________________
१४२६
धर्मशास्त्र का इतिहास कौनट--वाम० ५११५३।
कौशिकीमहाहद-वायु० ७७।१०१, ब्रह्माण्ड० ३।१३। कौबेरतीर्थ---शल्य ० ४७।२५ (जहाँ कुबेर को धन का १०९। स्वामित्व प्राप्त हुआ।
कौशिकी-संगम-(दुषद्वती के साथ) पद्य० ॥२६॥८९, कौमारतीर्थ--(एक सर) ब्रह्माण्ड० ३।१३।८६ । वाम०३४।१८। उपर्युक्त दो अन्य नदियों से यह कौशाम्बी-प्रयाग से पश्चिम ३० मील दूर आधु- पृथक् लगती है।
निक कोसम) रामा० (१।३२।६) में आया है कि कौशिकी-तीर्थ-(नर्मदा के अन्तर्गत) मत्स्य० १९४।यह ब्रह्मा के पौत्र एवं कुश के पुत्र कुशाम्ब द्वारा स्था- ४०। पित हुई थी; ती० क०, पृ० २४६ । महाभाष्य (जिल्द कौशिक्यरुणासंगम-वन० ८४।१५६, पद्म० ११३८।३, पृ० ५०,१३४, पाणिनि ६।११३१) में यह कई बार ६३। उल्लिखित हुई है। अभिधानचिन्तामणि (पृ० १८) कौस्तुभेश्वर--(वाराणसी के अन्तर्गत) लिंग० (ती. में आया है कि यह वत्स देश की राजधानी थी। देखिए ऐं० जि० (पृ. ३९१-३९८)एवं 'हस्तिनापुर' के अन्त- कौशिकहूद--(कौशिकी नदी पर) वन० ८४१४२र्गत। देखिए नगेन्द्रनाथ घोष कृत 'अर्ली हिस्ट्री आव १४३, पम० ११३८१५८ (जहाँ विश्वामित्र को अत्यकौशाम्बी'। अशोक के कौशाम्बी स्तम्भाभिलेख तम सिद्धि प्राप्त हुई)। (सी० आई० आई०, जिल्द १, पृ० १५९) ने इस कमसार--(कश्मीर में एक सर, इसे विष्णुपद भी कहा आधुनिक नगर के महामात्रों का उल्लेख किया जाता है) नीलमत० १४८१-१४८२। है। डा. स्मिथ ने 'कोसम' नहीं माना है (जे० आर० ऋतुतीर्ष-(नर्मदा के अन्तर्गत) पद्म० १।२१।९। ए०एस०, १८९८, पृ० ५०३-५१९) । कोशाम्बी के क्रिया-(ऋक्षवान् से निकली हुई एक नदी) ब्रह्माण्ड विभिन्न स्थानों के विषय में देखिए एपि० इण्डि०२।१६।२९। (जिल्द ११, पृ० १४१)।
कम्-(नदी) ऋ० ५।५३।९ एवं १०१७५।६। सामाकौशिकी--(१) (हिमालय से निकलनेवाली, आधनिक न्यतः इसे आधुनिक कुर्रम कहा जाता है जो इसाखेल
कोसी) आदि० २१५१७, वन०८४११३२, मत्स्य० के पास सिन्ध के पश्चिम तट में मिल जाती है। २२।६३, ११४।२२, रामायण ११३४१७-९, भाग० देखिए दे (पृ० १०५)। ९।१५।५-१२ (गाधि की पुत्री सत्यवती कोशिकी नदी कोशोदक-वराह० २१५।८७-८८ । हो गयी), वाम० ५४।२२-२४ (इसका नाम इसलिए कौञ्चपदी-अनु० २५।४२। पड़ा कि कालो ने गौर वर्ण धारण करने के उपरान्त कौञ्च पर्वत--(कैलास का वह भाग, जहाँ मानसरोवर अपना काला कोश यहाँ छोड़ दिया था), ७८४५, अवस्थित है) तैत्तिरीयारण्यक (१।३११२) ने ९०।२, वायु० ४५।९४, ९११८५-८८। विश्वामित्र इसका उल्लेख किया है। रामा० ४।४३।२६-३१, (आदि० ७१।३०-३१) ने इस नदी को पारा कहा भीष्म० ११११५७ (स्कन्द के चक्र द्वारा भेदित), है। (२) (गया के अन्तर्गत) वन० ८७।१३, शल्य० १७.५१ एवं ४६।८३-८४ । वायु० १०८।८१ (कौशिकी ब्रह्मदा ज्येष्ठा)। जैसा कीञ्चपद--(गया के अन्तर्गत) वायु० १०८७५कि प्रो० दीक्षितार (पुराण इण्डेक्स, जिल्द २, पृ० ७७ (एक मुनि ने कौंच पक्षो के रूप में यहाँ तप किया ५०७) ने कहा है, यहाँ 'ब्रह्मदा' कौशिकी का विशेषण था)। नारदीय० २।४६।५२, अग्नि० ११६७ । है न कि किसी अन्य नदी का नाम ।
कौञ्चारण्य-(जनस्थान से तीन कोस दूर) रामा० कौशिकी-कोका-संगम--वराह०१४०१७५-७८।
३१६९।५-८।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org