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________________ धर्मशास्त्र का प्रतिहास व्रतविवेकभास्कर-कृष्णचन्द्र द्वारा। वात्यताशुद्धि-स्टीन (पृ० १०५)। व्रतसंग्रह-कर्णाटवंश के राजा हरिसिंह के आदेश से बात्यताशुद्धिसंग्रह-चौखम्भा सं० सी० द्वारा प्रका० । प्रणीत। १४वीं शताब्दी का प्रथम चतुर्थांश। वात्यस्तोमपद्धति-माधवाचार्य द्वारा। नो० न्यू० व्रतसम च्चय--निर्णयदीपक द्वारा व०। (जिल्द ३, पृ० १९४) । वात्य का अर्थ है पतितव्रतसंपात। सावित्रीका व्रतसागर-चण्डेश्वर द्वारा वर्णित । शकुनार्णव-(या शकुनशास्त्र या शाकुन) वसन्तराज व्रतसार--गदाधर द्वारा। द्वारा । दे० वसन्तराजीय के अन्तर्गत। टी० भानुव्रतसार-दलपति द्वारा (नृसिंहप्रसाद का एक अंश)। चन्द्रगणि द्वारा। व्रतसार--श्रीदत्त द्वारा। दे० प्रक० ८९। शंकरगीता--जीमूतवाहन के कालविवेक में एवं हेमाद्रि वताचार--गंगोली सञ्जीवेश्वर शर्मा के पुत्र रत्नपाणि द्वारा व०। १००० ई० के पूर्व । शर्मा द्वारा खण्डबल कुल के छत्रांसह- पुत्र रुद्रसिंहा- शंकुप्रतिष्ठा---गृह बनाने के लिए नींव रखते समय के त्मज मिथिला के राजा महेश्वरसिंह की आज्ञा से कृत्यों पर। लिखित। श्रीदत्त को अपने आधार के रूप में एवं शंकरभद्री। ज्योतिर्बन्ध को उ० किया है। शंखचक्रधारणवाद-पीताम्बर के पुत्र पुरुषोत्तम द्वारा। वतार्क-गदाधर दीक्षित द्वारा। बड़ोदा (७३६) वतार्क---नीलकण्ट के पुत्र शङ्कर द्वारा। १६२०-१६७५ शंखधरसमच्चय-जीमत के कालविवेक में उल्लिखित । ई. के बीच में। इन्होंने कुण्डभास्कर सन् १६७१ में शंखलिखितधर्मसूत्र-दे० प्रक० १२ । टी० कल्पतरु लिखा है। सन् १८७७ एवं १८८१ में लखनऊ में एवं वि० र० में व०। . मुद्रित हुआ। शंखलिखितस्मृति-दे० प्रक० १२; आनन्दा० (पृ. व्रतोद्योत-दिनकरोद्योत का एक अंश । ३७२-३७३) द्वारा प्रका। व्रतोद्यापन। शंखस्मृति-दे० प्रक० १२; जीवानन्द (भाग २, पृ० व्रतोद्यापनकीनदी-शकर द्वारा। ले० वल्लालसूरि के ३४३-३७४) एवं आनन्दाश्रम (पृ० ३७४-३९५) पुत्र, 'घोर' उमाधिवारी एवं चित्तपावन साखा के द्वारा मुद्रित । थे। इन्होंने गांधापनकौमुदी भी लिखी और अपनी शतक्रतुस्मृति- मद० पारि० में उल्लिखित । रुद्रानुष्ठानकौमुदी की ओर भी संकेत किया है। शतचण्डीपद्धति-गोविन्द द्वारा। शक १६२५ (शाके शरद्वयाङ्गचन्द्रे) अर्थात् १७०३- शतचण्डीप्रयोग-नारायणभट्ट के पुत्र कृष्णभट्ट द्वारा। ४ ई० में प्रणीत । ज्ञानदर्पण प्रेस, बम्बई में मुद्रित शतचण्डीविधानपति-जयरामभद्र द्वारा। (१८६३ ई.) शतचण्डीविधानपूजापति-दे० स्टीन (पृ० २३७) । व्रतोद्यापनकौमुदी-रामकृष्ण द्वारा। हेमाद्रि पर शतचण्डीसहस्त्रचण्डीप्रयोग--कमलाकर द्वारा (उनके आवृत! गाड़ों के व्रतों पर। शांतिरत्न से)। व्रतोपवाससंग्रह--निर्भयराम भट्ट द्वारा। शतवयी-प्रायश्चित्त पर। दे० प्रायश्चित्तशतद्वयी। टी. वात्यताप्रायश्चित्तनिर्णय-(नागोजिभट्ट के प्रायश्चित्ते- प्रायश्चित्तप्रदीपिका। न्दुशेखर से उद्धृत । इसमें निर्णय हुआ है कि आधुनिक शतश्लोकी- यल्लभट्ट द्वारा। राजकुमार उपनयन सम्पादन के अधिकारी नहीं हैं। शतश्लोकी-वेंकटेश द्वारा। बृहत् एवं लघुरूप में चौखम्भा सं० सी०द्वारा प्रका०। शतानन्दसंग्रह-गदाधर के कालसार में व०। Jain Education International For Private & Personal Use Only . www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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