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तीर्थसूची
१४६५ वराह० १४६४४५-४६; (४) (गुर्जर देश में) मणिकुण्ड- (स्तुतस्वामी के अन्तर्गत) वराह० १४८१ स्कन्द०, काशी०६।२५; (५) (वितस्ता एवं हिम- ५२। वान् के पास) वाम० ८११३३।
मणिमान्-या मणिमन्त (देविका नदी के पास) वन० भंगीश्वर लिङ्ग-(वारा के अन्तर्गत) स्कन्द०, काशी० ८२।१०१, पद्म० ११२५।८, वाम० ८॥१४॥
३३।१२९ एवं लिंग० (तीर्थकल्प० पृ० ८४)। मणिमती-(नदी) मत्स्य० २२॥३९ (श्राद्ध के लिए अति भेवगिरि- (गंगोद्भेद नामक धारा से पवित्र) राज० उपयोगी)। बाई सू० (१४।२०) का कथन है कि १॥३५, स्टीनस्मृति, पृ० १८६-१८७।
यह एक पर्वत है। .. भेवादेवी--- (गंगोद्भेद के पास कश्मीर में श्रीनगर के मणिमतीभद्र-वाम० ९०१६ (यहाँ शिव को शम्भु कहा
पश्चिम आधुनिक बुदब्रोर) नीलमत० १५२२। जाता है)। भैरव-(एक तीर्थ) मत्स्य० २२।३१ ।
मणिमतीपुरी--(यह वातापीपुरी एवं दुर्जया के नाम से भैरवेश्वर--(वारा० के अन्तर्गत) लिंग० ११९२॥ भी प्रसिद्ध थी) वन० ९६।१ एवं ९९।३०-३१ ।
मणिनाग--वन० ८४।१०६, पद्म० ११३८।२४ । भोगवती या वासुकितीर्थ---(१) (प्रयाग के अन्तर्गत) मणिपूरगिरि-(स्तुतस्वामी के अन्तर्गत) वराह०
यह प्रजापति की वेदी कही जाती है; बन०८५।७७, १४८१६३ । मत्स्य० १०६।४३ एवं ११०।८, अग्नि० ११११५, मण्डवा-वायु० ७७१५६ (श्राद्ध के लिए अति उपयुक्त नारदीय० २।६३।९५; (२) (इक्ष्वाकु कुल पहाड़ी)। के ककुत्स्थ की राजधानी) कालिकापुराण मण्डलेश्वर-(वाराणसी के अन्तर्गत) लिंग० (ती० ५०।४।
कल्प०, पृ० ६६)। मतङ्गपद--(गया के अन्तर्गत) नारद० २।४४।५७,
वायु० १०८।२५। मऋणा-(ऋक्ष से निकली हुई नदी) वायु० ४५।१०१। मतङ्गस्थाश्रम--(१) (गया के अन्तर्गत) वन० ८४। मंगला-(गया में देवीस्थान) देवीभागवत ७।३८।२४। १०१, अग्नि० ११५।३४; (२) (वाराणसी में) मंगलप्रस्थ--(पहाड़ी) भाग० ५।१९।१६ ।
वन० ८७।२५। मंगलासंगम--(गोदावरी के अन्तर्गत) ब्रह्म० १२२१- मतङ्गस्य केदार-वन० ८८।१७, पद्म० ११३९।१५ । ९४ एवं १०० (इसे गोविन्द भी कहा जाता मतङ्गवापी--(१) (गया के अन्तर्गत) वायु० १११।
२३-२४, अग्नि० ११५।३४, नारद० २०४५।१००, मंगलेश्वर--(नर्मदा के अन्तर्गत) पद्म० २।९।३३। वि० ध० सू० ८५।३८; (२) (कोशला में) वायु० मंकुटी--(ऋक्षवान् से निकली ई नदी) ब्रह्माण्ड ७७।३६; (३) (कैलास पर) ब्रह्माण्ड० ३।१३।
२।१६।३१। मञ्जला--(एक नदी) भीष्म० ९।३४।
मतङ्गेश-(१) (गया के अन्तर्गत) अग्नि० १११॥३५ । मणिकर्णी-(या मणिकर्णिका) (वाराणसी के अन्तर्गत) मतङ्गेश्वर--(वाराणसी के अन्तर्गत) लिंग० (ती०
मत्स्य० १८२।२४, १८५।६९, नारदीय० २।४०।८७ कल्प०, पृ० ८७) । एवं ४९।४४, पम०६।२३।४४।
मथुरा--देखिए इस ग्रन्य का खण्ड ४, अध्याय १५ एवं मणिकर्णीश्वर--(वाराणसी के अन्तर्गत) नारद ऐ० जि० (पृष्ठ ३७३-३७५ मयुरा एवं वृन्दावन
२०४९।४५, लिंग० (ती० कल्प०, पृ० १०३)। के लिए)।
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