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अध्याय १६
तीर्थों की सूची जो तीर्थ-तालिका हम उपस्थित करने जा रहे हैं वह धर्मशास्त्र के दृष्टिकोण के अनुसार है, न कि वह भारत के प्राचीन भूगोल पर कोई निबन्ध है। हम उन देशों एवं नगरियों का वर्णन नहीं करेंगे जिनकी तीर्थ रूप में कोई महत्ता नहीं है। यहाँ तीर्थ-सम्बन्धी बौद्ध एवं जैन ग्रन्थों की ओर कोई विशिष्ट संकेत नहीं किया गया है। बहुत-से पुराणों ने जम्बू द्वीप एवं भारतवर्ष के अतिरिक्त बहुत-से द्वीपों एवं वर्षों के पर्वतों, नदियों आदि के नाम दिये हैं, यथा--हरिवर्ष, रम्यक वर्ष, सुमेरु, क्रौंचद्वीप, शाल्मली द्वीप, किन्तु सूची से इन्हें निकाल दिया गया है। ब्रह्मपुराण (२६।८-८३) ने लगभग ५२० तीर्थों का संकलन किया है, किन्तु उनके स्थानों की ओर बहुत कम संकेत किया है और यही बात भीष्मपर्व (अध्याय ९) में उल्लिखित लगभग १६० नदियों के विषय में भी देखी जाती है। इसी प्रकार गरुड़. (१३८१।१-३१) एवं पप० (६।१२९) ने क्रम से लगभग २०० एवं १०८ तीर्थों के नाम दिये हैं। केवल वाराणसी के लगभग ३५० उपतीर्थों के नाम यहाँ उपस्थित किये गये हैं। किन्तु केवल वाराणसी में लगभग १५०० तीर्थ एवं मन्दिर हैं। प्रत्येक बड़े तीर्थ में कई उपतीर्थ पाये जाते हैं, यथा मथुरा (वराहपुराण), गौतमी (ब्रह्मपुराण) एवं गया (वायुपुराण) में। बहत-से तीर्थ असावधानी के कारण या अनजान में छट भी गये होंगे और बहतों को जान-बूझकर छोड़ दिया गया है। बहुत-से तीर्थ ऐसे हैं जो आज पवित्र माने जाते हैं, किन्तु रामायण-महाभारत एवं पुराणों में उनकी चर्चा नहीं हुई है, उन्हें भी हमने इस सूची में नहीं रखा है।
तोर्यों के स्थान एवं विस्तार के विषय में हमारे ग्रन्थ बहुधा अस्पष्ट रहे हैं। बहुत-से तीर्थ ऐसे हैं जो एक ही नाम के रूप में भारत के विभिन्न भागों में बिखरे पड़े हैं (देखिए अग्नितीर्थ, कोटितीर्थ, चक्रतीर्थ, वराहतीर्थ,सोमतीर्थ के अन्तर्गत)। तीर्थों की सूची के लेखन में हमें कनिंघम कृत 'ऐंश्येण्ट जियोग्रफी आव इण्डिया' एवं नन्दलाल दे कृत 'दि जियाँप्रैफिकल डिक्शनरी आव ऐंश्येंट एण्ड मेडिएवेल इण्डिया' (१९२७) से प्रभूत सहायता मिली है। हमें इन ग्रन्थों, विशेषतः अन्तिम ग्रन्थ से भिन्नता भी प्रकट करनी पड़ी है। किन्तु स्थानाभाव के कारण वर्णन में विस्तार नहीं किया जा सका है। श्री दे ने बहुत बड़ा कार्य किया है, किन्तु इन्होंने प्राचीन ग्रन्थों का विशेष सहारा लिया है और विस्तृत क्षेत्र पर दृष्टि नहीं डाली है। कहीं-कहीं तो इन्होंने प्रमाण भी नहीं दिये हैं, यथा चक्रतीर्थ के विषय में (पृ. ४३)। संकेतों के विषय में ये अस्पष्ट हैं एवं श्लोकों का उद्धरण भी नहीं देते और न ग्रन्थों की ओर विशिष्ट संकेत ही करते। इन्होंने बहुत-से तीर्थ छोड़ भी दिये हैं, यथा-दशाश्वमेधिक। कहीं-कहीं ये त्रुटिपूर्ण भी हैं। जो लोग उक्त अन्य को सूची पढ़ेंगे उन्हें श्री दे की असावधानी अपने-आप स्पष्ट हो जायगी।
रामायण-महाभारत एवं पुराणों के गम्भीर अध्ययन के उपरान्त यह सूची उपस्थित की गयी है। किन्तु तीर्थ-सम्बन्धी सभी संकेत नहीं दिये गये हैं, क्योंकि ऐसा न करने से यह ग्रन्थ आकार में बहुत बढ़ जाता। किन्तु इतना कहना उचित ही है कि जो कुछ यहां कहा गया है वह पर्याप्त है और अभी तक अन्य किसी लेखक ने ऐसा नहीं किया है। आगे के लेखक इस सूची को और बढ़ा सकते हैं। कश्मीर के तीर्थ भी यहां सम्मिलित किये गये हैं और नीलमतपुराण, राजतरंगिणी एवं हरचरितचिन्तामणि की ओर संकेत किये गये हैं। देखिए डा० बुहलर कृत कश्मीर
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