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________________ धर्मशास्त्रीय ग्रन्थसूची १५९५ में व०। रामार्चनचन्द्रिका--रघु के तिथितत्त्व में तथा नि० सि० विशाल ग्रन्थ। बड़ोदा (सं० १०९४६) में १३ _में व०। प्रकरण हैं; सम्भवतः इससे अधिक प्रकरण रामार्चनचन्द्रिका---अच्युतानम द्वारा। रामार्चनचन्द्रिका--परमहंसपरिव्राजकाचार्य श्रीमन्मुकुन्द रुद्रपद्धति--(१) कर्ण के पुत्र परशुराम द्वारा। लेखक वन के शिष्य आनन्द वन यति द्वारा। पाँच पटलों में औदीच्य ब्राह्मण था। महारुद्र के रूप में शिवपूजा का ड० का० पाण्डु ० ४४०, १८९१-९५; तिथि शक वर्मन है। द्रजपप्रशंसा, कुण्डमण्डपलक्षण पीठपूजा१६०७, अर्थात् १६८५ ई०)। चार पटलों में। विधि, न्यासविधि पर कुल १०२८ श्लोक हैं। सं० वसिष्ठ से गौड़पाद, गोविन्द, शङ्कराचार्य, विश्वरूप, १५१५ (१४५८- ई०) में प्रगीत। इसका 'भद्र सुरेश्वर तक की गुरु परम्परा का उल्लेख है। टी० कारिका' नाम भी है। (२) इसी विषय पर एक लघुदीपिका, गदाधर द्वारा। अन्य छोटा निबन्ध, भमिका कुछ अंश में समान है। रामार्चनचन्द्रिका-कुलमणि शुक्ल द्वारा। १४७८-१६४३ ई० के बीच में प्रणीत (इण्डि० आ०, रामार्चनदर्पण--अलवर (सं० १४३५) । पृ० ५८४)। (३) विश्वनाथ के पुत्र अनन्तदीक्षित रामार्चनदीपिका। द्वारा। बड़ोदा (पाण्डु०८०३०; तिथि सं० १८०९ रामार्चनपठति---रामानन्द द्वारा। अर्थात् १७५२-३ ई०)। (४) तैत्तिरीयशाखा के रामार्चनरत्नाकर--केशवदास द्वारा। अहल्याकामधेनु अनुसार द्रप्रयोग का विवरण, यद्यपि रुद्र सभी शाखाओं में वाचित होता है। आया है-स्मार्तरामार्चनपद्धति---शुद्धितत्त्व एवं श्राद्धतत्त्व (पृ० २१२) रुद्रप्रयोगस्य बौधायनसूत्रमूलकत्वेन बहू वृचादीनां च ___ में रघु० द्वारा व०। तत्र बौधायनं ग्राह्यम् । स्टपंचधा रूपं रुद्री लघुरुद्रो रामसिंहप्रकाश---गदाधर द्वारा। महारुद्रोऽति द्रश्चेतिएकादशगणवद्धया। सर्वञ्च त्रेधा रासयात्रापति--रघु० द्वारा। दे० प्रक० १०२। जपरुद्रो होमरुद्रोऽभिषेकरुद्रश्चेति।' इण्डि० आ. रासयात्रावितेक-शलपाणि द्वारा। दे० प्रक० ९५। (१० ५८०, सं० १७८३; पाण्ड० की तिथि सं० कलशस्थापनविधि-नारायण के पुत्र रामकृष्ण द्वारा। १५८७, १५३०-३१ ई.)। रूपनाथ कई बार खकल्प। खकल्पतर-(१) अज्ञात (बर्नेल, तंजौर, पृ० १३८ रुद्रपद्धति-- (मैत्रायणीय) बड़ोदा (सं० २४५२) । ए), सं० १७१४ (१६५७-८ ई०); (२) विश्वे- रुद्रपद्धति--आपदेव द्वारा। श्वर के पुत्र द्वारा। रुद्रपद्धति-सदाशिव के पुत्र काशीदीक्षित द्वारा। खकल्पाम--(या महारद्रपद्धति) उद्धव द्विवेदी (काशी इसे रुद्रानुष्ठानपद्धति एवं महारुद्रपद्धति भी कहा निवासी) के पुत्र अनन्तदेव द्वारा। हेमाद्रि, टोडरा- जाता है। नन्द, प्रयोगपारिजात, रुद्रकारिका (परशुराम- रुद्रपद्धति--रामेश्वरभट्ट के पुत्र नारायणभट्ट द्वारा। लिखित), नि० सि० का उल्लेख है। १६४० ई० 'यद्यप्यनेकासु शाखासु रुद्रः पठ्यते तथापि तैत्तिरीय के उपरान्त। शाखानुसारेण रुद्रः पठ्यते।' खचिन्तामणि-( या रद्रपद्धति ) विश्राम के पुत्र रुवपद्धति-रामकृष्ण के पुत्र भास्करदीक्षित द्वारा। शिवराम द्वारा (छन्दोगों के लिए)। बड़ोंदा (सं० (शांखायनगृह्य के अनुसार)। ८०१८)। रुखपद्धति-रेणुक द्वारा। पाण्डु० की तिथि १६०४ सं० • खजपसिद्धान्तशिरोमणि-रामचन्द्र पाठक द्वारा। एक (१६८२ ई.) है (बीकानेर, पृ० ६०१)। १२८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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