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________________ मशास्त्रीय ग्रन्यसूची तीर्थयात्रानिर्णय | तीर्थरस्नाकर -- ( या रामप्रसाद ) पराशर गोत्रीय मानव के पुत्र रामकृष्ण द्वारा । पाण्डु०, सं० १६९० (१६२४-२५ ई० ) । लेखक ने सं० १६०० में काशो में शास्त्रदीपिका पर युक्तिस्नेहप्रपूरणी नामक टो० लिखो । ये प्रतापमार्तण्ड के भी लेखक हैं। लग० १५००-१५४५ ई० । तीर्थसंग्रह - श्रीवर द्वारा स्मृत्यर्थसार में व० । तीर्थसंग्रह - साहेबराम द्वारा । तोर्बसार -- नृसिंहप्रसाद का एक भाग । तीर्थसेतु - वृन्दावन शुक्ल द्वारा । तीसौख्य टोडरानन्द का एक अश । तीर्येन्दुशेखर - शिवभट्ट के पुत्र नागोजिभट्ट द्वारा । दे० प्रक० ११० । तीर्थोद्यापनकौमुदी -- बल्लालसूरि के पुत्र शंकर द्वारा । दे० 'व्रतोद्यापनकौमुदी' । लग० १७५३ ई० । तुलसीकाष्ठमालाषारगनिषेध -- नरसिंह द्वारा ( बड़ोदा, सं० ३८९४) । तुलसीचन्द्रिका - राजनारायण मुखोपाध्याय द्वारा । तुलसीविवाह-- ( प्रतापमार्तण्ड से लिया गया ) अलवर (सं० १३३४, उद्धरण ३१३) । तुलादान । तुलादानपद्धति । तुलादानपुरुषप्रयोग | तुलादानप्रकरण -- सिद्धनाथ द्वारा । तुलादानप्रयोग -- (माध्यन्दिनीय ) । तुलादानप्रयोग - रामकृष्ण के पुत्र कमलाकर द्वारा । दे० प्रक० १०६। तुलादानविधि । तुलापद्धति कमलाकर द्वारा । तुलापुरषदानपद्धति । तुलापुरुषवानप्रयोग - विट्ठल द्वारा । तुलापुरुष महादानपद्धति - पोनाथ द्वारा । तुलापुरुष महादानप्रयोग - (या तुलादानविधि ) श्वर के पुत्र नारायण भट्ट द्वारा । दे० प्रक० १०३ । रामे Jain Education International १५४९ त्रिलोकी--- (या आशीर्वात्रिंशच्छ्लोकी) बोपदेव द्वारा । क्या यह निम्नोक्त ही है ? त्रिशच्छ्लोकी - ( या आशोचत्रिंशच्छ्लोकी या सूतककारिका) टोका के साथ सन् १८७६ में काशी से प्रका० । आशीच पर ३० स्रग्धरा छन्दों में अलवर ( सं० १३३९) में यह बोपदेव की कहो गयी है । दे० बी० बी० आर० ए० एस० (जिल्द ३, पृ० २०९-२१०), जहाँ यह हेमाद्रि की कही गयी है । टी० विवरण, रामेश्वर पुत्र माधव के पुत्र रघुनाथ भट्ट द्वारा; लग० १५६०-१६२५ में । टोका पर टीका विवरणसारोद्वार, बालकृष्ण के पुत्र शम्भुभट्ट कविमण्डन द्वारा ; नि० सि०, मयूख, भट्टोजिदीक्षित के नाम आये हैं । १६६०-१७१० ई० के बीच । लेखक का कथन है कि उसने त्रिशच्छ्लोकी पर रघुनाथ की टोका का अनुसरण किया है। ठी० आशीचसंग्रह | टी० में भ्रामक ढंग से इसे विज्ञानेश्वर कृत माना गया है । दे० 'दशश्लोकी' । टो० भट्टाचार्य द्वारा (अलवर, सं० १३४१; पाण्डु०, बड़ोदा, सं० ३८८३, तिथि सं० १५७९=१५२२-२३ ई० ) । टी० सुबोधिनी, रामकृष्ण के पुत्र कमलाकरभट्टात्मज अनन्त द्वारा । लग० १६१०-१६६० ई० । टी० कृष्णमित्र द्वारा । टो० राघव द्वारा। टी० रामभट्ट द्वारा । टो० विश्वनाथ द्वारा । टो० दे० इण्डि० आ०, ३, पृ० ५६६, सं० १७५०-५१ । टी० रामेश्वर भारती द्वारा। टी० लेखक द्वारा । त्रिकाण्डमण्डन- ( आपस्तम्बसूत्रध्वनितार्थ का रिका ) कुमारस्वामी के पुत्र भास्करमिश्र सोमयाजी द्वारा (बिब्लि० इण्डि० सी० ) । प्रकाशित ग्रन्थ एवं पाण्डु० में अन्तर है। अधिकारिनिरूपण, प्रतिनिधि पुनराधेय, निमित्त एवं प्रकीर्णक नामक चार प्रकरणों में विभक्त। ऋषिदेव, कर्क, केशवसिद्धान्त, दामोदर, नारायणवृत्ति (आश्वलायन श्रौतसूत्र पर ), भवनाग, भरद्वाज सूत्रभाष्यकार, लौगाक्षिकारिका, भर्तृयज्ञ, शालिकनाथ (पूर्वमीमांसा पर ), यज्ञपार्श्व, कर्मदीप, विधिरन के नाम आये हैं। इसकी बहुत-सी कारि For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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