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________________ तीर्थसूची सती-सर में उत्पन्न हुआ और मनुष्यों को मारने लगा ( नीलमत० १११-१२३ एवं वाम० ८१।३०३३) । नील सभी नागों के पिता मुनि कश्यप के पास गया जिसकी प्रार्थना पर विष्णु ने अनन्तनाग को आज्ञा दी कि वह सभी पहाड़ियों को फाड़ डाले, सर को सुखा दे और जलोद्भव राक्षस को मार डाले ( राज० ११२५ ) । इसके उपरान्त विष्णु ने नागों को आज्ञा दी कि वे मनुष्यों के साथ शान्ति से रहें । सती वितस्ता नदी हो गयी । देखिए कूर्म ० २।४३४ ॥ कश्मीर में नागों को इष्ट देवता कहते हैं जो सभी पुनोत धाराओं, कुण्डों एवं सरों को रक्षा करते हैं, जो कि सब कश्मीर की रचना हैं। नोलमत ० ( ११३०११३१) एवं राज० ( ११३८ ) का कथन है कि कश्मीर का तिल-तिल पवित्र तीर्थ है और सभी स्थानों में नाग ही कुल देवता हैं। अबुल फ़जल ने आइने अकबरी (जिल्द २, पृ० ३५४ ) में लिखा हैं कि उसके काल में महादेव के ४५, विष्णु के ६४, ब्रह्मा के ३ एवं दुर्गा के २२ मन्दिर थे और ७०० स्थानों में सर्पों की मूर्तियाँ थीं, जिनको पूजा होती थी और जिनके विषय में आश्चर्यजनक कहानियाँ कही जाती थीं । राज० (१।७२ ) एवं नीलमत० ( ३१३-३१४) का कथन है कि कश्मीर का देश पार्वतीरूप है, अतः वहाँ के राजा को शिव का अंश समझना चाहिए और जो लोग समृद्धि चाहते हैं उन्हें राजा की आज्ञा की अवहेलना या असम्मान नहीं करना चाहिए । राज० ( १/४२ ) ने एक श्लोक में कश्मीर की विलक्षणता का वर्णन किया है'विद्या, उच्च निवास स्थल, कुंकुम, हिम एवं अंगूरों से युक्त जल; ये सब यहाँ सर्वसाधारण रूप में पाये जाते हैं यद्यपि ये तीनों लोकों में दुर्लभ हैं ।' कश्यपेश्वर - ( वारा० के अन्तर्गत ) लिंग० (ती० क'०, पृ० १७५) । कश्यपपद -- ( गया के अन्तर्गत ) वायु० १०९।१८, १११।४९ एवं ५८। Jain Education International १४१७ काकशिला -- ( गया के अन्तर्गत) वायु० १०८७६, अग्नि० ११६।४ । काकहद -- ( श्राद्ध के लिए महत्वपूर्ण ) ब्रह्माण्ड ० ३।१३ ८५ । कानाक्षी-- (नैमिष वन में एक नदी ) वाम० ८३ । २ । काञ्ची या काञ्चीपुरी - देखिए इस ग्रन्थ का खण्ड ४, अध्याय १५ । (१) सात पवित्र नगरियों में एक, चोलों की राजधानी एवं अन्नपूर्णा देवी का स्थान । पद्म० ६।११०५, देवोभाग० ७१३८१८, ब्रह्माण्ड ० ४/५/६ - १० एवं ४।३९।१५, भाग० १०।७९।१४, वायु० १०४।७६, पद्म० ४।१७।६७, बार्ह ० सू० ३।१२४ (एक शाक्त क्षेत्र ) । कम्बोडिया के एक नये शिलालेख से, जो जयवर्मा प्रथम का है, काञ्ची के एक राजा की ओर संकेत मिलता है (इंस्क्रिप्शन डु कम्बोजे, जी० कोइडेस द्वारा सम्पादित, भाग १, पृ० ८); (२) ( नर्मदा के अन्तर्गत ) पद्म० १।१७।८। कान्तीपुरी - देखिए इस ग्रन्थ के खण्ड ४, अध्याय १५ का अन्तिम भाग । आइने अकबरी (जिल्द ३, पृ० ३०५ ), स्कन्द० ४।७।१००-१०२, माहेश्वरखण्ड, उप-प्रकरण केदार, २७।३३ (यहाँ अल्ला लनाथ का एक लिंग है) । मिर्जापुर जिले में कान्तीपुरी भारशिवों की राजधानी थी । देखिए जायसवाल कृत 'हिस्ट्री आव इण्डिया' ( १५०-३५० ई० ) पृ० १२३ । कान्तीपुरी ब्रह्माण्ड ० (३।१३।९४-९५) में उल्लिखित है। कान्यायनेश्वर - ( वाराणसी के अन्तर्गत ) ( ती० कल्प०, पृ० १२० ) । काद्रवती - (श्राद्ध, जप, होम आदि के लिए एक तीर्थ ) वायु० ७७।८२ । "लग० कान्यकुब्ज - (ललिता देवी के ५० पीठों में एक ) ब्रह्माण्ड० ४।४४।९४, वन० ८७११७ (जहाँ विश्वामित्र ने इन्द्र के साथ सोम का पान किया) ; मत्स्य ० १३।२९ (कान्यकुब्ज या कन्नौज में देवी को गौरी कहा गया है), अनु० ४।१७, पद्म० ५।२५ (गंगा में मिलने वाली कालिन्दी के दक्षिण तट पर राम ने वामन की मूर्ति स्थापित की ), पद्म० ६।१२९।९। महाभाष्य — For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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