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________________ धर्मशास्त्रीय ग्रन्थसूची शत्रुघ्नी। शाट्यायन--(या-निस्मृति) जीमूत० के कालविवेक में शत्रुमित्रोपशान्ति । __एवं अपरार्क द्वारा व०। शम्यादान। शाण्डिल्यगृह्य---द्रदत्त द्वारा व०। आपस्तम्बश्रौतसूत्र कारवक्षस्मृति -वतप्रकाश या व्रतराज में व०। (९।११।२१) पर। शाकटायनस्मृति--अपरार्क एवं श्राद्धमयूख द्वारा उल्लि- शाण्डिल्यधर्मशास्त्र--(पद्य में) गर्भाधानादिसंस्कार, खित। ब्रह्मचारिधर्म, गृहस्थविहितधर्म, गृहस्थनिषिद्धधर्म, शाकलस्मृति-व्यवहारमयूख एवं दत्तकमीमांसा में वर्णवर्म, देहशोधन, सावित्रीजपादि, चतुर्वर्णदोष पर। उल्लिखित। दे० ट्राएनीएल कैट० मद्रास, पाण्डु० १९१९-२१ शांखायनगृह्यकारिका। - (जिल्द ४, पृ० ५१५३) के लिए। शांखायनगृहनिर्णय। शाण्डिल्यस्मृति--मिता० (याज्ञ० ३।२८०), स्मृतिच०, शांखायनगुद्यपरिशिष्ट--नि० सि० एवं संस्कारकौस्तुभ मस्करिभाष्य (गौतमधर्मसूत्र) द्वारा व० । भागवता___ में उल्लिखित। चार पर ५ अध्यायों में। मद्रास गवर्नमेण्ट पाण्डु० शांखायनगृह्यसंस्कारपति-विश्वनाथ कृत। (जिल्द ५, पृ० १९९१); बड़ोदा (सं० ७९६६)। शांखायनगृह्यसंस्कार-ईजट के पुत्र वासुदेव द्वारा शातातपस्मृति---गद्य-पद्य-मिश्रित । शुद्धि एवं आचार (बनारस सी० द्वारा प्रका०) । स्टीन (पृ० १९; पर। इंडि० आ० (पृ० ३९८) । संवत् १४२८)। शातातपस्मृति--दे० प्रक० २८। जीवानन्द (भाग २, शाखापनगृह्यसूत्र-ओल्डेनवर्ग द्वारा इण्डिश्चे स्टू डिएन में पृ० ४३५-४५५) एवं आनन्दाश्रम (पृ० ३९६ सम्पा०, जिल्द १५, पृ० १-१६६ एवं सै० बु० ई० ४१०) द्वारा प्रका०। (जिल्द २९) द्वारा अनूदित । टो० (भाष्य) शातातपस्मृति-४७ अध्यायों एवं २३७६ श्लोकों में। हरदत्त द्वारा; शुद्धितत्त्व के मत से कल्पतरु द्वारा उ० नो० (जिल्द २, पृ० ४) । ११०० ई० के पूर्व । टी० (केवल ४ अध्यायों पर), शान्तिकमलाकर---(या शान्तिरत्न) कमलाकर भट्ट नो० (जिल्द १, पृ० २-४) । टी. प्रयोगदीप, द्वारा । अपशकुनों की शान्ति पर। दे० प्रक० १०६ । धरणीधर के पुत्र दयाशंकर द्वारा। टी० अर्थदर्पण, बम्बई में मुद्रित। रघुनाथ द्वारा। टी० गृह्यसूत्रपद्धति या आधानस्मृति, शान्तिकल्पदीपिका-गृह्याग्नि में मेढक पड़ने, पल्लीपतन, श्रीवरमालवात्मज शिवदास-पुत्र सूर्यदाससूनु राम- मूल या आश्लेषा नक्षत्र में पुत्रोत्पत्ति आदि पर शान्ति चन्द्र द्वारा। टी० गृह्मप्रदीपक, श्रीपतितनुज कृष्णाजी के कृत्यों पर। द्विवेदी के पुत्र नारायण द्वारा। गुजरात स्थित शान्तिकल्पप्रदीप--(या कृत्यापल्लवदीपिका) श्री श्रीपाटलापुरी के नागर कुल से सम्बन्धित वंशावली कृष्ण विद्यावागीश द्वारा। विरोधियों को मोहित दी हुई है। श्रीपति उस कुल के चण्डांशु से आठवें थे। करने, वश में करने या मारने के मन्त्रों पर। पाण्डु० १६२९ (वर्षे नन्दकरतुचन्द्रसंमिते माघे आदि) संवत् तिथि संवत् १८५१ । (सम्भवतः विक्रम संवत् ) में प्रणीत। लेखक ने गृह्य- शान्तिकल्पलता-अज्ञात। सूत्रपद्धति भी लिखी। अलवर एवं ड० का पाण्डु० शान्तिकल्याणी।। (सं०६, १८७९-९०।। टी० बालावबोधपद्धति। शान्तिकविधि--वसिष्ठ कृत। २१३ श्लोकों में। देखिए शांखायनाहिक-(या-ह्निकदीपिका) वत्सराज के पुत्र वासिष्ठीभाष्य, ऊपर । वसिष्ठ ने राम से यह कहा है अचल द्वारा। लग० १५१८ ई०। कि किस प्रकार वे (राम), रावण, पाण्डव लोग एवं १३० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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