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________________ धर्मशास्त्र का इतिहास १४५८ " पृ०६६९ एवं सारंगदेव की चित्र-प्रशस्ति, सन् १२८७ ई०) । प्रभास को देवपत्तन कहा गया है और यह सरस्वती एवं समुद्र के संगम पर अवस्थित है ( एपि० suso, जिल्द १, पृ० २७१ एवं २८३ एवं श्रीघर की प्रशस्ति, सन् १२१६ ई०) । ( २ ) ( सरस्वती पर ) शल्य ० ३५१७८, स्कन्द ० ७।१।११-१४; ( ३ ) ( गया के पास एक पहाड़ी) वायु० १०८ १६, १०९।१४, अग्नि० ११६।१५ ( ४ ) ( वारा० के अन्तर्गत ) कूर्म ० १।३५।१६, पद्म० १ ३७ १५; (५) (द्वारका के अन्तर्गत ) मौसलपर्व ८९, वराह० १४९।२९-३३ ( सरस्वती एवं प्रभास का माहात्म्य ), भाग० ११।३० ६ ( यहाँ प्रत्यक्-सरस्वती है, अर्थात् सरस्वती पश्चिमवाहिनी है, किन्तु कुरुक्षेत्र में प्राची सरस्वती है) । उषवदात के शिलालेख में आया है कि राजकुमार ने प्रभास में ( प्रभासे पुण्यतीर्थे ) विवाहव्यय किया और आठ ब्राह्मणों के लिए दुलहनें प्राप्त कीं। यहीं पर भगवान् कृष्ण ने अपना मर्त्यशरीर छोड़ा। सोमनाथ के आरम्भ, अनुश्रुतियों एवं पुनीतता तथा महमूद गजनवी के आक्रमण की तिथि के लिए देखिए डा० एम्० नाज़िम कृत 'दि लाइफ़ एण्ड टाइम्स आव सुल्तान महमूद आव गजनी' ( पृ० २०९ - २१४ ) ; सोमनाथ के प्रत्याक्रमण आदि के लिए देखिए वही ( पृ० २१९-२२४, ११७ आदि ) ; ५०००० ब्राह्मणों ने मन्दिर के रक्षार्थ अपने प्राण गँवाये, कुल्हाड़ियों एवं अग्नि से मूर्ति तोड़ी गयी, २० करोड दीनार (१०, ५००,००० पौण्ड, आधुनिक मूल्य ) लूट में सुलतान को मिले। ( ६ ) ( कश्मीर में ) ह० चि० १४ । १११ (७) (बदरिकाश्रम की पाँच धाराओं में एक ) नारदीय० २।६७/५७-५८1 प्रयाग-1- (१) (आधुनिक इलाहाबाद ) देखिए इस ग्रन्थ का खण्ड ४, अध्याय १२ एवं ऐं ० जि० ( पृ० ३८८-३९१ ) जहाँ ह्वेनसांग का उद्धरण है; (२) ( सिन्धु एवं वितस्ता अर्थात् झेलम का संगम ) नीलमत० ३९४-३९५ ( यहाँ सिंधु को गंगा एवं वितस्ता को यमुना समझा जाता है ) । Jain Education International प्रयागेश्वर - ( वारा० के अन्तर्गत) लिंग० (ती० क०. पृ० ४५) । प्रवरा - ( गोदावरी में मिलने वाली नदी ) ब्रह्म०१०६ । ४६-५४ ( जिस पर आधुनिक नगर नेवासे या नेवास, जो निवासपुर का द्योतक है, स्थित है) । यह अहमद - नगर में टोका के पास गोदावरी में मिलती है ( देखिए बम्बई गजे ०, जिल्द १७, पृ० ६ ) । प्रवरपुर - ( देखिए श्रीनगर के अन्तर्गत ) ३।३३६-३४९ । राज० प्रवरा-संगम -- ( गोदावरी के साथ) ब्रह्म० १०६११, देखिए बम्बई गजे० (जिल्द १६, पृ० ७४०) जहाँ टोका एवं प्रवरासंगम का उल्लेख है, जहाँ, गोदावरी के संगम पर प्रवरा के बायें एवं दाहिने तटों पर, दो पवित्र नगर हैं । यह संगम नेवास के उत्तर-पूर्व ७ मील की दूरी पर है। प्रश्रवणगिरि - ( १ ) ( जनस्थान में ) रामा० ३।४९।३१ ( २ ) ( तुंगभद्रा पर ) रामा० ४।२७/१-४ ( जिसकी एक गुफा में राम ने कुछ मास बिताये थे) । प्रहसितेश्वर - ( वारा० के अन्तर्गत) लिंग० (ती० क०, पृ० ८९ ) । प्रह्लादेश्वर -- ( वारा० के अन्तर्गत) लिंग० (ती० क०, पृ० ४८) । प्राजापत्य - ( वाराणसी के अन्तर्गत) कूर्म० १।३५/४, पद्म० १|३७|४ | प्रान्तकपानीय- ( पंचनद के पास ) वराह० १४३ । १७ । प्राची- सरस्वती -- ( यह सरस्वती ही है ) (१) भाग० ६|८|४०, वाम० ४२१२०-२३; (२) ( गया के अन्तर्गत ) वायु० ११२।२३ । प्रियमेलक - ( श्राद्ध के लिए अति महत्त्वपूर्ण) मत्स्य ० -२२।५३ । प्रियव्रतेश्वर-लिंग- ( वाराणसी के अन्तर्गत ) स्कन्द ० ४।३३।१५९ । प्रीतिकेश्वर - ( वारा० के अन्तर्गत) लिंग० (ती० क०, पृ० १११) । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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