं ठहरायी है। ___ दान-ग्रहण में ब्राह्मणों के समक्ष स्मृतियों ने उच्च आदर्श रखे हैं। सामविधानब्राह्मण (१।७।१-२) ने व्यवस्था दी है कि कोई ब्राह्मण विपत्ति न पड़ने पर किसी क्षत्रिय से दान ग्रहण करता है तो उसे एक मास तक केवल दिन में एक बार भोजन करना चाहिए। जल में खड़े होकर 'महत् तत् सोमो महिषश्चकार' (सामवेद १।६।१।५।१०, संख्या ५४२) का पाठ करना चाहिए और यदि वह किसी वर्जित व्यक्ति से दान लेता है तो उसे कृच्छ प्रायश्चित्त करना चाहिए, तथा 'त्रिकद्रुकेषु' (सामवेद १।५।३।१, सं० ४५७) का पाठ करना चाहिए। याज्ञ० (१११४०) का कथन है कि ब्राह्मण को कृपण या लोभी एवं शास्त्रविरुद्ध कार्य करनेवाले राजा से दान नहीं लेना चाहिए। मनु (११।१९४, विष्णु ५४।२४) के मत से न लेने लायक दान के ग्रहण एवं गहित व्यक्ति के दान ग्रहण से जो पाप लगता है उससे छुटकारा तीन सहस्र गायत्री-जप से या एक मास में केवल दूध पर रहने या एक मास तक गोशाला में रहने से हो जाता है। यह अवलोकनीय है कि मन (१०।१०२-१०३) एवं याज्ञ० (३।४१) ने आपत्ति से ग्रस्त ब्राह्मण को किसी से भी दान लेने या भोजन ग्रहण करने, किसी को भी पढ़ाकर जीविका चलाने की अनुमति दी है और कहा है कि ब्राह्मण तो गंगा के जल एवं अग्नि के समान पवित्र है, उस पर इस कृत्य से पाप नहीं लगता, क्योंकि जो पवित्र है वह भी अशुद्ध हो सकता है ऐसा कहना तर्कहीन (अनुचिन) है। किन्तु मनु (१०।१०९) ने अपात्र से दान लेने के कर्म को अपात्र को शिक्षा देने या उसका पौरोहित्य करने से अधिक बुरा माना है। ब्राह्मण को वर्जित पदार्थ बेचना मना है, यथातिल, तैल, दधि, क्षौद्र (मधु ), नमक, अंगूर, मद्य, पक्वान्न, फुरुष या नारी दासी, हाथी, घोड़ा, बैल, सुगन्धि पदार्थ, रस, क्षौम (रेशमी वस्त्र), कृष्णाजिन (काले हरिण की खाल), सोम, उदक (जल), नीली (नील रंग); इन्हें बेचने से वह तुरत पापयुक्त हो जाता है। प्रायश्चित्त-स्वरूप उसे सिर मुंडाकर साल भर तप्त कृच्छं करना चाहिए, दिन में तीन बार जल-प्रवेश करना चाहिए, एक ही गीला वस्त्र पहने रहना चाहिए, मौन व्रत धारण करना चाहिए, वीरासन करना चाहिए, रात में बैटना एवं दिन में खड़ा रहना चाहिए और गायत्री का जप करना चाहिए। ___म्लेच्छों द्वारा बलपूर्वक अपने धर्म में लिये गये हिन्दुओं के शुद्धीकरण के विषय में कुछ स्मृतियों एवं निबन्धों के वचन हैं। 'म्लेच्छ' शब्द के अर्थ के विषय में मतैक्य नहीं है । शतपथ ब्राह्मण (३।२।११२३-२४) से पता चलता है कि वे अशुद्ध भाषा का प्रयोग करते थे, यथा 'हेऽरयः' को हेलयः' कहते थे। पराशर (९।३६) ने म्लेच्छों को गोमांसभक्षक कहा है। प्राय० त० (पृ० ५४९) ने स्मृतिवचन उद्धृत करके कहा है कि म्लेच्छ गोमांसखादक एवं विरोधी वचन वि०, पृ० ४७२-४७३)। रजकश्चर्मकृच्चैव व्याधजालोपजीविनौ। निर्णेजकः सौनिकश्च ठकः शैलूषकस्तथा। मुखभगस्तथा श्वा च वनिता सर्ववर्णगा। चक्री ध्वजी वध्यघाती ग्राम्यशूकरकुक्कुटौ । एभिर्यदङ्ग संस्पृष्टं शिरोवर्ज द्विजातिषु । तोयेन झालनं कृत्वा आचान्तः शुचितामियात् ॥ शातातप (प्राय० वि०, पृ० ४७३ एवं स्मृतिचन्द्रिका १, पृ० ११९)। प्राय० वि० ने 'ठक' का अर्थ 'धूर्त' बताया है और यह आज 'ठग' शब्द का मौलिक रूप लगता है। स्मृतिचन्द्रिका ने 'नटः' के स्थान पर 'ठकः' पढ़ा है और उसे एक जातिविशेष माना है। रजकश्चर्मकारश्च नटो बुरुरु एव च। कैवर्तमेदभिल्लाश्च स्वर्णकारश्च सौविकः (सौविदः?) ॥ कारुको लोहकारश्च शिलाभेदी तु नापितः। तक्षकस्तिलयन्त्री च सूनश्चक्री तथा ध्वजी। एते षोडशधा प्रोक्ताश्चाण्डाला प्रामवासिनः॥ गरुडपुराण (हेमाद्रि प्रायश्चित्त, पृ० ३८ एवं पराशर के उद्धरण के लिए पृ० ३१६)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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