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________________ ती सूची की उपक्रमणिका १३९७ रिपोर्ट (१८७७), स्टीन द्वारा अनूदित राजतरंगिणी की टिप्पणी और उनका 'ऐंश्येण्ट जियॉग्रफी आव कश्मीर' वाला अभिलेख, जो पृथक् रूप से छपा है और कल्हण के ग्रन्थ के अनुवाद के दूसरे भाग के साथ भी छपा । सभी तीर्थ संस्कृत (देवनागरी) वर्णमाला के अनुक्रम के साथ उल्लिखित किये गये हैं। महाभारत के संकेत बम्बई वाले संस्करण के अनुसार दिये गये हैं । रामायण के संकेतांक १ से ७ तक क्रम से बाल, अयोध्या, अरण्य, किष्किन्धा, सुन्दर, युद्ध एवं उत्तर नामक काण्डों के लिए आये हैं। इसके संकेत मद्रास ला जर्नल प्रेस (१९३३) वाले संस्करण के अनुसार दिये गये हैं। पुराणों में अग्नि०, ब्रह्म०, ब्रह्मवैवर्त०, मत्स्य०, वायु एवं पद्म के आनन्दाश्रम संस्करणों का संकेत दिया गया है किन्तु अन्य महापुराणों के संकेत वेंकटेश्वर प्रेस वाले संस्करणों के अनुसार हैं, केवल नृसिंहपुराण एवं भागवतपुराण के संकेत क्रम से गोपाल नारायण एण्ड कम्पनी एवं निर्णयसागर प्रेस के संस्करणों से रखे गये हैं। स्कन्दपुराण ने कुछ कठिनाई उत्पन्न कर दी है। इसके लगभग ९० सहस्र श्लोकों का अवगाहन नहीं किया जा सका है, किन्तु काशीखण्ड एवं कुछ अन्य खण्डों के संकेत भली भाँति उपस्थित किये जा सके हैं। स्कन्द० की दो पृथक्पृथक् शाखाएँ हैं और इसके अधिकतर अंश पश्चात्कालीन एवं संदिग्ध प्रमाण वाले हैं। माहेश्वर खण्ड एवं वैष्णव, ब्राह्म, काशी, आवन्त्य, नागर, प्रभास नामक खण्ड १ से ७ की संख्या में व्यक्त हैं और उप-विभाग दूसरे रूप में । उपविभाग के भी कई प्रकार यथा पूर्वार्ध एवं उत्तरार्धं । जहाँ तक सम्भव हो सका है तीर्थों के स्थल बता दिये गये हैं। प्राचीनता एवं इतिहास के लिए शिलालेखों एवं अन्य उत्कीर्ण लेखों का भी हवाला दे दिया गया है। कल्हण को छोड़कर अन्य मुख्य संस्कृत ग्रन्थ ह्वेनसाँग, अलबरूनी एवं अबुल फजल की भाँति उतने स्पष्ट नहीं हैं। जहाँ ठीक से पता नहीं चल सका है वहाँ केवल ग्रन्थों के वचनों की ओर संकेत कर दिया गया है और कहीं-कहीं कनिंघम, दे, पाजिटर आदि के मत दे दिये गये हैं । सोरेंसन की 'इण्डेक्स आव दि महाभारत', मेकडोनेल एवं कीथ की वेदिक इण्डेक्स का हवाला कतिपय स्थलों पर दिया गया है । इम्पीरियल गजेटियर एवं बम्बई गजेटियर से भी सहायता ली गयी है। मार्कण्डेयपुराण का पार्जिटर वाला अनुवाद, विष्णुपुराण का विलसन वाला अनुवाद, डा० बी० सो० ला का 'माउण्टेन एवं रीवर्स आव इण्डिया' नामक लेख ( जर्नल आव दि डिपार्टमेण्ट आव लेटर्स, कलकत्ता यूनिर्वासटी, जिल्द २८), डा० हेमचन्द्र रायचौधरी का 'स्टडीज़ इन इण्डियन एण्टीक्विटीज' (१९३२) आदि भली भाँति उद्धृत किये गये हैं। प्रो० वी० आर० रामचन्द्र दीक्षितार ने 'दि पुराण इण्डेक्स' नामक एक उपयोगी ग्रन्थ प्रकाशित किया है, जिसमें भागवत०, ब्रह्माण्ड०, मत्स्य०, वायु० एवं विष्णु ० से सामग्रियां ली गयी हैं । किन्तु इसमें भी कतिपय स्थलों पर त्रुटिपूर्ण बातें दी गयी हैं । इस तीर्थ सूची से पुराणों की पारस्परिक प्राचीनता, कई संस्कृत-प्रन्थों के काल-निर्धारण एवं पुराणों द्वारा एक-दूसरे एवं महाभारत से उद्धरण देने के प्रश्नों पर प्रकाश पड़ेगा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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