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________________ विट्ठलनाथ को प्राचीनता एवं उनके वारकरी भक्त १३९५ की गुजराती कविताओं एवं मीरा की कविताओं या भजनों में भगवान् को 'विट्ठल' कहा गया है और सन्तों द्वारा सम्बोधित 'विट्ठल' विष्णु हैं, पण्ढरपुर के देवता नहीं हैं। विट्ठल-ऋङमन्त्रसारभाष्य के लेखक विद्वान् काशीनाथ उपाध्याय ने 'विट्ठल' शब्द की व्युत्पत्ति यों की है—वित् +8+ल-'वित् वेदनं ज्ञानं तेन ठाः शून्यास्तान् लाति स्वीकरोति ।' क्षेत्र के नाम के विषय में ऐसा कहा जा सकता है कि आरम्भिक रूप में यह कन्नड़ में 'पण्डरगे' कहा जाता था जो संस्कृत में पाण्डुरंग' हो गया। जब विट्ठल के भक्त पुण्डलीक प्रसिद्ध हो गये तो यह तीर्थस्थल पुण्डरीकपुर (कूर्मपुराण) एवं पौण्डरीकपुर (स्कन्दपुराण) के नाम से विख्यात हो गया। पण्ढरपुर के यात्रियों को दो कोटियों में बाँटा जा सकता है; सदा आनेवाले तथा अवसर-विशेष पर आनेवाले। प्रथम प्रकार या कोटि के लोगों को 'वारकरी' (जो निश्चित समय से आते हैं) कहा जाता है। ये वारकरी लोग दो प्रकार के होते हैं; प्रति मास आनेवाले तथा वर्ष में दो बार (आषाढ़ शुक्ल एवं कार्तिक शुक्ल की एकादशी को) आनेवाले। वारकरी लोगों ने जाति-संकीर्णता का एक प्रकार से त्याग कर दिया है। ब्राह्मण वारकरी शूद्र वारकरी के चरणों पर गिरता है। सभी वारकरियों को कुछ नियमों का पालन करना पड़ता है (देखिए बम्बई गजेटियर, जिल्द २०, पृ० ४७१)। उन्हें तुलसी की माला पहननी पड़ती है, मांस-भक्षण छोड़ देना पड़ता है, एकादशी को उपवास करना होता है, गेरुवे रंग की पताका ढोनी पड़ती है और दैनिक व्यवसायों में सत्य बोलना एवं प्रवञ्चनारहित होना पड़ता है। कुछ लोग ऐसा कहते हैं कि विठोबा की प्रतिमा बौद्ध या जैन है। किन्तु इस बात के लिए कोई प्रमाण नहीं है। जब एकनाथ एवं तुकाराम जैसे कवि एवं सन्त विठोबा को बौद्धावतार कहते हैं तो वे अपने मन में विष्णु हो रखते हैं, क्योंकि पुराणों एवं मध्य काल के लेखकों ने बुद्ध को नवाँ अवतार माना है। आज के हिन्दुओं को तीर्थों एवं तीर्थ-यात्रा के विषय में कैसी भावना रखनी चाहिए, इस विषय में हम संक्षेप में अगले अध्याय के अन्त में कहेंगे। १०३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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