________________
१४३८
तपोवन -- (१) (गोदावरी के दक्षिण तट पर ) ब्रह्म ० १२८|१; (२) (वंग देश में ) वन० ८४।११५, पद्म० १।३८।३१ । 'ततो वनम्' वनपर्व में अशुद्ध छपा है। तमसा---
- ( १ ) ( सरयू के पश्चिम बहती हुई, गंगा से मिलनेवाली आधुनिक टोंस ) रामा० १२/३, २/४५/३२, रघुवंश ९१२०, १४।७६ | देखिए सी० आई० आई०, जिल्द ३, पृ० १२८, जहाँ तमसा पर स्थित आश्रमक नामक ग्राम के दान ( सन् ५१२१३ ई०) का उल्लेख है; (२) वायु० ४५/१००; ( ३ ) ( यमुना से मिलने वाली नदी ) देवीभाग० ६।१८।१२ ।
धर्मशास्त्र का इतिहास
तण्डुलकाश्रम -- ( पुष्कर एवं जम्बूमार्ग के पास ) वन०
८२।४३, अग्नि० १०९/९, पद्म० १।१२।२ । तपस्तीर्थ -- ( गोदावरी के अन्तर्गत ) ब्रह्म० १२६।१
एवं ३७ (इसे सत्रतीर्थ भी कहा जाता है) । तपती -- (नदी) मत्स्य० २२।३२-३३ ( यह यहाँ तापी है और मूल तापी से भिन्न है ) । आदि० ( अध्याय १७१-१७३ ) में तपती सूर्य की कन्या कही गयी है, जिससे राजा संवरण ने विवाह किया और उससे कुरु नामक पुत्र उत्पन्न हुआ; मार्क० १०५/६ ( सूर्य की छोटी पुत्री नदी हो गयी ) ।
तरण्ड या तरन्तुक -- ( कुरुक्षेत्र का एक द्वारपाल ) वन० ८३।१५, पद्म १।२७।९२ ( ' तरण्ड' शब्द आया है), वामन पुराण २०१६० ।
तापिका -- यह तापी ही है । देवीपुराण (ती० क०, पृ० २४२)।
तापी -- (नदी, विन्ध्य से निकलकर सूरत के पास अरब सागर में गिरती है) इसे 'ताप्ती' भी कहा जाता है। मत्स्य० ११४।२७, ब्रह्म० २७।३३, वायु० ४५।१०२, अग्नि० १०९।२२ । तापी का उल्लेख उषवदात के शिलालेख (सं० १०, बम्बई गजे०, जिल्द १६, पृ० ५६९) में हुआ है। देखिए पयोष्णी के अन्तर्गत एवं तीर्थ प्र० ( पृ० ५४४-५४७), जहाँ इसके माहात्म्य एवं उपतीर्थों का उल्लेख है ।.
Jain Education International
तापी- समुद्र-संगम तीर्थप्रकाश, पृ० ५४७ । तापसेश्वर -- ( नर्मदा के अन्तर्गत) कूर्म० २।४१।६६, पद्म० १।१८।९६ ।
तापेश्वर -- ( नर्मदा के अन्तर्गत) मत्स्य० १९१। १०४ । ताम्रपर्णी -- ( पाण्ड्य देश में मलय से निकलकर समुद्र में गिरने वाली नदी ) ब्रह्म० २७।३६, मत्स्य ० ११४/३०, वायु० ४५।१०५ एवं ७७, २४/२७, वन० ८८।१४, रामा० ४।४१।१७-१८, कूर्म ० २|३७| २१-२२, ब्रह्माण्ड० ३।१३।२४, भाग० १०।७९।१६ एवं ११।५।३९ । दे० मेगस्थनीज (ऐं० इण्डि०, पृ०६२) के टैम्पोबेन एवं अशोक के गिरनार वाले लेख (सं० २) का 'तम्बपन्नी' नाम । यह श्रीलंका ( सीलोन) भी है, किन्तु नदी की ओर भी संकेत कर सकता है; एपि० इण्डि० (२०, पृ० २३, नागार्जुनीकोण्ड लेख ) ; ब्रह्माण्ड० ३।१३।२४ एवं २५, रघुवंश (४।४९-५० ) से प्रकट होता है कि यहाँ मोती पाये जाते थे । ताम्रप्रभ -- ( मथुरा के अन्तर्गत ) वराह० (ती० क०, पृ० १९१) ।
ताम्रारुण - वन० ८५।१५४ ।
ताम्रवती -- ( अग्नि की मातृरूप नदियों में एक )
वन० २२२।२३ ।
तालकर्णेश्वर - ( वाराणसी के अन्तर्गत) लिंग ० (ती० क०, पृ० ७२ ) ।
तालतीर्थ --- ( वाराणसी के अन्तर्गत ) पद्म० १।३७।२ । तालवन -- (मथुरा के पश्चिम ) वराह० १५७ ३५ । तारकेश्वर - ( वाराणसी के अन्तर्गत) लिंग० (ती०
क०, पृ० १०४ ) | यह बंगाल के हुगली जिले में एक ग्राम के नाम से शिव का प्रसिद्ध तीर्थ भी है। देखिए इम्पि० गजे० इण्डि०, जिल्द २३, पृ० २४९ । तिमि -- (शंकुकर्णेश्वर की दाहिनी ओर ) पद्म० ११२४१
२०-२३ ।
तीर्थकोटि वन० ८४ । १२१, पद्म० १|३८|३८ । तुलजापुर - (एक देवीस्थान ) देवीभाग० ७|३८| ६ | तुङ्गा -- ( कृष्णा में मिलने वाली एक नदी ) नृसिंह० ६६।७ ( पाठान्तर पाया जाता है), तीर्थ कल्प ०
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org