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________________ १४८६ धर्मशास्त्र का इतिहास बलेश्वर के पास सह्य पर्वत से निकली हुई नदी) ब्रह्माण्ड ० २।१६।२८ (ऋक्षवान् से निकलती है), इम्पी० गजे० इण्डि० (जिल्द ५, पृष्ठ २२, जिल्द कूर्म० २।२०३३५; मेघदूत (११२४) का कथन १३, पृष्ठ २२९, जिल्द २०, पृष्ठ २) के मत है कि विदिशा (आधुनिक भेलसा) जो दशार्ण की से पेनगंगा वर्धा में मिलती है और वैनगंगा एवं राजधानी थी, वेत्रवती पर स्थित है; (२) वर्षा को सम्मिलित धारा प्राणहिता के नाम से (साभ्रमती की सहायक नदी) पम० ६।१३० एवं विख्यात है, जो अन्त में गोदावरी में मिल जाती है। १३३।४-५ । मिलिन्द-प्रश्न (एस० बी० ई०, जिल्द देखिए इम्पी० गजे० इण्डि०, जिल्द २४, पृष्ठ ३४९, ३५, पृ० १७१) में हिमालय से निर्गत जिन दस भीष्म०९।२०१२८, वन०८५।३२,८८१३, २२४।२४, नदियों का नाम है, उनमें वेत्रवती भी एक है। यह अनु०१६।५२०,भाग०१०७९।१२। वेणा अधिकतर उपर्युक्त दोनों से भिन्न कोई नदी रही होगी। कृष्णवेणा या वेण्या या देणी के नाम से उल्लिखित है, वेदगिरि--(ब्रह्मगिरि के दक्षिण सह्य श्रेणी की पहाड़ी जैसा कि मत्स्य० (११४।२९) में। राजशेखर ने एवं कृष्ण-वेण्या के अन्तर्गत एक उपतीर्थ) तीर्थसार अपनी काव्यमीमांसा (पृष्ठ ९४) में वेणा एवं कृष्णा- पृष्ठ ७८ । वेणा को अलग-अलग उल्लिखित किया है (दसवीं वेदधार--(बदरी के अन्तर्गत) वराह० १४१।२०। शताब्दी)। देखिए पार्जिटर (पृष्ठ ३०३), जिन्होंने वेदशिरा--(श्राद्ध के लिए अत्यंत उपयोगी) मत्स्य. इस नाम के विभिन्न रूपों का उल्लेख किया है। २२१७१। वेणासंगम--वन०८५।३४, पद्म० ११३९/३२। वेदवती--(पारियात्र से निकली हुई एक नदी) मत्स्य० वेणी-(१) (गंगा-यमुना का संगम) देखिए कर्णदेव ११४।२३; ब्रह्माण्ड० २।१६।२७, ब्रह्म० २७।२९, का बनारस अभिलेख (१०४२ ई०, एपि० इण्डि०, अनु० १६५।२६। इस और निम्नोकत नदियों की जिल्द २, पृष्ठ २९७ एवं ३१०), जयचन्द्र का कमौली पहचान नहीं हो सकी है। वेदवती या हगरी नामक का दानपत्र (एपि० इण्डि०, जिल्द ४, पृष्ठ १२३; नदी मैसूर से निकलती और तुंगभद्रा में मिल जाती लेख की तिथि ११७३ ई०); (२) (सह्य पर्वत में है। देखिए इम्पी० गजे० इण्डि०, जिल्द १३, पृ० ५। एक आमलक वृक्ष के चरण से निकली हुई एवं कृष्णा वेदश्रुति--(कोसल के पश्चात् दक्षिण में एक नदी) में मिलने वाली एक नदी) तीर्थसार, पृष्ठ ७८। रामा० २१४९।१०। बेण्या--- (सह्य पर्वत से निकली हुई एवं कृष्णा में वेदस्मृति-(पारियात्र से निकली हुई नदी) अनु० १६५। मिलनेवाली एक नदी) वाम० १३।३०, अनु० २५, मत्स्य० ११४१२३, वायु० ४५।९७, ब्रह्माण्ड. १६५।२२ (गोदावरी च वेण्या च कृष्णवेणा तथापि २।१६।२७ । दे (पृष्ठ २२३) के मतानुसार यह च), भाग० ५।१९।१८, पद्म० ६।११३।२५ मालवा में बोसली नदी है और सिंध की सहायक (महादेव वेण्या हो गये। है, बार्ह ० सू० (१६॥३२) ने इसका उल्लेख वेणुमतो-यहाँ का श्राद्ध अत्यंत फलदायक होता है। किया है। मत्स्य० २२।२०। वेदीतीर्थ--(श्लोक १ में देवीतीर्थ) पद्मश२६।९२ । वेतसिका--(नदी) वन० ८५।५६, पद्म० १।३२।- वेदेश्वर----(वारा० के अन्तर्गत) लिंग० (ती० क०, २०,४।२९।२० (इसमे वेतसी-वेत्रवती-संगम कहा है)। पृ० ४४)। वेत्रवती----(१) (आधुनिक बेतवा नदी जो भूपाल की वैकुण्ठ-कारण---(मन्दार के अन्तर्गत) वराह० १४३ तरफ से निकलती और यमुना में मिल जाती है) २१-२३।। मत्स्य० २२।२०, ११४।२३ (पारियात्र से निर्गत), वैकुण्ठ-तीर्थ-(१) (गया के अन्तर्गत) मत्स्य. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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