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तोर्यसूची
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क्षमा--(ऋष्यवान् से निकली हुई नदी) मत्स्य० ११४। खाण्डव (वन)---कुरुक्षेत्र की सीमा (ते. आ० ५।१।१)। २५।
देखिए इस ग्रन्थ का खण्ड ४, अध्याय १५। ताण्ड्य क्षिप्रा--(विन्ध्य से निकली हुई नदी) मत्स्य० ११४। जाह्मण २५।३।६ (यहाँ नाम आया है), आदि० २२३
२७, वाम०८३।१८-१९ । कुछ मुद्रित ग्रन्थों में 'शिप्रा' २२५, भाग० १।१५।८, १०५८।२५-२७, १०७१।या 'सिप्रा' शब्द आया है (वायु० ४५।९८)। मत्स्य० ४५-४६, पद्म० ६२००५ में आया है कि क्षिप्रा विन्ध्य से निकलती है, किन्तु खाण्डवप्रस्थ-- (एक नगर) आदि० ६१॥३५, २२१।११४-२४ में आया है कि यह पारियात्र से निकली है। १५, भाग० १०।७३।३२ (जहाँ जरासन्ध को मारकर मुद्रित ब्रह्म (अध्याय २७) में 'सिप्रा' दो बार आया कृष्ण, भीम एवं अर्जुन लौटे थे)। है, जिसमें एक पारियात्र (श्लोक २९) से और दूसरी खोनमुष-(कश्मीर में) बिल्हण कवि की जन्म-भूमि विन्ध्य (श्लोक ३३) से निकली हुई कही गयी है। और कुंकुम-उत्पादन के लिए प्रसिद्ध। विक्रमांकदेवब्रह्माण्ड० (२।१६।२९, ३०) में यह ब्रह्म के समान चरित १।७२, १८१७१ ('खोनमुख' पाठान्तर आया कही गयी है।
है), स्टोन-स्मृति, पृ० १६६ (आधुनिक खुनमोह, क्षीरवती--(नदी) वन० ८४१६८ (सरस्वती एवं जिसमें दो गाँव हैं)।
बाहुदा के पश्चात् विस्तृत हुई)। क्षोरिका--(जहाँ नीलकण्ठ हैं) वाम० (ती० क०, पृ० २३८)।
गंगा--देखिए इस ग्रन्थ के खण्ड ४ का अध्याय १३ । क्षुषातीर्य--(गोदावरी के अन्तर्गत) ब्रह्म० ८५।१। गंगा-कोशिकी-संगम--ती० क०, पृ० ३५७-३५८ । क्षेमेश्वर ---(वाराणसी के अन्तर्गत) लिंग० (ती० क०, गंगा-गण्डकी-संगम-ती० क०, पृ० ३५७ । पृ० ११७)।
गंगा-गोमती-संगम-ती० क०, पृ० ३५८। गंगाद्वार-(यह हरिद्वार का एक नाम है) बन०
८१।१४, ९०.२१, १४२।९-१०, अनु० २५।१३, खर्वागेश्वर---(वाराणसी के अन्तर्गत) लिंग० (ती० कर्म० १११५१४१ एवं ४७ (यहाँ दक्ष का यज्ञ वीरभद्र क०, पृ० ५६)।
द्वारा नष्ट कर दिया गया था), २।२०१३३ (श्राद्ध के खड्गतीर्थ--(१) (साभ्रमती के अन्तर्गत) पद्म० अत्यन्त प्रसिद्ध स्थलों में एक), वि० ध० सू० ८५१३८,
६।१४०।१; (२) (गोदावरी के अन्तर्गत) ब्रह्म० अग्नि० ४७ (यहाँ वामन बलि के पास आये हैं), १३९।१ (उत्तरी तट पर)।
पा०५।५।३ एवं ५।२६।१०३ । बाह सू० (३।१२९) खड्गधारातीर्य (या खड्गधारेश्वर)-पद्म०६।१४७।१।। के अनुसार यह शैवक्षेत्र है। मत्स्य० (२२।१०)
एवं ६७ । देखिए बम्बई गजे० (जिल्द ४,५०६) ने एक ही श्लोक में गंगाद्वार एवं मायापरी को बागपुच्छ नाग-कश्मीर में) ह० चि० १०॥२५१ अलग-अलग वणित किया है।
(विजयेश्वर क्षेत्र खन से तीन मील ऊपर, इसे आज- गंगा-मानुष-संगम--(कश्मीर के पास) नीलमत०
कल अनन्तनाग परगने में खंबल कहा जाता है)। १४५७ । खण्डतीर्थ-(साभ्रमती के अन्तर्गत) पद्म० ६।१३७।१२ गंगा-यमुना-संगम--(अर्थात् प्रयाग, वहीं देखिए) वन० (इसे वृषतीर्थ भी कहा जाता है)।
८४१३५। खविरवन-(मथुरा के अन्तर्गत) वराह० १५३।३९ गंगावत्--(नर्मदा के अन्तर्गत) पद्म० १।२०।१६ (बारह वनों में सातवाँ वन)।
(गणेश्वर के पास)।
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