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तीर्थसूची
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फूटक--(पर्वत) भाग० ५।६।७ (कुटक), वन० १९।। १॥३२॥१२ (श्लोक १६-१८ में नाम की व्याख्या की १६ (कूटक)।
गयी है), पद्म० ११३४।१०, नारदीय० २।४९।६-९ कूटशैल--(पर्वत) वायु० ४५।९२, ब्रह्माण्ड ० २।१६।। (विभिन्न युगों में विभिन्न नाम थे, यह त्रेता युग का २३ (सम्भवतः यह उपर्युक्त कूटक ही है)।
नाम है)। कुशावती--(विन्ध्य के ढाल पर कोसल को राजधानी कृपा--(शुक्तिमान् पर्वत से निकली हुई नदी) मत्स्य ___ जहाँ कुश ने राज्य किया) बायु० ८८।१९९, रामा० ११४।३२, ब्रह्माण्ड० २।१६।३८।।
७।१०७।७। महासुदस्सन सुत्त (एस० बी० ई० कृपाणीतीयं--(कश्मीर में मुण्डपृष्ठ पहाड़ी पर) ११, पृ० २४८) में ऐसा आया है कि कुसीनारा नीलमत० १२५३, १४६०। कुशावती के नाम से महासुदस्सन राजा की नगरीथी। कृमिवरेश्वर--(वाराणसी के आठ शिवस्थानों में एक) अर--(हिमालय से निकली हुई नदी) मत्स्य० ११४। मत्स्य० १८१।२९।
२१, वायु० ४५।९५, ब्रह्माण्ड० २।१६। २५, वाम० कृष्ण-गंगा--(मथुरा के अन्तर्गत) वराह० १७५।३। ५७।८०, ब्रह्म० २७।२६। मत्स्य० (१२१।४६) में कृष्णगंगोद्भव-तीर्थ-(मथुरा के अन्तर्गत) वराह० 'कुहून्' नाम एक देश का है, या यह गन्धारों एवं १७६।४३ (सम्पूर्ण अध्याय में इसका माहात्म्य वर्णित औरसों के नाम पर पड़ा, ऐसा कहा गया है। इसकी है)। पहचान ठीक से नहीं हो सकी है।
कृष्णगिरि--(पर्वत) वायु० ४५।९१, ब्रह्माण्ड० २। कृकलासतीर्थ--(इसे नृगतीर्थ भी कहा जाता है) तीर्थ- १६॥२२ ।
प्रकाश (पृ० ५४२), अनु० ६।३८ एवं अध्याय कृष्णतीर्थ- (कुरुक्षेत्र के पास) वाम० ८१।९। ७०, रामा० (७५३) में वर्णन आया है कि राजा कृष्ण-वेणा-भीष्म० ९।१६, मत्स्य० २२।४५, अग्नि नृग किस प्रकार गिरगिट हो गया।
११८१७, ब्रह्म० २७।३५, वायु०४५।१.४ । सम्राट कृतमाला--(मलय से निर्गत नदी) वायु० ४५।१०५. खारवेल के शिलालेख (एपि० इण्डि०, जिल्द २०, ब्रह्म० २७।३६, मत्स्य० १।४।३०, ब्रह्माण्ड० ३। पृ०७७) में कन्हबेमना' नाम आया है। अनु० (१६६। ३५।१७, भाग० ८।२४।१२, १०७९।१६, ११॥ २२) में वेण्या एवं कृष्ण-वेणा पृथक्-पृथक् नाम आये' ५।३९, विष्णु० २।३।१३, । दे (पृ० १०४) ने कहा हैं। राष्ट्रकूट गोविन्द द्वितीय के अलस दान-पत्र में है कि यह वैगा नदी है जिस पर मदुरा स्थित है। (७६९ ई०) कृष्णवेणा एवं मुसी के संगम का उल्लेख देखिए 'पयस्विनी' के अन्तर्गत । भागवत में आया है है (एपि० इण्डि०, जिल्द ६, पृ० २०८)। कि मनु ने इस नदी पर तप किया और मत्स्य को कृष्णा -वेण्या--(उपर्युक्त एक नदी) पद्म० (६।१०८। अवतार रूप में प्रकट होने में सहायता की।
२७) में कृष्णा एवं वेण्या के संगम का उल्लेख है, कृतशीच-मत्स्य० १३।४५, १७९।८७, वाम० ९०१५ ६।११३।३ एवं २५ (कृष्णा कृष्ण का शरीर है),
(यहाँ नृसिंह की प्रतिमा है), पद्म० ६।२८०।१८॥ स्मृतिच० (१, पृ० १३२) ने कृष्णा-वेण्या में स्नान कृत्तिकांगारक--अनु० २५।२२ ।
का मन्त्र लिखा है। देखिए तीर्थसार (पृ० ६७-८३) कृत्तिकाश्रम-अनु० २५।२५।।
जहाँ पृ० ७० में आया है कि सह्य से निर्गत सभी कृत्तिकातीर्थ-(गोदावरी के अन्तर्गत) ब्रह्म० ८११। नदियाँ स्मरण-मात्र से पापों को काट देती हैं कृत्तिवास- (वारा० के अन्तर्गत) लिंग० (ती० क०, और कृष्णा-वेण्या सर्वोत्तम है। मोहुली, जो सतारा पृ०४०)।
से ४ मील पर है, कृष्णा .एवं येन्ना के संगम कृत्तिवासेश्वर लिंग-(वारा० के अन्तर्गत)। कूर्म पर है।
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