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के भक्त थे, यहाँ रहते थे) । मत्स्य० १३/३३, ( शालग्राम में उमा महादेवी कही गयीं ) २२६२, पद्म० १०३८।४८, वराह० १४४ | ३ एवं १४ ( यहाँ के सभी पाषाण पूज्य हैं, विशेषतः जिन पर चक्र का चिह्न रहता है); श्लोक २९ में आया है—' शालग्राम पर्वत विष्णु है; श्लोक १४५ में आया है-'यह देववाट भी कहा जाता है,' यह विस्तार में १२ योजन है ( श्लोक १५९ ) । शालग्राम के प्रस्तर खण्ड जो विष्णु के रूप में पूजित होते हैं, गण्डकी के उद्गमस्थल में पाये जाते हैं। यह पुलहाश्रम ( विष्णु ० २।१।२९ ) भी कहा जाता था । वन० ५।८४।१२८-१२८, वराह० (ती० क०, पृ० २१९२२१)।
शिवधार - मत्स्य ० २२।४९ ।
शिवनदी - नृसिंह० ६५ | २३ (ती० क०, पृ०२५३) । शिवसरस्वती - बार्ह० सूत्र ( ३११२२ ) के अनुसार यह एक शैव क्षेत्र है । शिवहर-ब्रह्माण्ड० ३।१३।५२ ।
शालकटङ्कटेश्वर --- ( वारा० के अन्तर्गत) लिंग० (ती० क०, पृ० ४८ ) ।
शिवोद्भव -- ( जहाँ अन्तर्धान होने के उपरान्त सरस्वती पुनः प्रकट होती है) वन० ८२।११२, पद्म० १२५/
शालग्रामगिरि-वराह० १४४।१३ एवं २९ । शालिग्राम -- ( वही जो ऊपर है) कूर्म० २।३५।३७, नृसिंह० ६४।२२-२६ ( पुण्डरीक इस महाक्षेत्र में आये थे) ।
१९ ।
शुकस्याश्रम -- वन० ८५।४२, पद्म० १।३९ । ३९ ( दोनों में एक ही श्लोक है) ।
१।२६।१००
शालिसूर्य- -वन० ८३।१०७, पद्म० ( एक तीर्थ जो सम्भवत: शालिहोत्र द्वारा स्था- शुकेश्वर -- (गोकर्ण के उत्तर) वराह० १७३३९ । पितथा ) | शुक्तिमती -- ( नदी, चेदि में कोलाहल पर्वत द्वारा
शालूकिनी -- ( कुरुक्षेत्र के अन्तर्गत ) वन० ८३।१३, महाभाष्य (जिल्द १. पृ० ४७४ वार्तिक २ पाणिनि २|४|७) ने शालूकिनी को एक गाँव कहा है। शाल्विकिनी -- ( सम्भवतः ऊपर वाला तीर्थ ) पद्म० १।२६।११।
अवरुद्ध ) भीष्म० ९१३५ । देखिए दे ( पृ० १९६ ) जहाँ विभिन्न पहचानें दी गयी हैं। ब्रह्म० (२७/३२) एवं मत्स्य ० ( ११४।१०१) का कथन है कि यह ऋक्ष पर्वत से निकलती है, किन्तु मार्क० (५७/२३) के अनुसार यह विन्ध्य से निकलती है ।
शिप्रा -- (नदी, जो पारियात्र से निकलकर उज्जयिनी
शिखितीर्थ - ( नर्मदा के अन्तर्गत) मत्स्य० १९३/- शुक्तिमान् ( भारत के सात महान् पर्वतों में एक, ८२, पद्म० १२० १७८ । यह विन्ध्य का एक भाग है) कूर्म० ११४७/३९, वायु० ४५/८८।१०७, नाग्द० २६० २७, भाग० ५।१९।१६ | देखिए डॉ० बी० सी०ला कृत 'माउटेन्स एण्ड रीभर्स ऑव इण्डिया' (डिपार्टमेण्ट ऑव लेटर्स कलकत्ता यूनिवर्सटी, जिल्द २८, पृ० २०२१) जहाँ विभिन्न पहचानें उपस्थित की गयी है । यह पर्वत प्रमुख सात पर्वतों में सबसे कम प्रसिद्ध
धर्मशास्त्र का इतिहास
में बहती चली जाती है) मत्स्य० २२।२४, ११४/२४, वायु० ४५९८ । इस नदी के प्रत्येक मील पर तीर्थस्थल हैं, वहाँ ऋषियों के विख्यात निवासस्थल हैं और अलौकिक घटनाओं के दृश्य वर्णित हैं । यह नदी विष्णु के रक्त से निकली हुई कही गयी
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है और ऐसा विश्वास है कि कुछ निश्चित कालों में यह दूध के साथ बहती है । आइने अकबरी (जिल्द
२, पृ० १९६ ) ने भी इसका उल्लेख किया है। शिफा -- (नदी) ऋ० १।१०४ | ३ ( जिसमें कुयब की दोनों पत्नियाँ मृत्यु को प्राप्त हुई थीं) । शिलाक्षेश्वर - ( वारा० के अन्तर्गत )
लिंग० (ती०
क०, पृ० ४६ ) ।
शिलातीर्थ - ( गया के अन्तर्गत ) वायु० १०८/२ । शिवकांची -- ( दक्षिण भारत के कांजीवरम् में) पद्म०
६३२०४ | ३० ।
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