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________________ १५५० काएँ (यद्यपि वे मुख्यतः श्रौतकृत्यों से सम्बन्धित हैं ) धर्मशास्त्र-ग्रन्थों में उद्धृत | लेखक ने धर्म के कतिपय विषयों की चर्चा कर दी है, यथा मलमास (१।१६५-१७७), गौणकाल आदि । हेमाद्रि एवं मदनरत्न द्वारा व०, अतः तिथि १००० ई० के उपरान्त एवं १२०० ई० के पूर्व है । दे० डा० भण्डारकर की रिपोर्ट (१८८३-८४, पृ० ३०-३१) । टी० विवरण | टी० पदप्रकाशिका | त्रिकाल संध्या । धर्मशास्त्र का इतिहास त्रिपिण्डीश्राद्धप्रयोग — ओफेट, ५९१ । त्रिपुष्करशान्तितत्त्व - रघुनन्दन कृत । दे० प्रक० १०२ । त्रिविक्रमपद्धति - नि० सि० में व० । दण्डनीतिप्रकरण --- ( शम्भुराज की नीतिमञ्जरी से उद्धरण) । दण्डविवेक गण्डक मिश्र के छोटे भाई एवं भवेश के पुत्र तथा बिल्वपंचग्रामनिवासी वर्धमान द्वारा । सात परिच्छेदों में; १५वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में; अपराधों, दण्डनिर्णयाधिकार, दण्ड के विभिन्न स्वरूपों पर । नो० (जिल्द ५, पृ० २२५, सं० १९१० मिथिला के राजा के लिए लिखित । कल्पतरु, कामधेनु, हलायुध, धर्मकोश, स्मृतिसार, कृत्यसार, रत्नाकर, पारिजात, व्यवहारतिलक, प्रदीपिका एवं प्रदीप को अपने लिए प्रामाणिक माना है । यह उनके स्मृतितत्त्वविवेक का एक अंश है। त्रिस्थलोविधि -- हेमाद्रि द्वारा । दत्तककुठार | त्रिस्थली सेतु -- जयराम भट्ट के पुत्र काशीनाथ भट्ट दत्तकौमुदी - ५८४०)। द्वारा । - रामजय तकलिंकार द्वारा (बंगला लिपि में कलकत्ता से १८२७ ई० में प्रका० ) । दत्तकशिरोमणि में संक्षेप; पी० सी० टैगोर के संरक्षण में प्रका० । दत्तकौस्तुभ - केदारनाथ दत्त द्वारा । कलकत्ता में त्रिस्थलसेतु - रामेश्वर भट्ट के पुत्र नारायण भट्ट द्वारा (आनन्दा०, पूना में प्रका० ) प्रथम भाग में सभी तोर्थो से सम्बन्धित कृत्यों का विवेचन है और आगे प्रयाग, काशी एवं गया की तीर्थयात्रा पर विशेष रूप से वर्णन है । लग० १५५०-६० ई० में प्रणीत । त्रिस्थलीसेतुप्रघट्टक नागेश द्वारा । - त्रिस्वलीसेतुसार-- ( या सारसंग्रह या तीर्थयात्राविधि ) भट्ट द्वारा । त्रैलोक्यसागर - वाचस्पति मिश्र द्वारा अपने द्वैतनिर्णय में व०; अतः १४०० ई० से पूर्व । त्रैलोक्यसार - हेमाद्रि, रघुनन्दन द्वारा एवं दानमयूख त्रिविक्रमी - ( म्लेच्छों आदि के भय से स्थानान्तरण करने पर मूर्ति प्रतिष्ठापन के नियम ) नो० (जिल्द ९, पृ० २९५ ) । त्रिवेणीपद्धति - दिवाकर भट्ट द्वारा ( बड़ोदा, सं० में व० । त्रैवणिकसंन्यास- कैलास यति द्वारा । विक्रमी दे० 'त्रिविक्रमपद्धति' । वक्षस्मृति — दे० प्रक० ४३ । जीवा० ( भाग २, पृ० Jain Education International ३८३-४०२ ) एवं आनन्दा० ( पृ० ७२-८४) में प्रका० । टी० कृष्णनाथ द्वारा। टी० तकनलाल द्वारा । दक्षिणद्वारनिर्णय - नारायण दारा (बड़ोदा, सं० ९१७५)। दण्डकशान्ति । प्रका० । दत्तचन्द्रिका कुबेर पण्डित द्वारा । कलकत्ता से १८५७ ई० में प्रका०, बड़ोदा में मराठी अनुवाद के साथ प्र०, १८९९ । अन्तिम श्लोक की व्याख्या से पता चलता है कि यह रघुमणि द्वारा लिखित है। ऐसा कहा जाता है कि कोलब्रुक के एक पण्डित की यह कपट - रचना है। लेखक का कथन है कि उसने एक स्मृतिचन्द्रिका भी लिखी है। टी० रामेश्वर शुक्ल द्वारा । दत्तचन्द्रिका --- कोलप्पाचार्य द्वारा । दत्तकचन्द्रिका --- श्रीनिवासाचार्य के पुत्र तोलप्पर द्वारा ( बड़ोदा, सं० ६५७२ बी) । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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