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तीर्थसूची
पृथुतुंग - नारदीय० २ १६०/२५ । पृथूवक (सरस्वती के दक्षिण तट पर स्थित आधुनिक पेहोवा) देखिए इस ग्रन्थ का खण्ड ४, अध्याय १५ । इसे वाम ० ( १९।१६-१७ एवं २३ ) में ब्रह्मयोनि कहा गया है। देखिए ऐ० जि० ( पृ० ३३६-३३७ ) । पैतामहतीयं - ( नर्मदा के अन्तर्गत) मत्स्य० १९४ |
४-५, कूर्म ० २।४२।१८।
पशाचतीर्थ -- ( गोदावरी के दक्षिण तट पर ) ब्रह्म०
८४ । १-२ एवं १८ (इसे आंजन भी कहते हैं) 1 ब्रह्म० ( १५०1१ ) ने इसे गोदावरी के उत्तरी तट पर कहा है । सम्भवतः ये दोनों भिन्न स्थल हैं। पौण्डरीक -- ( एक विष्णुतीर्थ, लगता है यह पंढरपुर है) पद्म० ६।२८०।१८-१९ ( कृतशौचे हरेत्पापं पौण्डरीके च दण्डके । माथुरे वेंकटाद्री च ) । पौण्ड्र - ( देवदारुवने पौण्ड्रम्) पद्म० ६।१२९।२७। पौष्प्रवर्धन - वायु० १०४ । ७९ ( पवित्र पीठ, ब्रह्माण्ड ० ४१४४१९३) ।
पौलस्स्पतीर्थ -- ( गोदावरी के अन्तर्गत ) ब्रह्म ०९७११ । पौलोम -- (देखिए 'पंचाप्सरस्तीर्थ' ) आदि ० २१६।३। पौष्क-- ( कश्मीर-मण्डल में ) पद्म० ६।१२९।२७ । प्रजापतिक्षेत्र -- मत्स्य० १०४/५ ( यहाँ सीमा बतायी
गयी है) यह प्रयाग है; देखिए इस ग्रन्थ का खण्ड ४, अध्याय १२ ।
प्रजामुख -- ( यहाँ वासुदेव के रूप में विष्णु की पूजा होती है ) वाम० ९०।२८ |
प्रणीता -- ( गोदावरी में मिलने वाली नदी ) ब्रह्म० १६१।१, पद्म० ६ १८१।५ ( गोदावरी के तट पर
कर नामक नगर था)। यह प्रणहिता है । प्रद्युम्नती - नारदीय० २।४०।९६ । दे ( पृ०१५८) का कथन है कि यह बंगाल के हुगली जिले का पण्डुआ है।
प्रद्युम्नगिरि - ( या पीठ ) ( यह श्रीनगर में हरिपर्वत है ) राज० ३।४६०, ७।१६१६, विक्रमांकदेवचरित १८१५, स्टीन-स्मृति, पृ० १४८ एवं कश्मीर रिपोर्ट पृ० १७ ।
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प्रतिष्ठान - (१) (प्रयाग के पास ) वन० ८५/७६, ११४१, वायु० ९१।१८ (पुरूरवा की राजधानी), ९११५० ( यमुना के उत्तरी तट पर ), मत्स्य० १२ १८, १०६।३० (गंगा के पूर्वी तट पर ), मार्क० १०८।१८ ( वसिष्ठ की प्रार्थना पर ऐल पुरूरवा को प्रदत्त), विष्णु ० ४।१।१६, ब्रह्म० २२७।१५१, भाग० ९।१। ४२; (२) ( गोदावरी के बायें तट पर आधुनिक पैठन) ब्रह्म० ११२१२३, वराह० १६५।१, पद्म० ६।१७२।२०, ६।१७६।२ एवं ६ ( जहाँ पर महाराष्ट्र की नारियों की क्रीड़ा का उल्लेख है ) । पीतलखोरी बौद्ध स्तम्भाभिलेख में पतिठान के मितदेव नामक गन्धी के कुल द्वारा स्थापित स्तम्भ का उल्लेख है ( देखिए ए० एस० डब्लू० आई० ४।८३) । देखिए ऐं० जि० ( पृ० ५५३-५५४), जहाँ ह्वेनसांग के समय में महाराष्ट्र की राजधानी प्रतिष्ठान का उल्लेख है । टॉलेमी ने इसे 'बैठन' एवं पेरिप्लस ने 'प्लियान' कहा है । अशोक के शहबाजगढ़ी एवं अन्य स्थान वाले १३वें अनुशासन में 'भोज पितिनिकेशु' का प्रयोग मिलता है, जिसमें अन्तिम शब्द 'प्रतिष्ठानक' का द्योतक है (सी० आई० आई०, जिल्द १, पृ० ६७) ।
प्रतीची -- (एक बड़ी नदी ) भाग० ११/५/४० ( यहां
पर निवास करने वाले वासुदेव के भक्त होते हैं) । प्रभास -- (१) (सौराष्ट्र में, समुद्र के पास, जहाँ १२
लिङ्गों में एक सोमनाथ का प्रसिद्ध मन्दिर था, जिसे महमूद गजनवी ने तोड़ डाला था ) इसे सोमनाथपट्टन भी कहा जाता है, स्कन्द० ७|१|२/४४५३ ( इस नाम के कई मूलों का उल्लेख है ) । वन० ८२१५८, १३०१७, वन० ८८।२०, ११८।१५, ११९। ३, आदि० २१८२-८, शल्य० ३५।४२ ( यहाँ पर चन्द्र का क्षयरोग अच्छा हो गया था), कूर्म ० २। ३५।१५-१७, नारदीय० २।७०११ - ९५ ( माहात्म्य), गरुड़ १।४।८१, वाम० ८४।२९ ( यहाँ सरस्वती समुद्र • में गिरती है) । उषवदात के नासिक शिलालेख में इस तीर्थ का नाम आया है (बम्बई गजे ०, जिल्द १६,
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