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तीर्थसूची
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भी यह सदानीर बनी रही।' सायण ने सदानीरा को पद्म० श२७७७-७८, वाम० ४११९ एवं ४५।२९, करतोया कहा है। भीष्म० (९।२४ एवं ३५) ने अग्नि० १०९।१५ । दोनों को भिन्न माना है। सभा० (२०।२७) ने सन्निहत्यसर-(कुरुक्षेत्र में) वाम० ४७१५६, ४८।२३, संकेत किया है कि यह गण्डकी एवं सरयू के बीच में ४९१६ (सरस्वती के उत्तरी तट पर एवं द्वैतवन के है किन्तु ब्रह्म (२७।२८-२९) का कथन है कि यह पास)। पारियात्र पर्वत से निकलती है। वायु०(४५।१००) में सन्नीति--(कुरुक्षेत्र में) नीलमत० १६८-१६९ (लगता आया है कि करतोया ऋक्ष श्रेणी से निकलती है। है यह सन्निहती ही है)। पाजिटर (मार्क० अ० ५७, पृष्ठ २९४) के अनुसार सप्तकोटीश्वर--ती० प्र०, पृ० ५५७ जिसने स्कन्द. यह राप्ती है। अमरकोश ने सदानीरा एवं करतोया अध्याय ७ को उद्धृत किया है। को एक दूसरी का पर्याय माना है।
सप्तगंग--वन० ८४.२९, अन० २५४१६, पद्म० सनकेश्वर--(वारा० के अन्तर्गत) लिंग० (ती० क०, ११२८-२९। सात गंगाएँ ये हैं-गंगा, गोदावरी, पृ० ६७)।
कावेरी, ताम्रपर्णी, सिन्धु, सरयू एवं नर्मदा। सनक--यम० (ती० क०, पृ० २४८)।
नीलमत० (७२०) के मत से सात गंगाएँ हैंसनत्कुमारेश्वर--(वारा० के अन्तर्गत) लिंग० (ती० भागीरथी, पावनी, ह्रादिनी, ह्लादिनी, सीता, सिन्धु क०, पृ० ६७)।
एवं वक्षु। सनन्दनेश्वर--(वारा० के अन्तर्गत) लिङ्ग (ती० क०, सप्तगोदावर-वन० ८५।४४, वायु ७७।१९, मत्स्य० पृ.० ६७)।
२२१७८, भाग० १०७९।१२, पम० ११३९।४१, सन्ध्या--(१) (कश्मीर में नदी) नीलमत० १४७१, ४।१०८।३९,ब्रह्माण्ड०३।१३।१९,स्कन्द०४।६।२३ ।
राज० १०३, देखिए 'त्रिसंध्या'; (२) (मालवा देखिए राजा यशःकर्ण का खैरहा दानपत्र (१०७१की सिन्ध नदी जो यमुना में मिलती है) सभा० ई०; एपि० इण्डि०, जिल्द १२, पृ० २०५) जहाँ ९।२३, पद्म० १।३९।१; (३) (एक नदी सातों धाराएँ परिगणित हैं; गोदावरी जिले के जिसका स्थान अनिश्चित है) वन० ८४१५२, पद्म० गजेटियर (पृ० ६) में गोदावरी के सात मुख ११३२।१६।
(प्रवाह) सात ऋषियों के नाम पर पवित्र कहे गये सन्ध्यावट--(प्रयाग के अन्तर्गत) मत्स्य० १०६।४३।। हैं-कश्यप, अत्रि, गौतमः भरद्वाज, विश्वामित्र, सनिहिता---(वह भूमि जो कुरुक्षेत्र से अधिक विस्तृत जमदग्नि एवं वसिष्ठ। राज' (८१३४४९) में आया है और जिसमें कु क्षेत्र भी सम्मिलित है) ब्रह्माण्ड० है कि गोदावरी समुद्र में सात मुखों के साथ ३।१३।६८। ती० प्र०(प०४६६)ने 'सन्निहत' पढा मिलती है। है और कहा है कि यह एक आठ कोस विस्तत सप्तचरतीर्थ-देखिए 'वडवा। झील है और ये चार झीलें हैं; सन्निहत, सन्निहत्या, सप्तधार--(साभ्रमती के अन्तर्गत) पद्म० ६।१३६३१६ सानिहत्य एवं सन्निहता।।
('सप्तसारस्वत' के समान)। सनिहती--(कुछ ग्रंथों के अनुसार यह कुरुक्षेत्र का सप्तनद--ब्रह्माण्ड० ३।१३।३८ (देयं सप्तनदे श्राद्धं
दूसरा नाम है) वन० ८३।१९०-१९५ । नीलकण्ठ मानसे वा विशेषतः)। ने व्याख्या की है कि सन्निहती कुरुक्षेत्र का एक अन्य सप्तपुष्करिणी-(कश्मीर में थिद पर सात धाराएँ) नाम है। श्लोक १९५ में आया है कि सभी तीर्थ स्टीन०, पृष्ठ १६० । ह० चि० (४।४५) ने इसे यहाँ पर प्रति मास अमावास्या के दिन एकत्र होते हैं। सप्तकुण्ड' कहा है। आइने अकबरी (जिल्द २,
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