SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 492
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तीर्थसूची १४८५ एस०बी०, जिल्द ५, पृष्ठ ६०-६१, जहाँ नारायण १०।११।२८ एवं ३६, १०१२०, १०।२१५ एवं १०, पाल के सातवें वर्ष का शिलालेख विष्णुपद मन्दिर के पद्म०४।६९।९,४१७५/८-१४ (अलौकिक व्याख्या), पास है); (४) (शालग्राम के अन्तर्गत) वराह० ४१८१।६० (मथुरा का सर्वोत्तम स्थल), ६।१६।७२ १४५।४२। (जहाँ पर वृन्दा ने अपना भौतिक शरीर छोड़ दिया), विष्णुपदी-(गंगा का नाम, ऐसा कहा जाता है कि यह ब्रह्मवैवर्त (कृष्णजन्मखण्ड १७।२०४-२२) में बताया विष्णु के बायें अंगूठे से निकली है) भाग० ५।१७।१। गया है कि वृन्दा ने किस प्रकार तप किया और किस अमरकोश ने यह गंगा का पर्याय माना है। प्रकार राधा के सोलह नामों में वृन्दा एक है)। ऐं। विष्णुसर-(१) (कोकामुख के अन्तर्गत) वराह जि० ने एरियन के क्लिशोबोरस की पहचान इससे १४०।२४; (२) (गोनिष्क्रमण के अन्तर्गत) वराह की है। १४७।४३। वृषध्वज-(वाराणसी के अन्तर्गत) कूर्म० ११३५।१३, पौरपली-(नदी) ऋ० ११०४।४। लिंग० ११९२।१०६, नारद० २।५०।४८। पीरप्रमोक्ष-वन०८४१५१, पप०१॥३२॥१४ (सम्भवतः वृषभेश्वर-(वाराणसी के अन्तर्गत) लिंग० (ती० भूगुलिंग के पास)। कल्प०, पृष्ठ ४३)। वीरभद्रेश्वर-(वाराणसी के अन्तर्गत) लिंग० (ती. वृषभञ्जक-(मथुरा के अन्तर्गत) वराह० १५७।३३। कल्प०, पृष्ठ ८७)। वृषाकप--(गोदावरी के अन्तर्गत) कूर्म० २१४२।८। बीरस्थल-(मथुरा के अन्तर्गत) वराह० १५७।१४ वेगवती--(आधुनिक वैग या बैग, जिस के तट पर दक्षिण एवं १६०।२०। में मदुरा स्थित है) वराह० २१५।५८, वाम० ८४१६, बीराश्रम-वन० ८४।१४५ (जहाँ कार्तिकेय रहते हैं)। पद्म०६।२३७१९ । देखिए एपि० इण्डि०, जिल्द १३, अग्नी--(पारियात्र से निकलनेवाली एक नदी) पृष्ठ १९४ (जहाँ वेगवती के उत्तरी तट पर स्थित ब्रह्माण्ड० २।१६।२७, मार्क० ५४।१९। दे (पृष्ठ अम्बिकापुर के दान का वर्णन है, जो कामकोटि पीठ के ४२) के मत से यह साभ्रमती की एक सहायक शंकराचार्य को दिया गया था। इसका 'वैगाई' रूप नदी है। शिलप्पदि कारम् (प्रो. दीक्षितार सम्पा०, पृष्ठ पत्रेश्वर--(वाराणसी के अन्तर्गत) लिंग० (तीर्थ- २७०) में मिलता है। कल्प०, पृष्ठ ९६)। वेङ्कट--(द्रविड़ देश में तिरुपति के पास आर्काट जिले पृषकन्यातीयं--(मुनि गालव के पुत्र ने एक बूढ़ी कुमारी का एक पर्वत) गरुड़, ब्रह्मखण्ड (अध्याय २६) में से जिसने अपने योग्य वर के लिए तपस्या की थी, यहाँ 'वेंकटगिरिमाहात्म्य' है, भाग० ५।१९।१६, १०७९। विवाह किया) शल्य० ५१।१-२५, देवल० (ती० १३ (द्रविड़ में)। रामा० ६।२८०।१८, स्कन्द. कल्प०, पृष्ठ २५०) (सारस्वत तीर्थों में एक)। ३, ब्रह्मखण्ड ५२।१०२, स्कन्द० १, वैष्णवखण्ड खपुर--(जहाँ शनैश्चर की एक झील है) पद्म० (वेंकटाचल माहात्म्य)। यह तीर्थ इतना पवित्र ६।३४१५३-५४। माना जाता है कि १८७०ई० तक तिरुमल पहाड़ी वृक्षासंगम--(गोदावरी के अन्तर्गत) ब्रह्म० १०७१। । पर किसी ईसाई या मुसलमान को चढ़ने की वृद्धिविनायक- (गया के अन्तर्गत) अग्नि० ११६।३१। अनुमति नहीं थी। वृन्दावन-(मयुरा के बारह वनों में अन्तिम) मत्स्य० वेणा--(१) (विन्ध्य से निकली हुई नदी) ब्रह्म० २७। १३।३८ (यहाँ की देवी राधा है), वराह० १५३१४५, ३३, मत्स्य० ११४।२७। यह मध्य प्रदेश की वैन१५६।६ (यहाँपर केशी राक्षस मारा गयाथा),भाग० गंगा है, जो गोदावरी में मिलती है; (२) (महा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy