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कृष्ण-वेणी --- ( उपर्युक्त नदी) मत्स्य० ११४।२९, रामा० ५/४१|९| तीर्थसार ( पृ० ६७-८२ ) में स्कन्द० से कृष्णवेणी का माहात्म्य उद्धृत है । कृष्णा -- (१) ( महाबलेश्वर में सह्य पर्वत से निकलनेवाली नदी ) ब्रह्म० ७७५, पद्म० ६।१९३।२५, वाम ० १३ | ३०; (२) वाम० ७८1७, ९०१२ ( इस नदी पर हयशिर के रूप में विष्णु) । इसे बहुधा कृष्ण-वेण्या या कृष्ण-वेणा कहा गया है। यह दक्षिण की तीन विशाल नदियों में एक है, अन्य दो हैं गोदावरी एवं कावेरी । 'महाबलेश्वर माहात्म्य' (जे० बी० बी० आर० ए० एस्, जिल्द १०, पृ० १६) में महाबलेश्वर के पास सह्य से निकली हुई गंगा नामक पाँच नदियों का उल्लेख है— कृष्णा, वेणी, ककुद्मती ( कोयना ), सावित्री ( जो बाणकोट के पास अरबसागर में गिरती है) एवं गायत्री ( जो सावित्री से मिली कही गयी है) । केतकीवन --- ' वैद्यनाथ' के अन्तर्गत देखिए । केतुमाला --- ( पश्चिम में एक नदी ) वन० ८९ । १५ । केवार -- ( १ ) ( वाराणसी के आठ शिवतीर्थों में एक )
धर्मशास्त्र का इतिहास
वन० ८७।२५, मत्स्य० १८१।२९, कूर्म० १।३५।१२ एवं २ |२०१३४ ( श्राद्ध-तीर्थ), अग्नि० ११२।५, लिंग ० १।९२।७ एवं १३४; (२) (गढ़वाल में केदार नाथ ) वि० ध० सू० ८५।१७। यह समुद्र से ११७५० फुट ऊँचा है । पाँच केदार विख्यात हैं —— केदारनाथ, तुंगनाथ, रुद्रनाथ, मध्यमेश्वर एवं कल्पेश्वर । देखिए उ० प्र० गजे०, जिल्द ३६, पृ० १७३ (गढ़वाल) ; ( ३ ) ( कश्मीर में ) ह० चि० ८1६९ (विजयेश्वर से एक कोस नीचे ); (४) ( गया के अन्तर्गत ) नारदीय० २२४६|४६; (५) (व ( कपिष्ठल का ) पद्म० १।२६।६९ ।
केशव -- (१) (वाराणसी में )
मत्स्य ० १८५।६८; ( २ ) ( मथुरा के अन्तर्गत ) वराह० १६३।६३ । केशितीर्थ -- (गगा के अन्तर्गत ) तीर्थप्रकाश, पृ० ५१५ । केशिनीतीर्थ - ( नर्मदा के अन्तर्गत) पद्म० १।२१।४० । कैलापुर -- (ललिता के पचास पीठों में एक ) ब्रह्माण्ड ० ४|४४।९७ ।
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कैलास शिखर -- ( हिमालय का एक शिखर समुद्र से २२००० फुट ऊँचा, मानसरोवर से २५ मील उत्तर ) वन० १३९ ४१ ( ६ योजन ऊँचा ), १५३।१, १५८/१५१८, मत्स्य० १२१।२-३; ब्रह्माण्ड० ४/४४/९५ ( ललितादेवी के ५० पीठों में एक ); देखिए स्वामी प्रणवानन्द का लेख (जे० यू० पी० एच०एस०, जिल्द १९, पृ० १६८-१८० ) और उनकी पुस्तक 'कैलास मानसरोवर' एवं स्वेन हेडिन का 'ट्रांस- हिमालय' ( सन् १९०९) । देखिए दे ( पृ० ८२-८३ ) । सतलज, सिंधु, ब्रह्मपुत्र एवं कर्णाली का उद्गम स्थल कैलास है या मानस, अभी तक यह बात विवादग्रस्त है । कोका - (नदी) वराह० २१४।४५, ब्रह्म० २१९/२० । कोकामुख - ( या वराहक्षेत्र, जो पूर्णिया जिले में नाथपुर के ऊपर त्रिवेणी पर है) वन० ८४ । १५८, अनु० २५।५२, वराह० १२२ ( यहाँ कोका मुख माहात्म्य है), १२३।२, १४०।१०-१३ । ( ती० क०, पृ० २१३२१४), ब्रह्म० २१९।८-१० ( देवों ने एक सुन्दरी से पूछा - 'कासि भद्रे प्रभुः को वा भवत्याः'), कूर्म ० १।३१।४७, २।३५।३६ ( यह विष्णुतीर्थ है ), पद्म० १|३८|६५ | वराह० ( १४० १६०-८३ ) में आया है कि यह क्षेत्र विस्तार में पाँच योजन है और वराहावतार के विष्णु की एक मूर्ति है। देखिए एपि० इण्डि०, जिल्द १५, पृ० १३८ - १३९ ( जहाँ बुधगुप्त का एक शिलालेख है, जिसमें कोकामुख- स्वामी के प्रतिष्ठापन का उल्लेख है ) । और देखिए डा० बी० सी० लॉं भेटग्रन्थ (भाग १, पृ० १८९ - १९१), इण्डियन हिस्टारिकल क्वार्टरली (जिल्द २१, पृ० ५६ ) ।
कोकिल -- ( वाराणसी के अन्तर्गत ) पद्म० १|३७|१६
एवं ५।११।१० ।
कोटरा-तीर्थ--- ( साभ्रमती के अन्तर्गत ) पद्म ६।१५२।२ एवं १३ (अनिरुद्ध से सम्बन्धित, जिसके लिए कृष्ण ने
बाणासुर से युद्ध किया था ) । कोटरा-वन -- पाणिनि । ( ६ | ३ | ११७ एवं ८ ४१४) ने इसका नाम लिया है। देखिए 'किशुलुक' एवं पाणिनि (८|४|४), जहाँ पाँच वनों के नाम आये हैं ।
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