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________________ धर्मशास्त्र का इतिहास (जिल्द २, पृ० २३३, पाणिनि ४।११७९) ने 'कान्य- नदी की सुन्दर नीलाचल पहाड़ी पर देवीस्थान कुब्जी' का उल्लेख किया है। रामा० (११३२।६) में या त्रिपुरभैरवी का मन्दिर) देवीभागवत० ७१३८। आया है कि ब्रह्मा के पौत्र एवं कुश के पुत्र कुशनाम १५, कालिका० ६४१२ (नाम की व्याख्या की गयी है. ने महोदया को बसाया था। अभिधानचिन्तामणि सम्पूर्ण अध्याय में इसका माहात्म्य है)। यह (पृ०१८२) के मत से कान्यकुब्ज, महोदय, गाधिपुर, गोहाटी से दो मील दूर है और प्राचीन काल से प्रसिद्ध कन्याकुब्ज एक-दूसरे के पर्याय हैं। देखिए 'महोदय' है। देखिए तीर्थप्रकाश (पृ० ५९९।६०१)। दखिए के अन्तर्गत एवं ऐं जि० (पृ० ३७६-३८२)। टालेमी श्री बी० ककती का लेख (सिद्धभारती, भाग २ (पृ. १३४) ने इसे 'कनगोरा' एवं 'कनोगिजा' पु० ४४)। कालिका० (१८।४२ एव ५०) में ऐसा कहा है। आया है कि जब शिव सती के शव को लिये चले जा कापिल--(वाराणसी के अन्तर्गत) कूर्म० ११३५।९। रहे थे तो उनके गप्तांग वहाँ गिर पडे थे। यहाँ देवी लद्वीप-(यहाँ पर विष्णु का गुह्य नाम अनन्त है) कामाख्या' के नाम से प्रसिद्ध है। नृसिंह० ६५१७ (ती० कल्प०, पृ० २५१)। कामेश्वर-लिंग-(वाराणसी के अन्तर्गत) स्कन्द० कापिशी-(नदी) पाणिनि (४।२।९९) में यह नाम ४।३३।१२२। । आया है। यह यूनानी लेखकों की 'कपिसेने' है। कामेश्वरीपीठ--कालिका० (अध्याय ८४) में इसकी कापोत-(गोदावरी के अन्तर्गत) ब्रह्म० ८०५ एवं यात्रा का वर्णन है। ९२। कामोवापुर- (गंगा पर) नारदीय० २१६८ (इसमें कापोतकतीर्थ-(साभ्रमती के अन्तर्गत) पद्म० ६.१५५।- कामोदामाहात्म्य है) । समुद्र-मंथन से चार कुमारियां १ (यहाँ यह नदी पूर्व की ओर हो जाती है)। निकलीं-रमा, वारुणी, कामोदा एवं वरा, जिनमें से कामकोष्ठक (कामकोटि)-(त्रिपुरसुन्दरी का पीठ- विष्णु ने तीन को ग्रहण किया और वारुणी को असुरों कामाक्षी)ब्रह्माण्ड०४।५।६-१०,४।४०।१६ (काञ्ची ने ग्रहण किया; अध्याय ६८।१८। यह गंगाद्वार से में),४।४४९४ (ललिता के ५० पीठों में एक), भाग० १० योजन ऊपर है। १०७९।१४ (कामकोष्णी पुरी काञ्चीम्)। काम्यक-आश्रम--(पाण्डवों का) वन० १४६।६ । काम-बार्हस्पत्य सूत्र (३।२४) के अनुसार यह एक काम्यक-सर-सभा० ५२।२० । शिवक्षेत्र है। काम्यकवन--(१) (सरस्वती के तटों पर) वन० ३६।४ कामगिरि--(पर्वत) ब्रह्माण्ड० ४।३९।१०५, भाग० (जहाँ पाण्डव द्वैतवन से आये), वाम० ४१।३०।३१; ५।१९।१६, देवीभाग० ८।११।११। . (२) (मथुरा के अन्तर्गत) १२ वनों में चौथा। कामतीर्थ-(नर्मदा के दक्षिण तट पर) कूर्म० २।४११५, कामिफ-(जहाँ गण्डकी देविका से मिलती है) वराह० गरुड़० १३८१।९। १४४१८४-८५। कामधेनु-पद-(गया के अन्तर्गत) वायु० ११२।५६। कायशोधन-वन० ८३।४२-४३ । कामाक्षा-(अहिच्छत्र में) (सुमद द्वारा स्थापित एक कायावरोहण-(१) (डभोई तालुका में बड़ोदा से १५ देवीस्थान) पद्म ४।१२।५४-६० । मील दक्षिण आधुनिक कार्वान) वायु० २३॥२२१कामाक्षी-(पूर्व में) नारदीय० २।६९ (माहात्म्य के २२२ (यहाँ 'पाशुपत सिद्धान्त के प्रवर्तक नकुली या लिए)। लकुली का आविर्भाव हुआ था), मत्स्य० २२।३० कामाल्य--(१) (देविका नदी पर एक रुद्रतीर्थ) कूर्म० २।४४१७-८ (इसका कथन है कि यहाँ वन० ८५।१०५, पम० ११२५।१२; (२) (ब्रह्मपुत्र महादेव का मन्दिर था और माहेश्वर-मत के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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