________________
૪૬૦
किया था, विष्णु० ५। ३७।३४ ( यह आश्रम गन्धमादन पर था जहाँ नर-नारायण रहते हैं), ब्रह्माण्ड ०
३।२५-६७, नारदीय० २१६७ ( विस्तार के साथ वर्णन किया है और उपतीर्थों की सूची भी दी है); वही २२६७/२६ ( यह विशाला नदी पर था ), भागवत० ७।११।६; (२) (यमुना पर मधुवन से थोड़ी दूर पर स्थित ) पद्म० ६।२१२।१ एवं ४३ ।
धर्मशास्त्र का इतिहास
बदरी --- (गन्धमादन पर एक तीर्थ जहाँ नर और नारायण का आश्रम है) वन० ९०।२५ ३२, १४११२३, १७७।८, शान्ति ० १२७।२-३, भागवत० ९१३।३६ एवं ११।२९।४१ ( नारायणाश्रम ), मत्स्य ० २२।७३ (श्राद्ध के लिए अति उपयुक्त), पद्म०६|रा१-७ ( दक्षिणायन में यहाँ पूजा नहीं होती क्योंकि उस समय पर्वत हिमाच्छादित रहता है), विशाला भी नाम है। देखिए इ० जा० आव इण्डिया, जिल्द ६, पृ० १७९-१८०) । बद्रीनाथ का मन्दिर अलकनन्दा के दाहिने तट पर है। बदरीवन-पद्म० १।२७।६६ । बवरीपाचन तीर्थ - वन० ८३।१७९, शल्य० ४७।२३ तथा
४८।१ एवं ५१ ( वसिष्ठ का आश्रम यहीं था ) । बती - (जहाँ मही नदी समुद्र में गिरती है) स्कन्द ० १।२।१३।१०७ ॥
बलभद्र - लिङ्ग -- ( वाराणसी के अन्तर्गत) लिंग० (ती० कल्प०, पृष्ठ ४६ ) ।
१४८ ।
बहुनेत्र - ( नर्मदा पर एक तीर्थ जहाँ त्रयोदशी को यात्रा की जाती है) मत्स्य० १९१।१४ । बहुलवन --- ( मथुरा के अन्तर्गत ) वराह० १५७७८ । बाणगंगा -- ( शालग्राम के अन्तर्गत ) वराह० १४४/
Jain Education International
६३ ( रावण ने सोमेश्वर के दक्षिण एक बाण मारकर इसे निकाला था ) ।
बाणतीर्थ - (१) (गो० के अन्तर्गत) ब्रह्म० १२२/२१४; (२) ( नर्मदा के अन्तर्गत ) कूमं० २०४१ - ९-१०।
बाणेश्वर लिङ्ग - ( वाराणसी के अन्तर्गत ) स्कन्द०,
काशीखण्ड ३३।१३९, लिंग० (ती० कल्प०, पृ० ४८ ) । बालकेश्वर - ( वाराणसी के अन्तर्गत) लिंग० (ती०
कल्प०, पृ० ४३) ।
बालप-या बालपेन्द्र ( साभ्रमती के तट पर ) पद्म० ६।१४५।१, २४ एवं ३७ ( एक सूर्य-क्षेत्र ) । वार्हस्पत्यतीर्थ---- (गोदा० के अन्तर्गत) ब्रह्म० १२२/
बलाका- अनु० २५/१९ ।
वाकेश्वर - ( नर्मदा के अन्तर्गत) मत्स्य० १११।११ । बलिकुण्ड - ( वाराणसी के अन्तर्गत ) लिंग० (ती० कल्प०, पृ० ७६)
बलेश्वर - (श्रीपर्वत के अन्तर्गत ) लिंग० ११९२/- बिन्दुमाधव - ( वारा० के अन्तर्गत) मत्स्य० १८५/
६८, स्कन्द ० २|३३|१४८, नारदीय० २।२९/६१, पद्म ६।१३१।४८ ।
बिन्दुसर - ( १ ) ( बदरी के पास मैनाक पर्वत पर ) वन० १४५१४४, भीष्म० ६१४३-४६, ब्रह्माण्ड ० २।१८।३१, मत्स्य० १२१२।२६ एवं ३१ ३२ (जहाँ
१०१ ।
बाहुबा - (सरस्वती के निकट एक नदी) अनु० १६५/२७, पद्म० १।३२।३१, नारदीय० २।६० ३०, ब्रह्म० २७।३६, मत्स्य० ११४ । २२ एवं वायु० ४५/९५ ( इसका कहना है कि यह हिमवान् से निकली है), वन० ८४।६७ एवं ८७।२७ | देखिए दे ( पृ० १६) एवं पाजिटर ( ० २९१-२९२ ) । वायु० (ccl६६) का कथन है कि युवनाश्व ने अपनी पत्नी गौरी को शाप दे दिया और वह बाहुदा हो गयी। अमरकोश ने इसका पर्याय शतवाहिनी बतलाया है और क्षीरस्वामी ने टिप्पणी की है कि यह कार्तवीर्य द्वारा नीचे उतारी गयी ( कार्तवीर्य को बहुद अर्थात् अधिक दान करने वाला कहा गया है) । बाह्या- (सह्य से निकलनेवाली नदी ) ब्रह्माण्ड ०
२।१६।३५ ।
बिन्दुक - वि० ० सू० ८५।१२ ( कुछ संस्करणों में 'बिल्वक' पाठ आया है ) ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org