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________________ १४२८ गंगा - वरणा - संगम - ( वाराणसी के अन्तर्गत) लिंग० ( ती० क०, पृ० ४५ ) । गंगा - वदन -संगम - - ( नर्मदा के अन्तर्गत ) मत्स्य० १९३।२०। गंगा - सरयू - संगम ---- रघुवंश ८।९५, तीर्थप्रकाश, पृ० धर्मशास्त्र का इतिहास ३५७ । गंगा-सरस्वती - संगम वन० ८४१३८, पद्म० १।३२।३ । गंगा - सागर - संगम -- वि० ध० सू० ८५१२८, मत्स्य० २२।११ ( यह 'सर्वतीर्थमय' है ) पद्म० १|३९|४, तीर्थप्रकाश ( पृ० ३५५ - ३५६ ) में माहात्म्य दिया हुआ है । गंगा - ह ब -- पद्म० १।२२/६३ ( कुरुक्षेत्र के अन्तर्गत ) वन० ८३।२०१, अनु० २५/३४. गंगेश्वर -- ( १ ) ( वाराणसी के अन्तर्गत ) नारदीय० २|४९।४६ (२) ( नर्मदा के अन्तर्गत) मत्स्य ० १९३।१४ । गंगोद्भव -- वन० ८४/६५, मत्स्य० २२/२५, पद्म० १।३२।२९, अग्नि० १०९।१८ । गजकर्ण -- (पितृ तीर्थों में एक ) मत्स्य० २२।३८ । गजक्षेत्र -- ( शिवक्षेत्र) बार्हस्पत्य सूत्र ३ । १२२ । गजशैल -- (मानसरोवर के दक्षिण एक पर्वत ) वायु ० ३६।२४ । गजसाह्वयो -- ( या नागसाह्वय ) ( यह हस्तिनापुर ही है) विष्णु० ५।३५।८, १९, ३०-३२, वाम० ७८२८, भाग० ११४५६, टीका का कथन है- 'गजेन सहित नाम यस्य'); बृहत्संहिता १४१४ ( गजाह्वय) । गजाह्वय --- ( यह हस्तिनापुर ही है) स्वर्गारोहण पर्व ५/३४ । गजेश्वर - (श्रीशैल के अन्तर्गत) लिंग० १।९२।१३६ । गणतीर्थ - - (१) (उन तीर्थों में एक, जहाँ के श्राद्ध से परम पद मिलता है) मत्स्य० २२।७३ (२) ( साभ्रमती के अन्तर्गत) पद्म० ६।१३३।२४ । गण्डकी -- (हिमालय से निकलकर बिहार में सोनपुर के पास गंगा में मिल जाती है) यह एरियन की 'कोण्डोछटेस' है ( ऐं इण्डि०, पृ० १८८ ) । आदि० १७०/ C Jain Education International २०-२१ ( उन सात महान् नदियों में एक, जो पाप नष्ट करती हैं), सभा० २०।२७, वन० ८४ । १३, वन० २२२।२२ ('गण्डसाह्वया' सम्भवतः गण्डकी ही है ), पद्म० ११३८ ३०, ४। २०।१२ ( इसमें पाये जानेवाले प्रस्तर खण्डों पर चक्र-चिह्न होते हैं) । वराह० ( १४४ - १४६ ) एवं ब्रह्माण्ड० (२।१६।२६ ) में आया है कि यह नदी विष्णु के कपोल के पसीने से निकली है । विष्णु ने इसे वरदान दिया कि मैं शालग्राम प्रस्तरखण्डों के रूप में तुममें सदैव विराजमान रहूँगा ( वराह० १४४ । ३५-५८ ) । गण्डकी, देविका एवं पुलस्त्याश्रम से निकली हुई नदियाँ त्रिवेणी बनाती हैं ( वराह ० १४४|८४) । यह नेपाल में 'शालग्रामी' एवं उ० प्र० में 'नारायणी' कहलाती है । गवाकुण्ड -- ( शालग्राम के अन्तर्गत ) वराह० १४५ । ४९ । गदालोल -- ( गया में ब्रह्मयोनि के दोनों ओर एक-एक कुण्ड ) वायु० १०९।११-१३, १११७५-७६, अग्नि ० ११५/६९; और देखिए इस ग्रन्थ का खण्ड ४, अध्याय १४ । गन्धकाली - (नदी) वायु० ७७८४४, ब्रह्माण्ड ० ३।१३।७६ । गन्धमादन -- ( वह पर्वत, जिस पर बद्रीनाथ अवस्थित हैं) नृसिंह० ६५ ।१० (ती० क०, पृ० २५२), विष्णु० २।२।१८ ( मेरु के दक्षिण), मार्क० ५१/५ ( नर-नारायणाश्रम का स्थल ), मत्स्य० १३।२६ । गन्धवती -- ( १ ) ( एकाम्रक के पास उदयगिरि की पहा - ड़ियों से निर्गत एक पुनीत नदी, यद्यपि शिवपुराण ने इसे विन्ध्य से निर्गत कहा है ) देखिए डा० मित्र कृत 'ऐण्टीक्विटीज़ आव उड़ीसा' (जिल्द २, पृ० ९८ ) । ( २ ) ( शिप्रा की एक छोटी सहायक नदी ) मेघदूत १।३३ । गन्धर्व कुण्ड -- ( मथुरा के अन्तर्गत ) वराह०१६-३।१३ । गन्धर्वनगर - ती० क०, पृ० २४७ । मन्धर्वतीर्थ -- ( वाराणसी के अन्तर्गत ) पद्म० १ ३६| १३, शल्य० ३७|१० ( सरस्वती के गर्गस्रोत पर ) | For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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