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________________ तीर्थसूची या प्रमति के भावी कार्यकलापों का वर्णन किया है किन्तु किसी ने सम्भल ग्राम का उल्लेख नहीं किया है । इम्पी० जे० आँव इण्डिया ( जिल्द २२, पृ० १८ ) ने इस स्थान को उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले का सम्भल कसबा कहा है; इसके आस-पास बहुत-से प्राचीन ढूह, मन्दिर एवं पवित्र स्थल पाये जाते हैं । शरबिन्दु - (आगलक ग्राम के अन्तर्गत ) नृसिंह ० ६६/३४ । शरभंगकुण्ड -- ( लोहार्गल के अन्तर्गत ) वराह० १५१/ १३।१४५ ४९ । शरभंगाश्रम - वन० ८५।४२ एवं ९०१९, रामा० ३।५।३, पद्म० १।३९।३९, रघुवंश (सुतीगाश्रम के पास ) । शरावती - ~ ( सम्भवतः अवध में राप्ती) भीष्म ० ९२० । पाणिनि ( ४ | ३ | १२०, शरादीनां च ) को यह नदी ज्ञात थी; क्षीरस्वामी ( अमरकोश के टीकाकार) ने 'शरावत्यास्तु योऽवधेः' की टीका में उद्धृत किया है— 'प्रागुदञ्च विभजते हंसः क्षीरो के यथा । विदुषां शब्दसिद्ध्यर्थं सा नः पातु शरावती ॥' डा० अग्रवाल ने (जर्नल आव उत्तर प्रदेश हिस्टारिकल रायल सोसाइटी, जिल्द १६ पृ० १५ में ) कल्पना की है कि यह अम्बाला जिले से होकर बहती है ( घग्घर ), किन्तु यह संदेहात्मक है । सम्भव है कि जब सरस्वती सूख गयी और केवल इस पर दलदल रह गया तो यह शरावती कहलायी। किन्तु अमरकोश के काल में शरावती सम्भवतः वह शरावती है जो समुद्र में होनावर ( उत्तरी कनारा जिले) के पास गिरती है, जिस पर गेरस्पा के प्रसिद्ध प्रपात हैं। रघुवंश (१५ । ९७) में शरावती राम के पुत्र लव की राजधानी कही गयी है। शशयान -- ( सरस्वती के अन्तर्गत ) वन० ८२।११४-११६, पद्म० १।२५।२०- २३ । कुछ पाण्डुलिपियों में 'शशपान' पाठ आया है । शशांकेश्वर - ( वारा० के अन्तर्गत) लिंग० (ती०. क०, पृ० ९७ ) । Jain Education International १४८९ शाकम्भरी - (१) ( नमक की सांभर झील जो जयपुर और जोधपुर रियासतों की सीमा पर पश्चिमी राजस्थान में है) वि० ध० सू० ८५।२१; विग्रहराज चाहमान के शिलालेख ( ९७३-७४ ई० ) में शाकम्भरी की चर्चा है (एपि० इण्डि०, जिल्द २, पृष्ठ ११६ एवं १२४), देखिए इम्पी० गजे० इण्डि० (जिल्द २२, पृ० १९-२० ) जहाँ इसकी अनुकथा दी गयी है। झील की दक्षिण-पूर्व सीमा पर सांभर नाम का कसबा है जो प्राचीन है और चौहान राजपूतों की राजधानी र (२) (हिमालय के समीप हरिद्वार से केदार के मार्ग में) वन ० ८४।१३, पद्म० १|२८|१४-१६ ( एक देवीस्थान जहाँ देवी ने एक सहस्र वर्षों तक केवल शाक-भाजी पर भक्तों का जीवन व्यतीत कराया था ) । शाण्डिली - ( कश्मीर में नदी ) नीलमत० १४४५ । शाण्डिली - मधुमती - संगम - नीलमत० १४४६ । शाण्डिल्येश्वर - ( वारा० के अन्तर्गत) लिंग० (ती० क०, पृ० ६८) । शातातपेश्वर - ( वारा० के अन्तर्गत) लिंग० (ती० क०, पृ००२) । शारदातीर्थ - ( कश्मीर में ) मत्स्य० २२०७४, राज० १|३७| कश्मीर के प्रमुख तीर्थों में यह है और किसनगंगा नदी के दाहिने तट पर आधुनिक 'शर्दी' इसका द्योतक है। मधुमती के मन्दिर के सामने किसनगंगा में यह मिल जाती है | देखिए स्टीनस्मृति पृ० २०६ । आइने अकबरी (जिल्द २, पृ० ३६५ - ३६६) में आया है कि शारदा का मन्दिर दुर्गा का है और पदमती नदी के किनारे है जो दार्दू देश से आती है, और यह मन्दिर प्रति मास शुक्ल पक्ष की प्रत्येक अष्टमी पर हिलने लगता है । शार्दूल बार्ह० सू० (३।१२२ ) के अनुसार यह शैव क्षेत्र है । शालग्राम-- - (गण्डकी नदी के उद्गमस्थल पर एक पवित्र स्थान ) वन० ८४ । १२३-१२८, विष्णु० २।१।२४, २०१३।४ (राजर्षि भरत जो एक योगी एवं वासुदेव For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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