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________________ तीर्थसूची १४६१ भगीरथ, इन्द्र एवं नर-नारायण ने तप किया था), हुए बजासन पर बोधि-तर पर एक उत्कीर्ण लेख भागवत० ३।२१।३३ एवं ३९-४४; (२) (वारा० है-भगवतो सकमुनिनो बोधि; देखिए कनिंघम के अन्तर्गत) शिव ने इसमें स्नान किया था और का 'महाबोधि' ग्रन्थ, पृष्ठ ३। ऐसा कहा जाता है ब्रह्मा का कपाल जो उनके हाथ से लग गया था कि सन ६०० ई० में बंगाल के राजा शशांक ने छूटकर गिर पड़ा और यह कपालमोचन तीर्थ बन गया, बोधित को काट डाला था जिसे राजा पूर्ण वर्मा नारदीय० २।२९।५९-६०; ((३) (एका म्रक के ने ६२० ई० में फिर से लगाया। देखिए ऐ० जि. अन्तर्गत) ब्रह्म० ४११२-५४ (इसका नाम इस- पु० ४५३-४५९ जहाँ बोषि-गया एवं बोधि-तरु लिए पड़ा कि रुद्र ने सभी पवित्र स्थलों से जलबूंदें के विषय में लिखा गया है। एकत्र कर इसे भरा था); (४) (कश्मीर में) ब्रह्मकुण्ड-(१) (बदरी के अन्तर्गत) वराह० १४१॥ नीलमत० (१११६-१११७) के मत से यह देश ४-६; (२) (लोहार्गल के अन्तर्गत) वराह० १५१। के पूर्व में एक दिक्पाल है। ७१ (जहाँ चार वेद-धारा नामक झरने हिमालय से विन्दुतीर्ष-यह पंचनद है। देखिए 'पंचनद' के अन्तर्गत। निकलते हैं); (३) (गया के अन्तर्गत) वायु० बिल्वक-(श्राव के लिए एक अति उपयुक्त स्थल) ११०। ८। वि० १० सू० ८५।५२, मत्स्य० २२१७०, कूर्म ब्रह्मकूप-(गया के अन्तर्गत) वायु० १११।२५ तथा २।२०१३३, अनु० २५।१३, नारदीय० २।४०७९। ३१, अग्नि० ११५१३७ । विलपप-(जहाँ से वितस्ता या झेलम निकलती है) ब्रह्मक्षेत्र-(कुरुक्षेत्र) वन० ६३६४-६, वाय० ५९। ह. चि० १२।१५-१७। देखिए 'नीलकुण्ड' के १०६-१०७ तथा ९५।५। अन्तर्गत। ब्रह्मतीर्य-(१) (वाराणसी के अन्तर्गत) कूर्म. बिल्वपत्रक-पम० ६।१२९।११ (शिव के बारह ११३५।९, २।३७।२८, पद्म० ११३७।९-१२ (विष्णु ने तीर्थों में एक)। ब्रह्मा के नाम से इसे स्थापित किया); (२) (गया बिल्वाचल-बार्हस्पत्य सूत्र (३।१२०) के अनुसार के अन्तर्गत) पद्म० ११३८७९ नारद० २।४५।१०२, यह वैष्णव क्षेत्र है। अग्नि० ११५।३६; (३) (गोदा० के अन्तर्गत) बिल्ववन-(मथुरा के बारह वनों में दसवां) वराह० ब्रह्म० ११३।१ एवं २३, ब्रह्माण्ड० ३।१३।५६; १५३६४२। (४) ( सरस्वती पर ) भागवत० १०७८।१९। बुबुवा-(नदी, हिमालय से निकली हुई) ब्रह्माण्ड० ब्रह्मतुङ्ग--अग्नि० १०९।१२, पद्म० ११२४१२८ । २।१६।२५-२७। ब्रह्मतुण्डहव---या ब्रह्मतुङ्गह्रद । ब्रह्माण्ड० ३।१२।७३, पुषेश्वर-(वारा के अन्तर्गत) लिंग० (ती० कल्प०, वायु० ७७१७१-७२ (यहाँ श्राद्ध, जप, होम करने पृ० ५५ एवं ९७)। से अक्षय फल मिलता है)। बहान-(गोकुल के पास, जहाँ नंद गोप अपनी गायें ब्रह्मतारेश्वर-(वारा० के अन्तर्गत) लिंग० (ती. रखते थे) भागवत० १०५।२६ एवं १०।७।३३। कल्प०, पृ० २८)। बृहस्पतिकुण्ड-(लोहार्गल के अन्तर्गत) वराह ब्रह्मगिरि--(१) (एक पर्वत, जहां से गोदावरी निक१५११५५। लती है और जहाँ गौतम का आश्रम था) ब्रह्म बोषितर-(बोध गया में पीपल या बोधिद्रुम) पम० ७४।२५-२६, ८४।२, पद्म० ७।१७६।५८; (२) ६।११७।३० ; देखिए 'महाबोधि तह' के अन्तर्गत। (सह्य की सबसे बड़ी चोटी और कृष्णवेण्या के भरहुत स्तुप (लगभग २०० ई० पूर्व) पर खुदे अन्तर्गत एक तीर्थ) तीर्थसार, पृष्ठ ७८ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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