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तीर्घसूची
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३२७५, नारदीय० २।४७१७५; (२) (मयुरा (४) (यहाँ पर देवी बगला कही जाती है) देवी
के अन्तर्गत) वराह० १६३।१-४ एवं १०।१२। भाग० ७।३८।१४; (५) (वैद्यनाथ का मंदिर, जो वैजयन्त---(एक सारस्वत-तीर्थ) देवल (तीर्थ- संथाल परगने के देवघर नामक स्थान में १२ ज्योतिकल्प०, पृ० २५०)।
लिङ्गों में एक है) देखिए इम्पी० गजे० इण्डि०, बैतरणी--(१) (उड़ीसा में बहनेवाली एवं विन्ध्य से जिल्द ११, पृ० २४४, जहाँ वैद्यनाथ के विशाल निर्गत नदी) वन० ८५।६, ११४।४, वायु ०७७।९५, मन्दिर का उल्लेख है। यह देवघर के २२ शिवकूर्म० २॥३७॥३७, पद्म० ११३९।६, अग्नि० ११६७, मन्दिरों में सबसे प्राचीन है। मत्स्य० ११४।२७, ब्रह्म० २७।३३। जाजपुर (यया- वैनायकतीर्थ-मत्स्य० २२॥३२, गरुड़० ११८१३८ । तिपुर) इस नदी पर है जो बालासोर एवं कटक की वैमानिक-अनु. २५।२३। सीमा है (इम्पी० गजे० इण्डि०, जिल्द ६,पृ० २२३)। वैरा--(नदी) मत्स्य० २२०६४ । कहीं-कहीं उत्कल एवं कलिंग को पृथक्-पृथक् माना वैरोचनेश्वर---(वारा० के अन्तर्गत) स्कन्द० ४।३३ । गया है (ब्रह्म० ४७७ एवं रघुवंश ४।३८)। वैवस्वततीर्थ-(सूकर के अन्तर्गत) वराह० १३७।'उत्कल' को 'उत्कलिंग' (जो कलिंग के बाहर हो) २४० (जहाँ सूर्य ने एक पुत्र के लिए तप किया), से निकला हुआ माना गया है; (२) (गया में) अनु० २५।३९। । (वायु० १०५।४५, १०९।१७, अग्नि० ११६।७; वैवस्वतेश्वर-(वारा० के अन्तर्गत) लिंग० (ती. (३) (फलकीवन में) वामन० ३६।४३-४४, कल्प०, पृ० १०४) । पद्य० १।२६।७९; (४) (वाराणसी में एक कूप) वैशाख---(श्रीपर्वत के अन्तर्गत) लिंग० ११९२।लिंग० (ती. कल्प०, पृ० ६३)।
१५६ (जिसे विशाख अर्थात् स्कन्द ने स्थापित वैदर्भा---मत्स्य० २२।६४, नलचम्पू ६।६६ (दक्षिण- किया)।
सरस्वती) । सम्भवतः यह वरदा नदी है। वैश्रवणेश्वर--(श्रीपर्वत के अन्तर्गत) लिंग० १।९।वैदूर्य---- (आनर्त में एक पहाड़ी) वन० ८९।६, १२१।- १४८। १६ एवं १९ (जहाँ पाण्डव लोग पयोष्णी को पार कर वैश्वानर-कुण्ड--(लोहार्गल के अन्तर्गत) वराह० आये थे)। पाणिनि (४।३।८४) ने 'वैदूर्य' नामक १५११५८॥ मणि (रत्न) का 'विदूर' से निकलना माना है वैहायसी--(नदी) वन० १९।१८। (तस्मात्प्रभवति) । महाभाष्य (जिल्द २, पृ० ३१३) वैहार--(गिरिव्रज को घेरनेवाली एवं रक्षा करनेवाली ने एक श्लोक उद्धृत किया है, जिसमें आया है कि पाँच पहाड़ियों में एक) सभा० २११२। वैयाकरण लोगों ने 'वालवाय' नामक पर्वत को व्याप्रेश्वर--(वारा० के अन्तर्गत) कूर्म० १॥३५।१४, 'विदूर' नाम दिया है। लगता है, यह सतपुड़ा श्रेणी, पद्म० ११३७।१७, लिंग. १९२।१०९, नारद० है जिसमें वैदूर्य को खान थी। देखिए पाजिटर २५०१५६। पृ० २८७ एवं ३६५ । हो सकता है कि यह टॉलेमी व्यासकुण्ड--(वारा० के अन्तर्गत) लिंग० (ती० का 'ओरोदियन' पर्वत हो।
कल्प०, पृष्ठ ८६) वैखनाथ--(१) मत्स्य० १३।४१, २२।२४, पद्म व्यासतीर्थ--(१) (कुरुक्षेत्र में) कूर्म० २।३७।२९,
५।१७।२०५; (२) (वाराणसी के अन्तर्गत) ब्रह्माण्ड ० ३।१३।६९; (२) (नर्मदा के अन्तर्गत) लिंग० (ती० कल्प०, पृ० ८४ एवं ११४); (३) वायु० ७७६७, पम० १।१८।३७; (गोदा० के (साभ्रमती के अन्तर्गत) पद्म ६।१६०।१ अन्तर्गत) ब्रह्म० १५८११ ।
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