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इससे प्रकट होता है कि निषघ हिमालय श्रेणी का एक भाग है । वायु० ४७।६४ ।
निषषा -- (विन्ध्य से निकली हुई एक नदी ) ब्रह्माण्ड ० २।१६।३.२, वायु० ४५।१०२ । निष्ठासंगम -- ( जहाँ वसिष्ठाश्रम था ) पद्म० ११३८ । ५६ ।
निष्ठावास -- पद्म० १|३८|५४ । निष्ठीवी (हिमवान् से निकली हुई नदी ) ब्रह्माण्ड ० २।१६।२६ ।
नीलकण्ठ-लिंग- - ( वाराणसी के अन्तर्गत ) लिंग० (ती० क०, पृ० ११८ ) । नीलकण्ठतीर्थ - - ( साभ्रमती अन्तर्गत ) पद्म०
६।१६८।१ । नीलकुण्ड -- ( १ ) ( एक पितृतीर्थ ) मत्स्य० २२।२२; (२) नीलकुण्ड, वितस्ता एवं शूलघात एक ही तीर्थ के तीन नाम हैं या कश्मीर में एक धारा है। नीलमत० १५००, ह० चि० १२।१७ । नीलनाग - ( नागों के राजा एवं कश्मीर के रक्षक ) नीलमत० २९५ - ३०१, राज० ११२८, ह० चि० १२/१७, स्टीन-स्मृति, पृ० १८२ । शाहाबाद परगने में यह बिंग के दक्षिण है; यह बेरीनाग के नाम से विख्यात है जो वितस्ता का दन्त-कथात्मक उद्गमस्थल माना जाता है। आइने अकबरी (जिल्द २, पृ० ३६१ ) ने इसे विहत ( वितस्ता ) का उद्गम स्थल कहा है और उसमें निम्न बात आयी है--नीलनाग, जिसकी भूमि ४० बीघा है, इसका जल स्वच्छ है और यह पुनीत स्थल है; बहुत से लोग इसके तट
पर जान-बूझकर अग्नि प्रवेश करके प्राण गँवाते हैं ।' नीलतीर्थ - - वाम० ( ती० क०, पृ० २३८ ) ।
नीलपर्यंत -- (१) (हरिद्वार के पास ) अनु० २५।१३ 'गंगाद्वारे कुशावर्ते बिल्वके नीलपर्वते । तथा कनखले स्नात्वा धूतपाप्मा दिवं ब्रजेत् ॥' लिंग० (ती० क० पृ० २५४), वि० ध० सू० ८५।१३, मत्स्य ० २२।७०, भाग० ५।१९।१६, कूर्म ० २।२० ३३, देवीभाग० ७।३८ (देवीस्थान, नीलाम्बा ); (२) ( वह
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धर्मशास्त्र का इतिहास
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टोला जिस पर जगन्नाथ का महामन्दिर स्थित है) पद्म० ४।१७।२३ एत्र ३५, ४।१८१२, स्कन्द ० ( तीर्थप्रकाश, पृ० ५६२ ) ।
नीलगंगा --- ( गोदावरी के अन्तर्गत, और नीलपर्वत से
निकलने वाली ) ब्रह्म० ८०१४।
नीलवन -- रामा० २।५५१८ (चित्रकूट से एक कोस पर ) । नीलाचल --- (१) (उड़ीसा में, पुरी का एक छोटा पर्वत या टोला, जिस पर जगन्नाथ का महामन्दिर अवस्थित माना जाता है) देखिए 'नीलपर्वत'; (२) (गौहाटी के पास एक पहाड़ी, जिस पर सती का मन्दिर बना हुआ है।
नीलोत्पला -- (ऋक्ष पर्वत से निकली हुई नदी) वायु० ४५/१०० ।
नीरजेश्वर --- ( नर्मदा के अन्तर्गत ) पद्म० १११८६ | नूपा -- ( पारियात्र से निकली हुई नदी ) ब्रह्माण्ड० २।
१६।२८, मार्क० ५४।२३ (यहाँ 'तूपी' पाठ आया है) । नेपाल-- ( आधुनिक नेपाल ) वराह० २१५।२८, वायु ०
१०४।७९, देवीभाग० ७|३८|११ ( यहाँ ह्यकाली एक महास्थान है) समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशस्ति में यह नाम आया है (सी० आई० आई० जिल्द ३, पृ० १४ ) ।
नैमिष या नैमिश -- (एक वन ) ( १ ) ( गोमती पर नीमसार नामक जनपद या भूमि खण्ड, जो लखनऊ से ४५ मील दूर है ) । काठकसंहिता (१०/६ ) में आया है - 'नैमिष्या वैस्त्रमासत' ; पंचविंशत्र [ह्मण ( २५/६ | ४ ) में 'नैमिशोय' एवं कौषीतकी ब्राह्मण ( २६/५ ) में 'नैमिषीयाणाम्' आया है, (२८०४ ) में भी ऐसा ही है। महाभारत एवं पुराणों में इसका बहुधा उल्लेख हुआ है। देखिए वन० ८४।५९-६४ (संसार के सभी तीर्थ यहाँ केन्द्रित हैं), वन ८७५७ ( पूर्व में गोमती पर), मत्स्य० १०९।३ (पृथ्वी पर अत्यन्त पवित्र ), कूर्म ० २।२० ३४, कूर्म ० २।४३।११६ ( महादेव को अति प्रिय), वायु० २१८, ब्रह्माण्ड ० १।२१८, दोनों ने इस प्रकार इसकी व्युत्पत्ति की है-'ब्रह्मणो धर्मचक्रस्य यत्र नेमिरशीर्यत', 'नेमि' चक्र का
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