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व्यासवन -- (मिश्रक के पास ) पद्म० ११२६६८७ । व्याससर वायु० ७७।५१, ब्रह्माण्ड० ३।१३।५२ । व्यासस्थली -- ( जहाँ पर पुत्र के खो जाने से व्यास ने मरने का प्रण किया था ) नारदीय० २२६५।८३-८४, पद्म० १।२६।९०-९१ ।
धर्मशास्त्र का इतिहास
व्योमगङ्गा-- ( गया के अन्तर्गत ) नारद० २|४७।५७ ॥ व्योमतीर्थ -- ( वारा० के अन्तर्गत ) पद्म० १|३७|१४| व्योमलिङ्ग -- (श्रीपर्वत के अन्तर्गत ) लिंग० ११५२/१६१।
व्रज -- ( नन्दगोप का गाँव) भाग० १०।१।१०, देखिए 'गोकुल' ऊपर ।
ज्ञ
शंकुकर्ण - - ( वारा० के अन्तर्गत) मत्स्य० १८१.२७; कूर्म ० १।३१।४८, पद्म० १।२४ । १८ । शंकुकर्णेश्वर -- ( वाराणसी की दक्षिणी सीमा पर एक लिंग) कूर्म० ११३३/४८, लिंग० १।९२।१३५, नारद० २।४८।१९-२० ।
शक्रतीर्थ - - ( १ ) ( नर्मदा के दक्षिणी तट पर ) मत्स्य० २२/७३, कूर्म ० १।४१।११-१२, पद्म० १ २४२९; (२) (कुब्जाम्रक के अन्तर्गत ) वराह० १२६/
८१ । शक्ररुद्र-- - ( कोकामुख से तीन कोस दूर ) वराह० १४०।६५ ।
शक्रसर - - ( सानन्दूर के अन्तर्गत ) वराह० १५०।३३ । शक्रावर्त - वन० ८४/२९, पद्म० १।२८।२९ । शक्रेश्वर - ( वारा० के अन्तर्गत ) लिंग० (ती० क०,
पृ० ७४)
शंखतीर्थ - - (१) ( सरस्वती पर) शल्य० ३५।८७; (२) ( नर्मदा के अन्तर्गत) कूर्म ० २।४२।१७ (शंखतीर्थ ) ; ( ३ ) ( आमलक ग्राम के अन्तर्गत ) नृसिंह ०
६०१२३ ।
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शंखप्रभ --- ( शालग्राम के अन्तर्गत ) वराह० १४५।४८ । शंखलिखितेश्वर --- ( वारा० के अन्तर्गत) लिंग० (ती० कु०, पू० ९३) ।
शंखद -- ( गोदावरी के अन्तर्गत ) ब्रह्म० १५६।१ । शंखिनीतीर्थ -- ( कुरुक्षेत्र के अन्तर्गत ) वन० ८३।५१ । शंखोद्धार -- ( कच्छ की खाड़ी के अन्त में दक्षिण-पश्चिमी भाग में स्थित एक द्वीप) भागवत० ११।३०/६ ( कृष्ण ने ऐसा निर्देश किया था कि जब द्वारका में भयंकर लक्षण दृष्टिगोचर हों तो स्त्रियों, बच्चे एवं वृद्ध लोग वहाँ चले जायें), मत्स्य० १३१४८, २२१६९ (यहाँ का श्राद्ध अनन्त है ) । यह अति प्रसिद्ध स्थल है, विशेषतः वैष्णवों के लिए। देखिए इम्पी० गजे ० इण्डि०, जिल्द ८, पृ० १८ ।
शचीवलिंग - ( वारा० के अन्तर्गत) लिंग० (ती०
क०, पृ० १०५ ) ।
शतकुम्भ-- ( सरस्वती के अन्तर्गत ) वन० ८४/१०. पद्म० १|२८|११ ( दोनों में एक ही श्लोक है) ।
शत - ( सतलज) इसे 'शुतुद्री' भी कहा जाता है। आदि० १७७।८-९ (व्युत्पत्ति दी हुई है), मत्स्य ० २२।१२, भाग० ५।१९।१८। अमरकोश ने 'शुतुद्री' एवं 'शतद्रु' को पर्यायवाची कहा है। शतरुद्रा --- मत्स्य ० २२।३५ ( यहाँ का श्राद्ध अनन्त होता है ) ।
शतशुंग -- (पर्वत) देवल (ती० क०, पृ० २५० ) । शतसहस्रक - (सरस्वती के अन्तर्गत ) पद्म० १।२७/
४५, वाम० ४१।३, वायु० ८३।१५७ एवं ८४।७४ ( शतसाहस्रक) ।
शनैश्वरेश्वर-- ( वारा० के अन्तर्गत) लिंग० (ती०
कल्प०, पृ० ६७ ) ।
शबरीतीर्थ - ( गोदावरी पर) पद्म० ६ | २६९।२७७
२७८ ।
शम्भलग्राम ब्रह्म० २१३।१६४ ( + ल्की विष्णुयशा यहाँ जन्म लेंगे और म्लेच्छों का नाश करेंगे), पद्म ० ६।२६९ । १०-१२ ( शम्भल ग्राम का उल्लेख है), ग ड़० ११८१/६, भाग० १२ २०१८, वायु० ७८।१०४ १०९, मत्स्य० १४४|५१, ब्रह्माण्ड ० २३१।७६, विष्णु ० ४।२४।९८; इन सभी ने कल्की
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