SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 447
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४४० त्रिदिवा --- (१) (हिमवान् से निकली हुई नदी ) ब्रह्माण्ड० २।१६।२६ (२) ( महेन्द्र से निकली ) मत्स्य० ११४।३१, वायु०४५।१०६, ब्रह्म० २७।३७; (३) (ऋक्षवान् से निकली ) ब्रह्माण्ड० २।१६।३१ | त्रिदिवाबला -- ( महेन्द्र से निकली हुई नदी ) ब्रह्माण्ड ० २।१६।३७ । सम्भवतः त्रिदिवा एवं बला । त्रिपदी ( तिरुपति) - रेणीगुण्ट नामक स्टेशन से कुछ दूर उत्तर अर्काट जिले में । यह वेंकटगिरि है, जिसके ऊपर वेंकटेश्वर या बालाजी का प्रसिद्ध मन्दिर है । त्रिपलक्ष-- ( यहाँ श्राद्ध अत्यन्त फलदायक होता है) ब्रह्माण्ड० ३।१३ । ६९ । त्रिपुर -- (१) ( श्राद्ध के लिए अति उपयोगी स्थल ) मत्स्य० २२|४३; (२) (बाणासुर की राजधानी ) पद्म ०, १, अध्याय १४-१५ कर्णपर्व ३३|१७ एवं ३४।११३ - ११४ । मत्स्य० ( अध्याय १२९१४०) ने त्रिपुरदाह का सविस्तर वर्णन उपस्थित किया है । और देखिए अनु० १६० १ २५-३१ एवं कुमारी भक्तिनुवा मुखोपाध्याय द्वारा प्रस्तुत एक लेख 'दि त्रिपुर एपिसीड इन संस्कृत लिटरेचर' (जर्नल, गंगानाथ झा रिसर्च इंस्टीटयूट जिल्द ८, पृ० ३७१-३९५) । त्रिपुरान्तक - - ( श्रीपर्वत के पूर्वी द्वार पर ) लिंग० धर्मशास्त्र का इतिहास १।९२।१५० । त्रिपुरी -- ( नर्मदा पर ) तीर्थसार ( पृ० १००) ने इसके विषय में तीन श्लोक उद्धृत किये हैं । यह जबलपुर के पश्चिम ६ मील दूर आधुनिक तेवर है । यह कल रियों एवं चेदियों की राजधानी थी। देखिए यश:कर्णदेव का जबलपुर दान-पत्र ( ११२२ ई०), एपि० इण्डि० (जिल्द २, पृ० १, ३, वही, जिल्द १९, पृ० ७५, जहाँ महाकोसल का विस्तार दिया हुआ है ) । मत्स्य ० ( ११४|५३), सभा० (२१/६०) एवं बृहत्संहिता ( १४1९ ) ने त्रिपुर देश को विन्ध्य के पृष्ठ भाग में अवस्थित माना है। ई० पू० दूसरी शताब्दी की ताम्रमुद्राओं से भी त्रिपुरी का पता चलता है । संक्षोभ के बेतूल दानपत्र से पता चलता है कि त्रिपुरी Jain Education International विषय दभाल देश में अवस्थित था । देखिए आर० डी० बनर्जी कृत 'हैहयज आव त्रिपुरी ( पृ० १३७) । त्रिपुरेश्वर - ( डल झील से तीन मील दूर आधुनिक ग्राम त्रिफर जो कश्मीर में है) राज० ५/४६, ह० चि० १३।२००। कुछ लोगों ने इसकी पहचान ज्येष्ठेश्वर से की है। त्रिपुष्कर - देखिए 'पुष्कर' । त्रिभागा -- ( महेन्द्र से निकली हुई नदी) मत्स्य ० ११४।३१, वायु० ४५११०४ । त्रिलिंग -- वह देश, जहाँ कालहस्ती, श्रीशैल एवं द्राक्षा राम नामक तीन विख्यात लिंग हैं। त्रिलोचन लिंग -- ( वाराणसी में ) स्कन्द० ४।३३।१२०, कूर्म० १।३५।१४-१५, पद्म० १।३७।१७। त्रिविष्टप - पद्म० १।२६।७९ ( जहाँ वैतरणी नदी है) । त्रिवेणी - (१) (प्रयाग में ) वराह० १४४।८६८७ (२) ( गण्डकी, देविका एवं ब्रह्मपुत्रा नामक नदियों का संगम ) वराह० १४४।८३ एवं ११२११५ । यहीं पर गजेन्द्र को ग्राह ने पानी में खींच लिया था । वराह० १४४।११६- १३४ । त्रिशूलगंगा - वन० ८४|११ । सम्भवतः यह 'शूलघात' नामक कश्मीर का तीर्थ है। त्रिशूलपात -- ( सरस्वती के अन्तर्गत) पद्म० ११२८१२ ( सम्भवतः यह ऊपर वाला तीर्थ है ) । त्रिशिखर -- (पर्वत) वायु० ४२।२८, मत्स्य० १८३।२ । त्रिसन्ध्या या त्रिसंध्यम् -- (१) मत्स्य० २२।४६ ( पितृ तीर्थ ); (२) (संध्या देवी का झरना ) कश्मीर के पवित्रतम तीर्थों में एक । अब यह बिंग परगने में सुन्दवार नामक स्थान है, नीलमत० १४७१, राज० १३३, स्टीन-स्मृति, पृ० १८१ । त्रिसामा - ( महेन्द्र से निकली हुई एक नदी ) वायु० ४५ १०६, विष्णु ० २।३।१३, भाग० ५।१९।१८ ( जहाँ उद्गम-स्थल का वर्णन नहीं है) । त्रिस्थान --- ( सम्भवतः यह वाराणसी है) अनु० २५/१६ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy