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धर्मशास्त्र का इतिहास गौरी--(नदी) भीष्म० ९।२५ । सम्भवतः यह यूनानी चक्रतीर्थ-(१) (सौकरतीर्थ के अन्तर्गत) वराह०
लेखकों की 'गौरयिऑस' है (टॉलेमी, पृ० १११)। १३७।१९; (२) (आमलक ग्राम के अन्तर्गत) गौरीश--(ललिता-तीर्थ) ब्रह्माण्ड० ४।४४।९८। नृसिंह० ६६।२२; (३) (सेतु के अन्तर्गत) गौरीशिखर--(१) वन० ८४।१५१, मत्स्य० २२।- स्कन्द० २०३, ब्रह्मखण्ड, अध्याय ३-५; (४)
७६ (श्राद्ध के लिए योग्य); (२) (कश्मीर के (कश्मीर में) चक्रधर के नाम से भी विख्यात पास एक तीर्थ) नीलमत० १४४८-१४४९ (जहाँ है; (५) (गोदावरी पर) ब्रह्म० ६८१, १०९।नील-कमल के रंग वाली उमा ने तप किया और १, १२४।१ (श्यम्बक से ६ मील) यद्यपि तीन बार गौर वर्ण वाली हो गयी)।
उल्लिखित है, तथापि एक ही तीर्थ; (६) (मथुरा गौरीतीर्थ--(वारा० के अन्तर्गत) मत्स्य० २२।३१, के अन्तर्गत) वराह० १६२।४३; (७) (सरकूर्म० १६३५।२, पद्य० ११३७।३।
स्वती के अन्तर्गत) वाम० ४२।५, ५७४८९, ८११३; देखिए ऐं० जि० (पृ० ३३६) एवं 'अस्थि
पुर' के अन्तर्गत; (८) (द्वारका के अन्तर्गत) घटेश्वर--(साभ्रमती के अन्तर्गत) पद्म० ६।१५९।३। तीर्थ प्र०, पृ० ५३६-५३७, वराह० १५९।५८। घटोत्कच-(वारा० के अन्तर्गत) कूर्म० ११३५।८, चक्रधर-(कश्मीर में विष्णुस्थान, आज यह अपभ्रंश पद्म० ११३७८।
रूप में 'त्सकदर' या 'छाकघर' है) राज० ११३८ । घण्टाभरणक-(मथुरा के अन्तर्गत) वराह० १५४।- अब यह विजबोर (प्राचीन विजयेश्वर) से लगभग
एक मील पश्चिम प्रसिद्ध तीर्थ है। देखिए कश्मीर घण्टाकर्णहद-(वारा० के अन्तर्गत व्यासेश्वर के रिपोर्ट (पृ० १८) एवं स्टीन-स्मृति (पृ० १७१) ।
पश्चिम) नारदीय० २।४९।२८-२९, लिंग० (ती० चक्रधर एवं विजयेश-शिव एक-दूसरे के पास स्थित क०,पृ. ८६)।
दो प्रतिमाएँ हैं। ह. चि० (७।६१) इसे चक्रतीर्थ घण्टेश्वर-मत्स्य० २२१७०।
एवं चक्रधर (७६४) कहता है। घर्घर--(या घर्घरा या घागरा) (एक पवित्र नदी, जो चक्रवाक-(पितरों के लिए एक तीर्य) मत्स्य० कुमायूं से निकलती है और अवध की एक बड़ी २२।४२। नदी है) पद्म० २।३९।४३, मत्स्य० २२॥३५, चक्रस्थित-(मथुरा के अन्तर्गत) वराह० १६९।१। पम० ५।११।२९ (दोनों में समान शब्द हैं)। चक्रस्वामी--(शालग्राम के अन्तर्गत) वराह० १४५।देखिए तीर्थप्रकाश (पृ० ५०२), जहाँ सरयू- ३८ (चक्रांकितशिलास्तत्र दृश्यन्ते)। घर्घर-संगम का उल्लेख है। घर्घरा, सरय आदि चक्रावर्त-(मन्दार के अन्तर्गत)। वराह० नदियों का सम्मिलित जल घागरा या सरज के नाम से ३६-३८ (एक गहरी झील)। प्रसिद्ध है, विशेषतः बहरामघाट से) देखिए इम्पी० चक्रेश्वर-(वारा० के अन्तर्गत) लिंग० (ती०
गजे० इण्डि०, जिल्द १२, पृ० ३०२-३०३। क०, पृ० ५२)। घृतकुल्या--(गया के अन्तर्गत एक नदी) वन० १०५। चक्षुस्-(हिमालय से निकलनेवाली एक नदी, गंगा ७४, ११२।३०।
की एक शाखा) मत्स्य० १२११२३, वायु० ४७।२१ एवं ३९, ब्रह्माण्ड ० २।१६।२०, भाग० ५।१७।
५। दे (पृ० ४३) के मत से चक्षुस् 'आक्सस' या चक-(सरस्वती के पास) भाग० १०७८।१९। 'आमू दरिया' है; वे मत्स्य० (१२०।१२१) पर
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