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धर्मशास्त्र का इतिहास पञ्चब्रह्म--(वारा० के अन्तर्गत) लिंग० (ती० क०, पञ्चार्जुन क्षेत्र--(स्तुतस्वामी के उत्तर में) वराह पृ० ६५)।
१४८।४५। पञ्चवट-- (कुरुक्षेत्र के अन्तर्गत) वाम० ४१।११, पण्डारक-बन-(श्राद्ध के लिए उत्तम) वायु० ७७।३७।
पद्म० ११२७१५० (सम्भवतः यह पंचवटी है, वन० पतत्रितीर्थ-(गोदावरी के अन्तर्गत) ब्रह्म० १६६।१ । ८३।१६२)।
पथीश्वर--(भरतगिरि एवं वितस्ता के आगे कश्मीर में) पञ्चवटी--(१) (उत्तर में) वन० ८३।१६२; (२) नीलमत० १२४५ (मन्दिर), १३९८ ।
(गोदावरी पर) रामा० ३।१३।१३ (इसे 'देश' कहा पत्रेश्वर--(नर्मदा के उत्तरी तट पर) पद्य० १।१७।१। गया है), ३।१३।९ (अगस्त्याश्रम से दो योजन पद्मावती-शल्यः ४६।९ (मातृकाओं में एक); यह नरदूर), नारदीय० २१७५।३०, अग्नि० ७।३। देखिए वर नगर है। देखिए ऐं० जि० (पृ० २५०) एवं खजुगत अध्याय १५।
राहो लेख (संवत् १०५८, १००१-२ ई०), जिसमें पञ्चयक्षा-(स्थान अनिश्चित) वन० ८४।१०। स्थान का वर्णन है, यहाँ भवभूति के 'मालतीमाधव' पञ्चवन--(गयां के अन्तर्गत) वायु० ७७।९९ । नाटक का दृश्य है (एपि० इण्डि०, जिल्द १, पृ० पंकजवन--(गया के अन्तर्गत) नारदीय० २।४४।५८, १४७ एवं १५१)। यहाँ निषध के राजा नल का
वायु० ११२।४३ (इस वन में पाण्डुशिला थी)। घर था। पञ्चायतन--(नर्मदा पर पाँच तीर्थ) मत्स्य० १९१। पम्पा--(१) (तुंगभद्रा की एक सहायक नदी) भाग० ६१-६२।
१०१७९।१२, वाम ० ९०।१६; (२) (जपा या जया) पञ्चसर--(१) (लोहार्गल के अन्तर्गत एक कुण्ड) पद्म० १।२६।२०-२१ (कुरुक्षेत्र का द्वार कहा गया वराह० १५१॥ ३४; (२) द्वारका के अन्तर्गत एक है)। कुण्ड) वराह० १४९।२३।
पम्पासर--(बेलारी जिले में ऋष्यमूक के पास) वन० पञ्चशिखा--(बदरी के अन्तर्गत) वराह० १४१। २७९।४४,२८०११, रामा० ३१७२।१२, ७३।११ एवं १४-१६।
३२, ६।१२६३५, वन० २८०।१, भाग०७।१४।३१, पञ्चशिखश्वर--(वारा० के अन्तर्गत) लिग० (ती० १०७९।१२ (सप्तगोदावरी वेणां पम्पां भीमरथीं क०, पृ०६७)।
ततः)। पञ्चशिर--(बदरी के अन्तर्गत) वराह०१४१।३९-४४। पम्पातीर्थ--मत्स्य २२१५०, भाग०७।१४।३१। पञ्चाश्वमेधिक-वायु० ७७।४५, ब्रह्माण्ड० ३।१३।४५। पलाशक--(जहाँ पर जमदग्नि ने यज्ञ क्यिा था) पञ्चाप्सरस्तीर्थ--(दक्षिणी समुद्र पर) भाग० १०॥७९॥ वन० ९०।१६ (पलाशकेषु पुण्येषु) ।
१८ (श्रीधर स्वामी ने, जो भागवत के टीकाकार पलाशिनी--(नदी) (१) (काठियावाड़ में गिरनार हैं, लिखा है कि यह तोर्य फाल्गुन में है जो मद्रास राज्य के पास) देखिए रैवतक के अन्तर्गत एवं रुद्रदामन में अनन्तपुर है)। आदि० (२१६।१-४) ने इनके का जूनागढ़ शिलालेख (एपि० इण्डि०, जिल्द ८, अगस्त्यतीर्थ, सौभद्र, पौलोम, कारन्धम एवं भारद्वाज पृ० ३६ एवं ४३) एवं स्कन्दगुप्त का शिलालेख नाम बतलाये हैं। इनको सभी ने त्याग दिया था, (४५७ ई०, सी० आई० आई०, ३, पृ०६४)। (२) किन्तु अर्जुन इनमें कूद पड़े और अप्सराओं का, जो (पदैर नामक नदी, जो गंजाम जिले के कलिंगपत्तन शापवश कुण्ड हो गयी थीं, उद्धार किया। स्कन्द० के पास समुद्र में गिरती है) मार्क० ५४।३० (शुक्ति(माहेश्वरखण्ड, कौमारिका प्रकरण, अध्याय १) मान् से निकली हुई), वायु०४५।१०७।। के मत से यह पंचाप्सरः समुद्धरण' (अर्जुन द्वारा) है। परिहासपुर--(कश्मीर में आधुनिक परस्पोर) ललिता
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