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मन्दिर है, जिसमें देवी की, सुन्दरी कन्या के रूप में प्रतिमा है। टालेमी ने इसे 'कोउमारिया' एवं पोरिप्लस ने इसे कोमर या 'कोमारेई' कहा है । वन० ८८।१४ ( पाण्डय देश में ), वायु ० ७७ २८, ब्रह्माण्ड० ३।१३ | २८| ब्रह्माण्ड० (२।१६।११ ) एवं मत्स्य० ( ११४ । १०) का कथन है कि भारतवर्ष का नवाँ द्वीप कुमारी से गंगा के उद्गम स्थल तक विस्तृत है। शबर ( जैमिनि० १० | १|३५ ) ने कहा है कि 'चरु' शब्द हिमालय से कुमारी देश तक 'स्थाली' के अर्थ में प्रयुक्त होता है ।
कुमारिल -- ( कश्मीर में वितस्ता पर ) वाम० ८१।११। कुमारेश्वर लिंग -- स्कन्द ० १ २ १४१६, वाम० ४६ । २३ । कुमुदाकर- (कुब्जाभ्रक के अन्तर्गत ) वराह० १२६ । २५-२६ ।
कुमुद्वती - (विन्ध्य से निकली हुई एक नदी ) वायु० ४५।१०२, ब्रह्म० २७।३३ ।
कुम्भ --- (श्राद्ध के लिए उपयुक्त स्थल) वायु० ७७ । ४७ । कुम्भकर्णाश्रम - वन० ८४ । १५७, पद्म० १ ३८ ६४ । कुम्भकोण -- ( आधुनिक कुम्भकोणम्, तंजौर जिले में )
धर्मशास्त्र का इतिहास
स्कन्द० ३, ब्रह्मखण्ड ५२।१०१ ।
कुम्भीश्वर - ( वरणा के पूर्वी तट पर, वाराणसी के अन्तर्गत) लिंग० (ती० क०, पृ० ४५ ) | कुरङ्गः-- अनु० २५।१२।
कुरुजांगल - ( पंजाब में सरहिन्द, श्राद्धतीर्थ ) मत्स्य ० २१।९ एवं २८, वायु० ७७।८३, वाम० २२।४७ ( यह सरस्वती एवं दृषद्वती के बीच में है), ८४१३ एवं १७, कूर्म ० २०३७ ३६, भाग० ३।१।२४, १०८६ २० देखिए इस ग्रन्थ का खण्ड ४, अध्याय १५ । कुरजांगलारण्य - देवीपुराण (ती० कृ०, पृ० २४४) । कुरुक्षेत्र--- देखिए इस ग्रन्थ का खण्ड ४, अध्याय १५ । कुरुक्षेत्र- माहात्म्य में १८० तीर्थों का वर्णन है, किन्तु ऐसा विश्वास है कि यहाँ ३६० तीर्थ हैं। देखिए ऐं० जि०, पृ० ३३२ ।
कुलम्पुन वन० ८३।९०४, पद्म० १।२६।९७ । कुलिशी - (नदी) ऋ० १।१०४|४|
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कुलेश्वर - ( मथुरा के अन्तर्गत ) वराह० १७७५५ । कुल्या (नदी) अनु० २५/५६ ( ती० क०, पृ० २४७)। कुशतीर्थ (नर्मदा के अन्तर्गत ) कूर्म ० २।४१।३३ । कुशस्तम्भ - अनु० २५/२८ ( ती० क०, पृ० २४६ ) । कुशस्थल - ( मथुरा के अन्तर्गत ) वराह० १५७/
१६ ।
कुशस्थली - (१) (यह द्वारका ही है, आनर्त की राजधानी) विष्णुं ० ४|१|६४ एवं ९१, मत्स्य० १२ | २२, ६९९, वायु० ८६।२४ एवं ८८, भाग० ७१ १४।३१, ९।३।२८ (आनर्त के पुत्र रेवत ने के समुद्र भीतर इस नगर को बसाया और आनर्त पर राज्य किया), १२।१२।३६ ( कृष्ण ने इस नगर को बसाया था ) । ( २ ) ( कोसल की राजधानी, जहाँ राम के पुत्र कुश ने राज्य करना आरम्भ किया था ) रामा० ७।१०।१७, वायु० ८८/१९९ ( ३ ) ( दुःशावती, जिसका पहले का नाम कुसीनारा था, जहाँ बुद्ध को निर्वाण प्राप्त हुआ था) एस्० बी० ई०, जिल्द ११, पृ० २४८ ॥
कुशतर्पण - ( गोदावरी के अन्तर्गत) ब्रह्म० १६१।१ (इसे परिणीतासंगम भी कहा जाता है) ।
कुशप्लवन - वन ० ८५।३६ ।
कुशावर्त --- (१) ( नासिक के पास त्र्यम्बकेश्वर ) वि०
घ० सू० ८५।११, ब्रह्म० ८०१२, मत्स्य० २२।६९ | देखिए बम्बई गजे ० ( जिल्द १६, पृ० ६५१ (२) (हरिद्वार के पास ) अनु० २५ | १३, नारदीय० २४०
७९, भाग० ३।२०|४|
कुशेशय-- ( कुशेश्वर ) मत्स्य० २२|७६ । कुशिकस्याश्रम - ( कौशिकी नदी १३१-१३२॥
पर ) वन०
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८४ ।
कुशीवट नृसिंह० ( ती० क०, पृ० २५२) । कुसुमेश्वर - ( नर्मदा के अन्तर्गत ) मत्स्य ० १९१ | ११२-११७ एवं १२५ ।
कूष्माण्डेश्वर - ( वारा० के अन्तर्गत) लिंग० (ती० क०, पृ० १०३) ।
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