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तीर्थयात्रा की उपादेयता
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इससे विशाल एवं जीवन- प्रदायिनी नदियां फूटी हैं और अति प्राचीन काल से इसमें बहुत-से मन्दिर एवं तीर्थस्थल विद्यमान हैं, जो महर्षियों, मुनियों एवं वीरों की जीवन-गाथाओं से संयुक्त हैं। प्रत्येक भारतीय को, जिसे अपने धर्म एवं आध्यात्मिकता का अभिमान है, अपने जीवन के कुछ दिन पर्वतों, नदियों एवं तीर्थ स्थलों की यात्रा में बिताने चाहिए।
जब हम दूर से हिमालय की हिमाच्छादित चोटियों की पवित्र श्वेतता एवं शान्तता परखते हैं और यह देखते हैं कि सूर्य की किरणों के साथ वे किस प्रकार, नील, गुलाबी आदि विभिन्न रंगों में चमक उठती हैं, तो हमारा मन आश्चर्य, हर्ष, उल्लास आदि के साथ ऊपर उठाने वाली भावनाओं से भर उठता है। कंचनजंघा के सदृश शिखरों को आह्लादित करनेवाली दृश्यावलियाँ एक अविस्मरणीय अनुभूति उद्भासित करती हैं। और हम विशालता की ओर हठात् उन्मुख हो जाते हैं। जब हम हरिद्वार में प्रातः, रात्रि या संध्याकाल में पुनीत गंगा की छबि देखते हैं एवं वाराणसी के विशाल घाटों की सरणियाँ निरखते हैं तो हमारे मन की संकीर्णता विलुप्त हो जाती है और उसमें प्रकृति-सौन्दर्य एवं शुचिता भर उठती है तथा हम हठात् अनन्त के साथ एकरस एकभाव एवं एकरंग हो जाते हैं। आज हमारे हिमालय पर अन्यों के अभियान हो रहे हैं। इसमें सन्देह नहीं कि शेरपा तेर्नासह आदि एवं हिलारी ने सागरमाथा के महानतम शिखर पर पहुँचकर अपने धैर्य एवं अमोघ शक्ति का परिचय दे दिया है, किन्तु इससे हिमालय की दुर्दमनीय शक्ति, विशालता, महान् गौरव, अद्भुत प्रकृति-सौन्दर्य आदि पर कोई आँच नहीं आयी। हमें अपने ऐतिहासिक, धार्मिक एवं आध्यात्मिक हिमालय की श्री रक्षा करनी ही है, क्योंकि इसी में हमारी भौतिक उन्नति की शक्तियाँ भी छिपी हुई हैं। हमें पंचनद, सरस्वतीक्षेत्र, ब्रह्मावर्त, आर्यावर्त, बिहार, लौहित्य आदि की जीवन-दायिनी नदियों को उनके धार्मिक, आध्यात्मिक एवं संस्कृति-गर्भित अर्थ में सदैव मानना है, क्योंकि वे हमारी सभी प्रकार की समृद्धि के साथ आदि काल से जुड़ी हुई हैं।
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