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धर्मशास्त्रीय प्रन्यसूची पुण्यस्तम्भ के अनन्त भट्टात्मज केशव द्वारा। लग० क्रियाकौमुदी द्वारा वणित। १५०० ई० के पूर्व । १४५० ई०।
अपिपालकारिका-रघुनन्दन के मलमासतत्त्व में व०। अन्त्येष्टिपद्धति--महेश्वर भट्ट द्वारा। ___ अपेक्षितार्थयोतिनी-नारायण द्वारा टी०, मदनरत्न अन्त्येष्टिपति--रामाचार्य द्वारा।
(शान्त्युद्योत) में व०। अन्त्येष्टिपति-भानुदत्त उपनामक भास्कर के अदपूर्तिप्रयोग या वर्षसिद्धि। पुत्र हरिहर द्वारा । भारद्वाजसूत्र एवं उसको टीका अब्दपूर्तिपूजा। का अनुसरण करते हुए। इसका कथन है कि भार- अग्धि-(केदार द्वारा ?) स्मृत्यर्थसार में श्रीधर द्वारा द्वाज के आधार पर १०० पद्धतियाँ हैं, किन्तु वे उ०। विभिन्न हैं।
अभक्ष्यभक्ष्यप्रकरण। अन्त्येष्टिपति या औध्ववेहिकपद्धति--रामेश्वर के अभिनवप्रायश्चित्त।।
पुत्र भट्टनारायण द्वारा। दे० प्रक० १०३। अभिनवमाषवीय--माधवाचार्य द्वारा। अन्त्येष्टिपद्धति या और्षदेहिकपति---गोबाल के अभिनवषडशीति-(अशौच पर) पोंद्रिवंश के वेंकटेशपुत्र विश्वनाथ द्वारा।
पुत्र सुब्रह्मण्यम् द्वारा तेलुगु लिपि में मुद्रित, मद्रास, अन्त्येष्टिप्रकाश-भारद्वाज गोत्र के दिवाकर द्वारा। १८७४ ई० । हुल्श (जिल्द २, पृ० ११३, भूमिका, नो० न्यू० (जिल्द ३, पृ. ३)।
पृ० ६)। लेखक की धर्मप्रदीपिका टी०; चन्द्रिका, अन्त्येष्टिप्रयोग-(आपस्तम्बीय)।।
माधवीय, कौशिकादित्य की षडशीति की ओर संकेत। अन्त्येष्टिप्रयोग-(हिरण्यकेशी) केशव भट्ट द्वारा; । १४०० ई. के पश्चात् रचित । उनकी 'प्रयोगमणि' से।
अभिलषितार्थचिन्तामणि (मानसोल्लास)-राजासोमेअन्त्येष्टिप्रयोग-नारायण भट्ट द्वारा। दे० प्रक० श्वर चालुक्य द्वारा । ११२९ ई०; पाँच विश१०३।
तियों में विभाजित एवं १०० अध्यायों में। अन्त्येष्टिप्रयोग-विश्वनाथ द्वारा। आश्वलायन पर अभ्युदयश्राद्ध । आधारित।
अमृतव्याख्या-नन्द पण्डित की शुद्धिचन्द्रिका में व०। अन्त्येष्टिविधि-जिकन द्वारा। शुद्धितत्त्व में रघु- १५७५ ई० के पूर्व । नन्दन द्वारा उ०।
अम्बिकाचंनचन्द्रिका--अहल्याकामधेनु में वर्णित । अन्त्येष्टिप्रायश्चित्त।
अयननिर्णय--नारायण भट्ट द्वारा। अन्त्येष्टिसामग्री।
अयाचितकालनिर्णय। अन्त्येष्टपर्क-सन् १८९० ई० में बम्बई से प्रकाशित। अयुतहोम-लक्षहोम-कोटिहोमाः--बीकानेर के राजा अनपअसवान।
सिंह के संरक्षण में रहने वाले राम द्वारा। लग० अन्नप्राशन।
१६५० ई०। अन्नप्राशनप्रयोग।
अयुतहोमविधि-नारायण भट्ट द्वारा। दे० प्रक० अन्वष्टका।
१०३। अन्वष्टकानवमीधावपति।
अरुणस्मृति-दानचन्द्रिका एवं निर्णयसिन्धु में व०। अपमृत्युञ्जयशान्ति---शौनक की कही गयी है। अलवर, संख्या १२५३, जिसमें दानग्रहण एवं अपिपालपद्धति (या शूद्रपद्धति)-अपिपाल द्वारा; उसके लिए प्रायश्चित्तों के शामक १४९ श्लोक रघुनन्दन के श्राद्धतत्त्व एवं गोविन्दानन्द की श्राद्ध- लिखित हैं।
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