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________________ १३९० धर्मशास्त्र का इतिहास ७४-७६)में वर्णन आया है कि किस प्रकार गौतम ने शिव की जटा से गंगा को ब्रह्मगिरि पर उतारा, जहाँ उनका आश्रम था और किस प्रकार इस कार्य में गणेश ने सहायता दी। नारदपुराण (उत्तरार्ध, ७२ ) में आया है कि जब गौतम तप कर रहे थे तो बारह वर्षों तक पानी नहीं बरसा और दुर्भिक्ष पड़ गया, इस पर सभी मुनिगण उनके पास गये और उन्होंने गंगा को अपने आश्रम में उतारा । वे प्रातः काल शालि के अन्न बोते थे और मध्याह्न में काट लेते थे और यह कार्य वे तब तक करते चले गये जब तक पर्याप्त रूप में अन्न एकत्र नहीं हो गया। शिवजी प्रकट हुए और ऋषि ने प्रार्थना की कि वे (शिवज़ी) उनके आश्रम के पास रहें और इसी से वह पर्वत जहाँ गौतम का आश्रम अवस्थित था, त्र्यम्बक नाम से विख्यात हुआ (श्लोक २४ ) । वराह० (७१।३७-४४ ) ने भी कहा है कि गौतम ही जाह्नवी को दण्डक वन में ले आये और वह गोदावरी के नाम से प्रसिद्ध हो गयी । कूर्म० (२।२० २९-३५ ) ने नदियों की एक लम्बी सूची देकर अन्त में कहा है कि श्राद्ध करने के लिए गोदावरी की विशेष महत्ता है । ब्रह्म० ( १२४।९३ ) में ऐसा आया है कि 'सभी प्रकार के कष्टों को दूर करने के लिए केवल दो (उपाय ) घोषित हैं- पुनीत नदी गौतमी एवं शिव जो करुणाकर हैं । ब्रह्म ० ने यहाँ के लगभग १०० तीर्थों का वर्णन किया है, यथा -- श्रयम्बक (७९/६), कुशावर्त (८०1१-३), जनस्थान (८८1१), गोवर्धन (अध्याय ९१), प्रवरा - संगम ( १०६), निवासपुर ( १०६।५५), वञ्जरा-संगम ( १५९) आदि, किन्तु स्थानाभाव से हम इनकी चर्चा नहीं करेंगे। किन्तु नासिक, गोवर्धन, पंचवटी एवं जनस्थान के विषय में कुछ लिख देना आवश्यक है । भरहुत स्तूप के घेरे के एक स्तम्भ पर एक लेख है जिसमें नासिक के वसुक की पत्नी गोरक्षिता के दान का वर्णन है। यह लेख ई० पू० २०० ई० का है और अब तक के पाये गये नासिक -सम्बन्धी लेखों में सबसे पुराना है। महाभाष्य ( ६ । १।६३ ) में नासिक्य पुरी का उल्लेख हुआ है। वायु ० ( ४५ | १३०) ने नासिक्य को एक देश के रूप में कहा है । पाण्डुलेणा की गुफाओं के नासिक लेखों से पता चलता है कि ईसा के कई शताब्दियों पूर्व से नासिक एक समृद्धिशाली स्थल या (एपि० इण्डि०, जिल्द ८, पृ० ५९-९६) । टॉलेमी ( लगभग १५० ई०) ने भी नासिक का उल्लेख किया है (टॉलेमी, पृ० १५६) । नासिक के इतिहास इसके स्नान-स्थलों, मन्दिरों, जलाशयों, तीर्थयात्रा एवं पूजा - कृत्यों के विषय में स्थानाभाव से अधिक नहीं लिखा जा सकता। इस विषय में देखिए बम्बई का गजेटियर (जिल्द १६, नासिक जिला) जहाँ यह वर्णित है कि नासिक में ६० मन्दिर एवं गोदावरी के वाम तट पर पंचवटी में १६ मन्दिर हैं। किन्तु आज प्राचीन मन्दिरों में कदाचित् ही कोई खड़ा हो । सन् १६८० ई० में दक्षिण की सूबेदारी में औरंगजेब ने नासिक के २५ मन्दिर तुड़वा डाले । आज के सभी मन्दिर पूना के पेशवाओं द्वारा निर्मित कराये गये हैं (सन् १७५० एवं १८१८ के भीतर ) । इनमें तीन उल्लेखनीय हैं -- पंचवटी में रामजी का मन्दिर, गोदावरी के बायें तट पर पहले मोड़ के पास नारो शंकर का मन्दिर ( या घण्टामन्दिर) एवं नासिक के आदित्यवार पेठ में सुन्दर-नारायण का मन्दिर । पंचवटी में सीता गुफा का दर्शन किया जाता है, इसके पास बरगद के प्राचीन पेड़ हैं जिनके विषय में ऐसा विश्वास है कि ये पाँच वटों से उत्पन्न हुए हैं जिनसे इस स्थान को पंचवटी की संज्ञा मिली है। सीता गुफा से थोड़ी दूर पर काले राम का मन्दिर है जो पश्चिम भारत के सुन्दर मन्दिरों में परिगणित होता है । गोवर्धन ( नासिक से ६ मील पश्चिम ) एवं तपोवन (नासिक से १ || मील दक्षिण-पूर्व ) के बीच में बहुत-से स्नान-स्थल एवं पवित्र कुण्ड हैं । गोदावरी की बायीं ओर जहाँ इसका दक्षिण की ओर प्रथम घुमाव है, नासिक का रामकुण्ड नामक पवित्रतम स्थल है। कालाराम मन्दिर के प्रति दिन के धार्मिक कृत्य एवं पूजा यात्री मन्दरो गन्धमादनः ॥ मत्स्य० ( ११४।३७-३८ = वायु० ४५।११२-११३ मार्कण्डेय० ५४१३४-३५ ब्रह्माण्ड ० २।१६। ४३) । और देखिए ब्रह्म० (२७।४३-४४) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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