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________________ ૪૪ भूतालयतीर्थ -- ( साभ्रमती के अन्तर्गत) पद्म० ६११५८।१ (जहाँ चन्दना नदी प्राची हो जाती है), वाम० ३४।४७ । (१० ४९३) के मत से प्रयाग भास्करक्षेत्र है, किन्तु तीर्थसार ( पृ० २०) ने इसे कोगादित्य या कोणार्क कहा है; जो उपयुक्त है। मत्स्य० (१११।१३) एवं कर्म ० ( १३६ । २०) के मत से प्रयाग प्रजापतिक्षेत्र है । देखिए दे, पृ० ३२ । भिल्लतीर्थ - - ( गोदा० के दक्षिण तट पर ) ब्रह्म० भूतेश्वर - ( १ ) ( कश्मीर में भूथीसर) नीलमत ० १३०९, १३२४, १३२७, राज० १।१०७, २।१४८, ह० चि० ४।८५ । यह नन्दि क्षेत्र के अन्तर्गत है । हरमुख की चोटी से दक्षिण-पूर्व फैले हुए पर्वत पर भूतेश शिव का निवास है । आइने अकबरी, जिल्द २, पृष्ठ ३६४; (२) ( वारा० के अन्तर्गत ) कूर्म ० १।३५।१०, पद्म० १|३७|१३ ( ३ ) ( मथुरा के अन्तर्गत ) वराह० १६८।१९ । भूमिचण्डेश्वर-- ( वारा० के अन्तर्गत) अग्नि० ११२|४| भूमितीर्थ - अग्नि० १०९।१२ । भृगु आश्रम-- (नर्मदा के उत्तरी तट पर ) स्कन्द० १।२।३।२-६ ॥ भृगुकच्छ ( नर्मदा के उत्तरी तट पर ) देखिए 'भैरुकच्छ' के अन्तर्गत । यहाँ बलि ने अश्वमेधयज्ञ किया था ( भागवत ० ८।१२।२ ) । भृगुकुण्ड - ( स्तुतस्वामी के अन्तर्गत ) वराह० १४८।४८ । भृगुतीर्थ -- ( नर्मदा के अन्तर्गत) मत्स्य ० १९३।२३-६०, कूर्म० २।४२।१-६, पद्म० १।२०।२३ ५७ । दे ( पृ० ३४) के मत से यह जबलपुर से पश्चिम बारह मील की दूरी पर भेड़ाघाट पर है, जिसके मन्दिर में ६४ योगिनियाँ हैं । वन० ९९ । ३४-३५ ( इसी स्थान पर परशुराम ने राम द्वारा ले ली गयी शक्ति को पुनः प्राप्त किया था ) । भृगुतुङ्ग - ( १ ) ( एक पर्वत पर वह आश्रम जहाँ भृगु तप किया था) वायु ० २३।१४८ एवं ७७।८३, वन ० ८४/५०, ९० २३, १३० | १९१; (२) वि० ध० सू० ८५/१६, कूर्म ० २।२० २३, मत्स्य० २२|३१ ( श्राद्ध के लिए उत्तम ), जो नन्द पण्डित के मत से अमरकण्टक के पास है तथा अन्य लोगों के मत से हिमालय में; (३) ( गण्डकी के पूर्वी तट पर ) धर्मशास्त्र का इतिहास Jain Education International भुवनेश्वर - ( वारा० के अन्तर्गत) लिग० (ती० कल्प • पृ० ५६)। १६९।१ । भीमा - ( नदी, भीमरथी जो सह्य पर्वत से निकली है। और कृष्णा की सहायक है ) देवल (तीर्थकल्प ०, पृ० २५० ) । इसके निकास स्थल पर भीमाशंकर का मंदिर है, जो बारह ज्योतिर्लिंगों में एक है, यह रायचूर से सोलह मील उत्तर कृष्णा नदी में मिलती है । भीमरथी - (भीमा नदी) मत्स्य० २२/४५, ११४/२९, ब्रह्म० २७।३५, पद्म० ११२४/३२, भीष्मपर्व ९१२०, वन० ८७।३, वामन० १३।३० । और देखिए एपि० इण्डि०, जिल्द ५, पृ० २०० तथा २०४ जहाँ कीर्तिवर्मा द्वितीय के वक्कलेरि दानपत्र ( ७५७ ई०) में भीमरथी नाम के विषय में उल्लेख है । भीमादेवी -- ( कश्मीर में डल झील के पूर्व तट पर फाक परगने में ब्रान नामक आधुनिक ग्राम ) राज० २।१३५ और ह० चि० ४ ॥ ४७ ॥ भीमस्वामी - ( कश्मीर में एक शिला जो गणेश के रूप में पूजी जाती है) स्टीनस्मृति, पृ० १४८ । भीमतीर्थ अग्नि० १०९।१२ । भीमायाः स्थानम् -- वन० ८२२८४, दे ( पृ० ४३) ने इसे पेशावर के उत्तर-पूर्व २८ मील की दूरी पर तख्त-ए-बहाई माना है । भीमेश्वर-- (नर्म० के अन्तर्गत, पितरों के लिए पवित्र ) मत्स्य० २२।४६ एवं ७५, १८११५, कूर्म० २०४१ - २० एवं २०४५।१५, पद्म० १।१८।५ । भीष्म- चण्डिक - - ( वारा० के अन्तर्गत) मत्स्य० १८३ - ६२ । भीष्मेश्वर --- ( वारा० के अन्तर्गत) लिंग० (ती० कल्प०, पू० ६६) । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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