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जैगीषव्येश्वर --- ( वारा० के अन्तर्गत) लिंग० (ती० क०, पृ० ९१) ।
ज्योत्स्ना - (मानसरोवर से निकलनेबाली एक नदी ) ब्रह्माण्ड ० २।१८।७१ ।
भागवत ० ७|३८|६ ।
ज्वालासर - ( अमरकण्टक पर्वत पर ) ब्रह्माण्ड० ३1
जाह्नवी -- ( गंगा का नाम ) वायु० ९११५४-५८ ज्वालामुखी - (एक देवीस्थान, जि० काँगड़ा) । देवी( मुनि जह्नु की गाथा ), नारदीय० २।४१।३५-३६ (जह्नु ने इसे पी लिया था और अपने दाहिने कान से बाहर निकाल दिया था ), ब्रह्माण्ड० ३१५६।४८, (जह्नु ने इसे अपने पेट से बाहर निकाला था) ३।६६।२८ | जातिस्मरहब - (१) (कृष्ण-वेणा के पास ) वन० ८५1३८) (२) (स्थल अज्ञात है ) वन० ८४/१२८, पद्म० ११३८।४५ । जेष्ठिल-- (चम्पकारण्य के पास ) वन० ८४ । १३४ । ज्ञानतीर्य -- ( वाराणसी के अन्तर्गत) कूर्म० ११३५/६, पद्म० ११३७६ ।
ज्ञानवापी - स्कन्द० ४।३३ ( जहाँ इसके मूल एवं माहात्म्य का वर्णन है ) । देखिए इस ग्रन्थ के खण्ड ४ का अध्याय १३ ।
तीर्थसूची
ज्येष्ठेश्वर-- ( कश्मीर में श्रीनगर के पास डल झील पर आधुनिक ज्येठिर स्थल) 'राज० १।११३, नीलमत० १३२३-१३२४ । कश्मीर के राजा गोपादित्य द्वारा निर्मित यहाँ शिवमन्दिर था । स्टीन ( राज० १।११३ ) के अनुसार कश्मीर में ज्येष्ठेश्वर नाम के तीन स्थल हैं। राज० (१।१२४)
आया है कि अशोक के पुत्र जालोक ने ही ज्येष्ठेश्वर का मन्दिर बनवाया था, अतः यह कश्मीर का प्राचीनतम मन्दिर है ।
ज्येष्ठ पुष्कर -- ( सरस्वती पर ) वन० २०० १६६, पद्म० ५।१९।१२, १८।२० ( कहा जाता है कि यह ढाई योजन लम्बा एवं आधा योजन चौड़ा है) । ज्येष्ठस्थान - (कोटितीर्थ के पास ) वन० ८५।६२ । ज्योतिरथा -- ( या रथ्या) (यह शोण की एक सहायक
नदी है ) वन० ८५१८, पद्म० ११३९१८ | ज्योतिष्मती -- ( हिमालय की एक झील से निकली हुई एवं सरस्वती की एक सहायक नदी) वायु ० ४७/६३, मत्स्य० १२१।६५, ब्रह्माण्ड० २।१८।६६ ।
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१३।१२ । ज्वालेश्वर-- ( अमरकण्टक के पास) मत्स्य० १८८/८० एवं ९४ ९५, पद्म० १।१५/६९, ७७, ७८ (शिव द्वारा जलाया गया एक पुर यहाँ गिरा था ) । यहाँ पर स्वाभाविक रूप से गैस निकलती है जो घर्षण से जल उठती है, सम्भवतः इसी से यह नाम पड़ा है।
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तक्षशिला -- ( आधुनिक टैक्सिला ) स्वर्गारोहण पर्व
५/३४, वायु ० ८८१८९-९०, ब्रह्माण्ड० ३।६३/१९०-९१ ( गन्धार में दाशरथि भरत के पुत्र तक्ष द्वारा संस्थापित ) ; जातक में 'तक्कसिला' विद्याकेन्द्र के रूप में वर्णित है ( यथा - भीमसेन जातक, फाँसबॉल द्वारा सम्पादित, जिल्द १, पृ० ३५६ ) । देखिए टालेमी ( पृ० ११८-१२१) जहाँ सिकन्दर के काल के आगे का इसका इतिहास दिया हुआ है। यह अशोक के प्रथम पृथक्-प्रस्तराभिलेख में उल्लिखित है ( सी० आई० आई०, जिल्द १, पृ० ९३ ) और पाणिनि (४|३|९३ ) में भी यह शब्द आया है । इसके ध्वंसावशेष का वर्णन देखिए ऐं० जि०
( पृ० १०४ - ११३), मार्शल के 'गाइड टू टैक्सिला ' आदि में।
तक्षक नाग - ( कश्मीर के जयवन में अर्थात् आधुनिक जेवन के पास एक पुनीत धारा) वन० ८२/९०, राज० ११२२०, पद्म० १।२५।२ ( वितस्ता तक्षकनाग का निवास-स्थल है। ज़ेवन ग्राम के पास एक कुण्ड में यह आज भी पूजित है ) | देखिए स्टीन - स्मृति, पृ० १६६, काश्मीर रिपोर्ट, पृ० ५।
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