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________________ नर्मदा, गोदावरी वर्णन है कि अशोक महान् के राज्यकाल (लगभग २७४ ई० पू०) में मोग्गलिपुत्त तिस्स ने कई देशों में धार्मिक दूत-मण्डल भेजे थे, जिनमें एक दूतमण्डल महिषमण्डल को भी भेजा गया था। डा० फ्लीट ने महिषमण्डल को माहिष्मती कहा है (जे. आर० ए० एस०, पृ० ४२५-४७७, सन् १९१०)। महाभाष्यकार को माहिष्मती का ज्ञान था (पाणिनि ३।१।२६, वार्तिक १०)। कालिदास ने इसे रेवा से घिरी हुई कहा है (रघुवंश ६।४३)। उद्योगपर्व (१९।२३-२४ एवं १६६।४), अनुशासन पर्व (१६६।४), भागवतपुराण (१०७९।२१) एवं पय० (२१९२।३२) में माहिष्मती को नर्मदा या रेवा पर स्थित माना गया है। एक अन्य प्राचीन नगर है भरुकच्छ या भृगुकच्छ (आधुनिक भडोच), जिसके विषय में तीर्थों की तालिका को देखिए। गोदावरी वैदिक साहित्य में अभी तक गोदावरी की कहीं भी चर्चा नहीं प्राप्त हो सकी है। बौद्ध ग्रन्थों में बावरी के विषय में कई दन्तकथाएँ मिलती हैं। वह पहले महाकोसल का पुरोहित था और पश्चात् पसनेदि का, वह गोदावरी पर अलक के पाश्व में अस्यक की भूमि में निवास करता था और ऐसा कहा जाता है कि उसने श्रावस्ती में बुद्ध के पास कतिपय शिष्य भेजे थे (सुत्तनिपात, सैकेड बुक आव दि ईस्ट, जिल्द १०, भाग २, पृ० १८४ एवं १८७)। पाणिनि (५।४७५) के 'संख्याया नदी-गोदावरीभ्यां च वार्तिक में 'गोदावरी नाम आया है और इससे 'सप्तगोदावर' मी परिलक्षित होता है। रामायण, महाभारत एवं पुराणों में इसकी चर्चा हुई है। वनपर्व (८८१२)ने इसे दक्षिण में पायी जाने वाली एक पुनीत नदी की संज्ञा दी है और कहा है कि यह निर्झरपूर्ण एवं वाटिकाओं से आच्छादित तटवाली थी और यहाँ मनिगण तपस्या किया करते थे। रामायण के अरण्यकाण्ड (१३।१३ एवं २१) ने गोदावरी के पास के पंचपटी नामक स्थल का वर्णन किया है, जहाँ मृगों के झुण्ड रहा करते थे और जो अगस्त्य के आश्रम से दो योजन की दूरी पर था। ब्रह्म० (अध्याय ७०-१७५) में गोदावरी एवं इसके उपतीर्थों का सविस्तर वर्णन हुआ है। तीर्थसार (नृसिंहपुराण का एक भाग) ने ब्रह्मपुराण के कतिपय अध्यायों (यथा-८९, ९१, १०६, १०७, ११६-११८, १२१, १२२, १३१, १४४, १५४, १५९, १७२) से लगभग ६० श्लोक उद्धृत किये हैं, जिससे यह प्रकट होता है कि आज के ब्रह्मपुराग के गौतमी वाले अध्याय १५०० ई. के पूर्व उपस्थित थे। देखिए काणे का लेख (जर्नल आव दी बाम्बे ब्रांच आव दी एशियाटिक सोसाइटी, सन् १९१७, प० २७-२८)। ब्रह्म० ने गोदावरी को सामान्य रूप में गौतमी कहा है।" ब्रह्मपुराण (७८७७) में आया है कि विन्ध्य के दक्षिण में गंगा को गौतमी और उत्तर में भागीरथी कहा जाता है। गोदावरी की २०० योजन की लम्बाई कही गयी है और कहा गया है कि इस पर साढ़े तीन करोड़ तीर्थ पाये जाते हैं (ब्रह्म०७७७८-९)। दण्डकारण्य को धर्म एवं मुक्ति का बीज एवं उसकी भूमि को (उसके द्वारा आश्लिष्ट स्थल को) पुण्यतम कहा गया है। बहुत-से पुराणों में एक श्लोक आया है--(मध्य देश के) देश सह्य पर्वत के अनन्तर में हैं, वहीं पर गोदावरी है और वह भूमि तीनों लोकों में सबसे सुन्दर है। वहाँ गोवर्धन है, जो मन्दर एवं गन्धमादन के समान है। ब्रह्म० (अध्याय ४४. विन्ध्यस्य दक्षिण गंगा गौतमी सानिगद्यते । उत्तरे सापि विन्ध्यस्य भागीरभ्यभिधीयते ॥ब्रह्म० (७८७७) एवं तीर्थसार (१०४५)। ४५. तिस्रः कोट्योऽधकोटी च योजनानां शतद्वयें। तीर्थानि मुनिशार्दूल सम्भविष्यन्ति गौतम ॥ ब्रह्म० (७७। ८-९)। धर्मबीज मुक्तिबीजं दण्डकारण्यमुच्यते । विशेषाद् गौतमीश्लिष्टो देशः पुण्यतमोऽभवत् ।। ब्रह्म० (१६११७३)। ४६. सह्यस्यानन्तरे चैत तत्र गोदावरी नदी। पृथिव्यामपि कृत्स्नायां स प्रदेशो मनोरमः। यत्र गोवर्षनो नाम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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