SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 469
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४६२ धर्मशास्त्र का इतिहास ब्रह्मनदी --- ( यह सरस्वती का नाम है) भागवत० ९ - ब्रह्मानुस्वर -- ( कुरुक्षेत्र के अन्तर्गत ) पद्म० ११२६१ १६।२३ । ६७ । ब्रह्मणस्तीर्थ- -- वन० ८३।११३, पद्म० १।२७।२ ( ब्रह्मण: ब्रह्मावर्त - ( १ ) ३६ । ब्रह्मपुत्र -- देखिए 'लौहित्य', जो इसका एक अन्य नाम है । ब्रह्मबालुका - वन० ८२।१०६, पद्म० १।२५।१३ । ब्रह्मसर -- ( १ ) ( थानेश्वर के पास ) वायु० ७७ ५१, ( सरस्वती एवं दृषद्वती के मध्य की पवित्र भूमि ) मनु० २।१७, कालिका० ४९।७१ । मेघदूत ( ११४८ ) के अनुसार कुरुक्षेत्र ब्रह्मावर्त के अन्तर्गत था । यह एक पवित्र तीर्थ है। वन ८३।५३-५४, ८४१४३, मत्स्य० २२/६९, अग्नि० १०९ / १७ (२) ( नर्मदा के अन्तर्गत ) मत्स्य ० १९०७, १९१७०, पद्म० १।१७।५। ब्रह्मेश्वर लिंग - (१) (श्रीपर्वत के अन्तर्गत ) कूर्म ० २०४११८, लिंग० १।९२ । १५८-१६० ( इसे अलेश्वर भी कहा जाता है); (२) ( वारा० के अन्तर्गत ) लिंग० (ती० कल्प०, पृ० ११५ ) । ब्रह्मोवर - वाम ० ३६ । ७-८ । मत्स्य० २२।१२, वाम० २२।५५-६० एवं ४९/३८-३९ । यह सर कई नामों से विख्यात है, यथा ब्रह्मसर, रामह्रद या पवनसर इत्यादि (२) ( गया के अन्तर्गत ) वन० ४४।८५ ( धर्मारण्योपशोभित) एवं ९५।११, अनु० २५/५८, अग्नि० ११५।३८, वायु० १११।३० ; (३) (कोकामुख के अन्तर्गत ) वराह० १४०।३७-३९; (४) ( सानन्दूर के अन्तर्गत ) वराह० १५८/२०१ ब्रह्मोदय - ( वाग्मती के दक्षिण) वराह० २१५।१०२ । ब्रह्मोद्भव - वराह० २१५।९१ । ब्रह्मोदुम्बर - वन० ८३ । ७१ । ब्रह्मशिर - ( गया के अन्तर्गत) कूर्म० २।३।३८, नारद० ब्राह्मणकुण्डिका ( कश्मीर में एक तीर्थ ) नीलमत० २०४४१४६ ( यहाँ ब्रह्मयूप है ) । १४९९, १५०१ । २२ । ब्रह्मस्थान - वन० ८३।७१, ८५।३५, पद्म० १।२७।२ । ब्राह्मणिका (नैमिष वन के पास ) पद्म० १।३२१ब्रह्मस्थूणा पद्म० १।३९।३३ । ब्रह्मवल्लीतीर्थ- ( साभ्रमती के अन्तर्गत) पद्म० ६/- ब्राह्मणी - ( सम्भवत: वह बामनी जो चम्बल में मिलती है) वन० ८४ापटा स्थानम् ), पद्म० ११३८/२० । ब्रह्मपद --- ( गोनिष्क्रमण के अन्तर्गत ) वराह० १४७/ १३७।१ । ब्रह्मयोनि - ( १ ) ( सरस्वती पर ) इसे पृथूदक भी कहते हैं, वाम० ३९।२० एवं २३; (२) ( गया के अन्तगंत) वन० ८३ | १४० एवं ८४ ।९५, पद्म० ११२७/२९, नारदीय० २।४७।५४, वायु० १०८/८३ (ब्रह्मयोनि प्रविश्याथों निर्गच्छेद् यस्तु मानवः । परं ब्रह्म सतह विमुक्तो योनिसंकटात् ।।) देखिए ऐं० जि० ( पृष्ठ ४५८ ) जिसका कहना है कि अब अशोकस्तूप के पास एक छोटा-सा मंदिर खड़ा है। ब्रह्मयूप- ( गया के अन्तर्गत ) वायु० १११।३१-३३, अग्नि० ११५ । ३९ । ब्रह्म हब - भागवत ० १०।२८।१६-१७ ( सम्भवतः यह गौरूप में प्रयुक्त है ), ब्रह्माण्ड० ३|१३|५३ । Jain Education International भ भगवत्पदी -- (गंगा) भागवत ० ५।१७।१-९ । भङ्गतीर्थ - ( नर्मदा के अन्तर्गत) मत्स्य० १९१।५२ । भवतीर्थ - - ( १ ) ( नर्मदा के अन्तर्गत) पद्म० १।१८।५४; (२) ( गोदा० के अन्तर्गत ) ब्रह्म० १६५ १, मत्स्य० २२।५० । भवतुङ्ग वन० ८२१८० । भद्रकालेश्वर -- ( यहाँ श्राद्ध करने से परमपद की प्राप्ति होती है) मत्स्य० २२।७४ । भद्रकाली -- बार्ह ० सूत्र ३।१२८ | यह विन्ध्याचल पर निवास करती हैं । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy