SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 463
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धर्मशास्त्र का इतिहास आया है कि पुष्कर में श्राद्ध करने से अनन्त फल प्राप्त १९०११६, कूर्म० २।४१।१०-११, पम० १३१७४१२; होता है। यह ब्रह्मा की पाँच वेदियों में एक है (पद्म० (२) (गया के अन्तर्गत) अग्नि० ११६।१३। ५।१५।१५०, वाम० २२।१९) । ब्रह्माण्ड० (३१३४। पुष्पभद्रा-(१) (हिमालय के उत्तरी ढाल पर एक नदी) ११) एवं वाम० (६५।३१) ने मध्यम पुष्कर का वराह०५१।२, ९८।५. भाग०१२।८।१७, १२।९।१०, उल्लेख किया है एवं ब्रह्माण्ड० (३।३५।३०) ने नृसिंह० (ती० क०, पृ० २५३); (२) (नदी) कनिष्ठ पुष्कर को मध्यम पुष्कर से एक कोस भाग० १२।९।१०।। पश्चिम कहा है। ऐसा कहा गया है कि पुनीत पुष्पगिरि--(भारतवर्ष के छोटे पर्वतों में एक) वायु० सरस्वती यहीं से समुद्र की ओर गयी है (पग्र० ४५।९२, ब्रह्माण्ड० २।१६।२२। देखिए इम्पी० ५।१९।३७)। पर० (५।१५।६३ एवं ८२) ने गजे० इण्डि० (जिल्द २३, पृ० ११४-११५)। 'पुष्कर' नाम की व्याख्या की है (ब्रह्मा ने यहां पुष्पजा-(मलय से निकली हुई नदी) मत्स्य. पुष्कर अर्थात् कमल गिराया था)। ब्रह्माण्ड० ११४१३०, वायु० ४५।१०५ (यहाँ 'पुष्पजाति' पाठा(३।३४।७) में आया है कि परशुराम ने यहां न्तर आया है)। अपने शिष्य अकृतव्रण के साथ सौ वर्षों तक तपस्या पुष्पदन्तेश्वर-(वाराणसी के अन्तर्गत) लिंग० (ती. की। कल्पतरु (तीर्थ, पृ० १८२-१८५) ने वन० क०, पृ० ११७) । (अध्याय ८२) एवं पद्म० (५।२७) से क्रम से २०- पुष्पस्थल-(मथुरा के अन्तर्गत) वराह० १५७।१७ ३९ श्लोक एवं १२ श्लोक उद्धृत किये हैं। अलबरूनी (एक शिवक्षेत्र)।। (जिल्द २, पृ० १४७) का कथन है कि 'नगर के पुष्पवहा-- (नदी) भाग० १२।९।३० (हिमालय के बाहर तीन कुण्ड बने ए हैं, जो पवित्र एवं पूजाह पास) । हैं।' प्रमुख मन्दिर पाँच हैं, किन्तु ये सभी आधुनिक पुष्पवती-(नदी) वन० ८५।१२, पद्म० १॥३९।१२। हैं, प्राचीन मन्दिर औरंगजेब द्वारा नष्ट कर दिये पूर्णा-(१) (विदर्भ की एक नदी) यह तापी से गये थे। इसके अन्तर्गत कई उपतीर्थ हैं (वन०, मिल जाती है; देखिए आइने-अकबरी (जिल्द २, अध्याय ८२) । पुष्कर शब्द वर्णादिगण (पाणिनि पृ० २२४); इस संगम पर चंगदेव नामक ग्राम ४।२।८२) में आया है। (२) (पुष्कर, सरस्वती है और चक्रतीर्थ नामक एक तीर्थ है; (२) सूरत के तट पर, इसे सुप्रभ नामक पर्वत कहा जाता है) जिले में यह समुद्र में गिरती है (बम्बई गजे०, जिल्द आदि० २२१११५, शल्य० ३८१३-१५; (३) ह. २, पृ०२६); (३) (पूर्णा, जो पर्भणी जिले में चि० १४११११ (कश्मीर में, कपटेश्वर में कई तीर्थों गोदावरी में मिलती है) देखिए इम्पी० गजे. इण्डि. की श्रेणी में एक); (४) (बदरिकाश्रम की पाँच (जिल्द १२, पृ० २९७)। क्या यह ब्रह्मपुराण धाराओं में एक नारदीय० २१६४५७-५८। (१०५।२२) में उल्लिखित पूर्णातीर्थ है ? पुष्करारण्य-पद्म० ५।१८२१७, सभा० ३२.८ (यहां पूर्णतीर्थ--(गोदावरी के उत्तरी तट पर) ब्रह्म से प्राची सरस्वती बहती थी! बहत्संहिता १२२।१। पूर्णमुख--(कुब्जाम्रक के अन्तर्गत) वराह० १२६।४०पुष्करावती--यह नदी सम्भवत' पाणिनि (४।२।८५) ४१ । को हात थी। कात्रिका टीका आदि ने इसका उल्लेख पूर्वामुख-(पूर्णमुख का एक अन्य पाठान्तर) वराह० १२६४। पुष्करिणी---(१) (नर्मदा के अन्तर्गत) मत्स्य० पृथिवीतीर्थ-पद्म० १।२६।११ (पारिप्लव के पास) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy