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( वारा० में एक लिंग) अग्नि० ११२|४; (३) . ( नर्मदा के अन्तर्गत ) अग्नि० ११३ | ३ | श्रीपतितीर्थ - (यहाँ श्राद्ध करने से परमपद प्राप्त होता है) मत्स्य० २२|७४ | श्री तीर्थ - ( वारा० के
धर्मशास्त्र का इतिहास
अन्तर्गत ) वन० ८३।४६, कूर्म० श्वेत द्वीप - गरुड ०
१।३५।८, पद्म० ११३७१८ |
श्रीमादक -- ( कश्मीर के दक्षिण में एक अभिभावक अथवा रक्षक नाग ) नीलमत० १११७ ।
श्रीमुख -- (गुहा) लिंग० (ती० कल्प०, पृ० ६०) श्वेतमाषव - नारदीय० २।५५।३० ।
( वाराणसी के अन्तर्गत ) ।
श्रीरंग --- ( आधुनिक श्रीरंगम् जो त्रिचिनापल्ली से दो मील उत्तर कावेरी एवं कोलरून के मध्य में एक द्वीप है) मत्स्य० २२।४४, ( यहाँ का श्राद्ध अनन्त है) भाग० १०।७९।१४, पद्म० ६।२८०११९, बार्ह ० सूत्र ३।१२० ( वैष्णव क्षेत्र ) । यह 'शिलप्पदिकारम्' (अ० १०, प्रो० दीक्षितार द्वारा अनूदित पृ० १६३ ) में वर्णित है । विशिष्टाद्वैतवाद के प्रवर्तक रामानुजाचार्य का यहाँ देहावसान हुआ था। देखिए इम्पी० गजे० इण्डि०, जिल्द २३, पृ० १०७-१०८ जहाँ विष्णु (जिन्हें यहाँ रंगनाथ स्वामी कहा जाता है) के मन्दिर का वर्णन किया गया है ।
श्लेष्मातकवन --- ( हिमालय पर ) वराह० २१४ । २४-२६, २१५।१२-१३ एवं ११५ । दे ( पृ० १८८) का कथन है कि यह उत्तर गोकर्ण है जो नेपाल में पशुपतिनाथ के उत्तर-पूर्व दो मील की दूरी पर है । दो गोकर्णी के लिए देखिए 'गोकर्ण' । श्वाविल्लोमापह - वन० ८३ । ६१ ।
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श्वेता -- (नदी जो साभ्रमती से मिलती है) पद्म० ६। १३३।१९-२० ।
श्वेताद्रि - (पर्वत) पद्म० ६।२८० १९, मत्स्य ० ११३/३८ ( यह मेरुका पूर्वी भाग है ) । १८१७, कूर्म० १|१|४९, ११४९/४०-४७, वाम० २५।१६ एवं ६०१५६, शान्ति० ३३६८, ३३७।२७। बहुत से ग्रंथों में क्षीरोदधि के उत्तर में यह एक अनुकथात्मक देश है ।
श्वेततीर्थ -- ( गोदावरी के अन्तर्गत) ब्रह्म० ९४।१ । श्वेत -- (सिन्धु नदी के पश्चिम उसकी सहायक नदी ) ऋ० १०।७५।६ । इसे सुवास्तु कहना कठिन है । श्वेतेश्वर - ( वारा० के अन्तर्गत) लिंग० (ती० क०, पृ० ९९ ) ।
श्वेतयावरी -- (नदी) ऋ०८।२६।१८।
श्वेतोदभव -- ( साभ्रमती पर) पद्म० ६।१३३।१५ । षडंगुल -- ( कश्मीर में एक नाग का स्थान ) नील
मत० ११३३-११४० । षष्टि-हद-- अनु० २५ | ३६ |
स
संयमन - - ( मथुरा के अन्तर्गत ) वराह० १५३।३ । संसारमोचन (यहाँ के श्राद्ध से अक्षय फल मिलता है) मत्स्य ० २२/६७ । संकुणिका-
- वाम० (ती० क०, पृ० २३६ ) । संगमन--- (द्वारका के अन्तर्गत ) वराह० १४९।४१ । संगमनगर - ( द्वारका के अन्तर्गत ) वराह० (ती० क०, पृ० २२६) ।
संगमेश्वर-- (१) (वारा० के अन्तर्गत ) नारदीय ० २।५०/६३-६४; (२) ( साभ्रमंती एवं हस्तिमती के संगम पर ) पद्म ६ । १३८|१ ( ३ ) ( नर्मदा के दक्षिणी तट पर ) मत्स्य ० १९१।७४, कूर्म ० २।४१।३६, पद्म० १|१८|५३; (४) (गंगा और यमुना के संगम पर ) लिङ्ग० ११९२८८ । सगरेश्वर -- ( वारा० के अन्तर्गत ) लिङ्ग० (ती०
कल्प०, पृ० ५१) । सत्यवती -- ( यह कौशिकी नदी हो गयी ) वायु० ९१६८८ । सदानीरा - (नदी) शतपथ ब्राह्मण (१|४|१|१७) का
कथन है---' आज भी यह नदी कोसलों और विदेहों की सीमा है । यह नदी उत्तरी पर्वत से उमड़तीघुमड़ती चल पड़ी और अन्य नदियों के सूख जाने पर
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