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तीर्थसूची
१४४१ त्रिहलिकामाम-(श्राद्ध यहाँ अति फलदायक होता है) दक्षिण-सिन्धु-(चम्बल की एक सहायक नदी) वन० वि०ध० सू० ८५।२४ (टीका के अनुसार यह शालग्राम ८२।५३, पद्म० ११२४।१, मेघदूत ११३० ।
वक्षेश्वर--(वाराणसी के अन्तर्गत) लिंग० (ती० क०, श्रयम्बक तीर्थ-(१) (गोदावरी के अन्तर्गत पितृ- पृ० ७५)। तीर्थ) मत्स्य० २२।४७, कूर्म० २।३५।१८; (२) दण्ड--वन० ८५।१५।
(नर्मदा के अन्तर्गत) पद्म० १।१८।११२। दण्डक---(एक भूमि-भाग का नाम, स्थान का परिज्ञान त्र्यम्बकेश्वर--(नासिक में, जहाँ से गोदावरी निकलती धूमिल, सम्भवतः यह दण्डकारण्य ही है) रामा०
है) नारदीय० २।७३।१-१५२ (यहाँ इसका २।९।१२ (दिशमास्थाय कैकेयी दक्षिणांदण्डकान्प्रति)। माहात्म्य वर्णित है), स्कन्द० ४।६।२२, पद्म० दण्डकारण्य--(या दण्डकवन) वन० ८५।१४, १४७) ६।१७६।५८-५९, ब्रह्म० ७९।६।
३२, वराह०७१।१० (जहाँ गौतम ने यज्ञ किया था), ब्रह्म० ८८।१८।११०, ९६ (गौतमी दण्डक में है),
१२३।११७-१२० (यहाँ से आरम्भ होकर गौतमी पांच बंष्ट्रांकुर--(कोकामुख के अन्तर्गत) वराह० १४०। योजन थी), १२९।६५ (संसार का सारतत्व), १६१॥ ६८-७०।
७३ (यह धर्म एवं मुक्ति का बीज है), शल्य० ३९।९दक्षकन्यातीर्ष-(नर्मदा के अन्तर्गत) पद्म० १।२१।१४। १० (यहाँ जनस्थान भी है), रामा० २।१८।३३ एवं पक्षतीर्थ-(कुरुक्षेत्र के अन्तर्गत) वाम० ४६।२ (स्थाणु- ३७, ३।१११, वाम० ८४।१२ (यहाँ दण्डकारण्य के
वट के दक्षिण), वाम० ३४१२० (दक्षाश्रम एवं ब्राह्मणों का उल्लेख है) एवं ४३, पद्म० ३४।५८दक्षेश्वर)।
५९ (नाम का मूल)। देखिए जे० बी० आर० ए. बक्षप्रयाग--नारदीय० २।४०।९६-९७।
एस० (१९१७, पृ० १४-१५, ऐं० जि० आव महाबक्षिण-गंगा--(१) (गोदावरी) ब्रह्म० ७७।९-१०, राष्ट्र), पाजिटर की टिप्पणी (जे० आर० ए० एस०,
७८१७७; (२) (कावेरी) नृसिंह० ६६५७; (३) १८९४, गोदावरी के वनवास की जियाग्रॉफी, १० (नर्मदा) स्कन्द०, रेवाखण्ड, ४१२४; (४) २४२) । सम्भवतः दण्डकारण्य में बुन्देलखण्ड या (तुंगभद्रा) विक्रमांकदेवचरित, ४।६२ ।
भूपाल से लेकर गोदावरी या कृष्णा तक के सारे वन बक्षिण-गोकर्ण--वराह० २१६।२२-२३ ।
सम्मिलित थे। बाह० स० (१६५६) का कथन है बक्षिण-पंचनद-वि० ध० सू० ८५।५१ (वैजयन्ती टीका कि हस्त नक्षत्र में दुष्ट धूमकेतु दण्डकारण्य के प्रमुख
के अनुसार पांच नदियाँ ये हैं-कृष्णा, कावेरी, तुंगा, को मार डालता है। भद्रा एवं कोणा)।
दण्डखात-(वाराणसी के अन्तर्गत) लिंग० (ती. बक्षिण-प्रयाग--(बंगाल के सप्तग्राम में यह मोक्षवेणी के क०, पृ० ९०)। नाम से विख्यात है) गंगावाक्यावली, पृ० २९६ एवं दत्तात्रेय-लिंग-(वाराणसी के अन्तर्गत) लिंग० (ती० तीर्थप्रकाश, पृ० ३५५ । दे (पृ० ५२) के मत से यह क०, पृ० ११३)। त्रिवेणी बंगाल में हुगली के उत्तर में है।
दधिकर्णेश्वर-(वाराणमी के अन्तर्गत) लिंग० (ती. दक्षिण-मथुरा---(मद्रास प्रान्त में मदुरा) भाग० क०, पृ० ९४)। १०७९।१५।
दधीचतीर्थ-वन०८३।१८६, पद्म० १।२७।७३-७४ (जहाँ दक्षिण-मानस- (गया में एक तालाब या कुण्ड) नार- सारस्वत ठहर गये और सिद्धराट् अर्थात सिद्ध लोगों दीय० २।४५।७४, अग्नि० ११५।१७ ।
के कुमार अथवा राजा हो गये)।
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