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________________ १४८४ धर्मशास्त्र का इतिहास वन० १९।२५, १३९।११, अनु० २५।४४, भाग० विश्वावस्वीश्वर--(वाराणसी के अन्तर्गत) लिंग० ५।४।५, ११।२९।४७; (३) (गया के अन्तर्गत) (ती० कल्प०, पृष्ठ ११६)। वाम ० ८१।२६-३२ (नदी), अग्नि० ११५।५४, पद्म० विश्वामित्रतीर्थ--(१) वन० ८३।१३९; (२) (गोदा११३८।३३। वरी के अन्तर्गत) ब्रह्म० ९३।४ एवं २७ (जहाँ राम विशालाख्य वन---मार्क० १०६।५७ (कामरूप के एक ने विश्वामित्र का सम्मान किया ),पद्म०१।२७।२८। पर्वत पर)। विश्वामित्रा नदी--वन०८९४९, भीष्म० ९।२६। विशालाक्षी--(वाराणसी के अन्तर्गत) लिंग० (ती. विश्वामित्र महानद-(पंजाब में) नीलमत० १५१ । ___ कल्प०, पृष्ठ ११५)। विश्वामित्राश्रम--रामा० १।२६।३४। विशोका--(कश्मीर में एक नदी) आधुनिक वेशन, विश्वेदेवेश्वर--(वाराणसी के अन्तर्गत) लिंग० (ती० नीलमत० ३०७-३७३, १४९३, ह० चि०१२॥३५। कल्प०, पृष्ठ ८७)। नीलमत० (३०७) का कथन है कि मुनि कश्यप की विश्वेश्वर--(१) (वाराणसी के पाँच लिंगों में एक) प्रार्थना पर लक्ष्मी विशोका बन गयी; नीलमत० कूर्म० १।३२।१२ एवं २।४१।५९, पद्म० ११३४।१०, (३८१) का कथन है कि यह विजाबोर के नीचे नारद० २।५११४; (२) (गिरिकर्ण में) पद्म० वितस्ता बन गयी है, वही (१४९१-१४९३) पुनः ६।१२९।१०। कहता है कि क्रमसार नामक झील से निकली विषप्रस्थ---(पहाड़ी) वन० ९५।३ (सम्भवतः गोमती कौण्डिनी नदी का संगम विशोका से हुआ है। के पास)। विश्रान्तितीर्थ--(१) (मथुरा का पवित्र स्थल, घाट) विष्णुगया-पद्म० ६।१७६।४१ (जहाँ लोणार कुण्ड है)। वराह० १६३।१६२,. १६७।१, पद्म० ६।२०९।५ विष्णुकांची-पद्म० ६।२०४।३० । यमुना के तट पर जहाँ कृष्ण द्वारा कंस मारा गया था; विष्णुचंक्रमण-(द्वारका) वराह० १४९।८० (ती० (२) (मधुवन में एक अन्य क्षेत्र जहाँ विष्णु ने वराह कल्प०, पृष्ठ २२७) । का रूप धारण किया था)। पद्म०६।२०९।१-३ एवं ५। विष्णुतीर्थ--(१) (कोकामुख के अन्तर्गत) वराह विश्वकाय--पद्म०६।१२९।८। १४०।७१-७४; (२) (नर्मदा के अन्तर्गत) मत्स्य विहंगेश्वर--(नर्मदा के अन्तर्गत) पद्म० १।२१।१। १९१ । ९९, कूर्म० २।४११५२ (यह योधीपुरं विहार तीर्थ-- (मदन का)। (सरस्वती के अन्तर्गत) विष्णुस्थानम् है), पद्म० १।१८।९४ (योधनीपुर); वाम० ४२।१०। (३) (गोदावरी के अन्तर्गत) ब्रह्म० १३६।१ एवं विश्वकर्मश्वर--(वाराणसी के अन्तर्गत) लिंग० (ती० ४१ (मौद्गल्य नाम भी है)। कल्प०, पृष्ठ ५५)। विष्णुधारा--(कोकामुख के अन्तर्गत) वराह० १४०। विश्वपद--(एक पितृतीर्थ) मत्स्य० २२।३५ । १७। विश्वमुख-- (जालन्धर पर तीर्थ) देखिए 'जालन्धर' के विष्णुतीर्थ- (बहुवचन, कुल १०८) पद्म० ६।१२९।५ अन्तर्गत एवं पद्म०६।१२९।२६। विश्वरूपक-पद्म०६।१२९।१४ (संभवतः मायापुरी में)। विष्णुपद-- (१) (कुरुक्षेत्र के अन्तर्गत) वन० ८३।१०३, विश्वरूप--(वाराणसी के अन्तर्गत) पद्म० १।३७।२। १३०८, नीलमत० १२३।८; (२) (निषध पर्वत विश्ववती--(यह विशोका ही है) ह० चि०१०११९२ पर एक झील) ब्रह्माण्ड० २।१८।६७, वायु० (यह विजयेश्वर की दक्षिणी सीमा है)। ४७।६४ ; (३) (गया के अन्तर्गत) देखिए आर० डी० विश्वा नदी-भाग० ५।१९।१८। बनर्जी का ग्रन्थ पाल्स आव बंगाल (मेमायर्स आव ए० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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